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जब लगी थी लाशों की कतार, सुशील ने श्मशान के लिए दान दी थी डेढ़ बीघा जमीन - दिव्यांग सुशील

गाजियाबाद (Ghaziabad) में कोरोना काल (corona period) के दौरान श्मशान घाट (Crematorium) के लिए डेढ़ बीघा जमीन दान करने वाले दिव्यांग सुशील (divyang shushil chauhan) द्वारा बुनियादी सुविधाओं ( infrastructure) के लिए भी प्रयास जारी है. उनके द्वारा दान किये गये जमीन पर बने श्मशान घाट पर नगर निगम द्वारा जरूरी सुविधाएं मुहैया करा दी गई हैं.

गाजियाबाद श्मशान घाट
गाजियाबाद श्मशान घाट

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Published : Jun 10, 2021, 10:55 PM IST

नई दिल्ली/गाजियाबादः कोरोना काल (Corona Period) में श्मशान घाट (Crematorium) के लिए डेढ़ बीघा जमीन दान करने वाले दिव्यांग सुशील (divyang shushil chauhan) द्वारा बुनियादी सुविधाओं के लिए भी प्रयास जारी है. कोरोना के मामले जब पीक पर थे, तब उनकी मदद से, जो श्मशान घाट तैयार हुआ था, अब उस पर जरूरी सुविधाएं भी नगर निगम (Ghaziabad municipal Corporation)की तरफ से शुरू कर दी गई हैं. सुशील का कहना है कि जीवन में, अब उन्हें और कुछ नहीं चाहिए.

दिव्यांग सुशील की मेहनत ला रही रंग

अपनों की लाश के अंतिम संस्कार के लिए कतार में थे लोग

कोरोना काल में, जब चारों तरफ हाहाकार मचा हुआ था और श्मशान घाटों पर लाशों की कतारें लग रही थीं. उस समय एक दिव्यांग ने मसीहा बनकर करीब डेढ़ बीघा जमीन नगर निगम को श्मशान घाट बनाने के लिए सौंप दी थी. मामला गाजियाबाद में करहेड़ा इलाके के पास नूर नगर का था. सुशील चौहान नाम के जिस दिव्यांग व्यक्ति ने ये जमीन नगर निगम को दी थी, उस पर तुरंत टेंपरेरी श्मशान घाट बना दिया गया था, जिससे सैकड़ों ऐसे लोगों को राहत मिली थी, जो अपनों की लाशों को लेकर कतार में लगे थे. सुशील ने अपनी जिम्मेदारी यहीं तक नहीं निभाई. उन्होंने लगातार नगर निगम से आग्रह किया कि श्मशान घाट पर गम के माहौल में पहुंचने वाले लोगों के लिए सभी सुविधाओं की व्यवस्था भी की जाए. सुशील और अन्य स्थानीय लोगों की मेहनत रंग ला रही है. इस श्मशान घाट पर नगर निगम की तरफ से पक्के प्लेटफार्म और पीने के पानी की व्यवस्था से लेकर तमाम अन्य बुनियादी जरूरतों को पूरा किया जा चुका है.


अब बारिश में नहीं होगी परेशानी

श्मशान घाट पर आने वाले लोगों को बारिश के मौसम में काफी ज्यादा परेशानी का सामना करना पड़ रहा था, लेकिन अब टीनशेड और बैठने की व्यवस्था भी नगर निगम की तरफ से यहां की जा चुकी है. सुशील का कहना है कि उन्हें जीवन में, अब कुछ और नहीं चाहिए. ऐसा लगता है मानो जीवन की सारी इच्छाएं पूरी हो गई हों.

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सकारात्मक सोच से पेश की मिसाल

सुशील जैसे लोगों को देखकर पता चलता है कि जीवन में अगर मुश्किलें हैं, तो उन मुश्किलों से उबरने का हौसला देने वालों की भी कमी नहीं है. जरूरत है, बस सकारात्मक सोच की. खुद दिव्यांग होते हुए भी सुशील ने दूसरों का दर्द समझ कर, इसी सकारात्मक सोच का उदाहरण पेश किया है.

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