गाजियाबाद/वाराणसी: साल 2020 बीत चुका है, लेकिन इससे जुड़ी तमाम बुरी यादें लोगों के जेहन में अभी ताजा हैं. कोविड-19 के कहर ने बहुत से लोगों की जिंदगी को बदल कर रख दिया. नौकरी पेशा लोगों ने जहां ऑफिस जाने की जगह घर पर रहकर वर्क फ्रॉम होम का एक नया कॉन्सेप्ट अपनी जिंदगी में उतारा तो वहीं बहुत से लोगों को शहर छोड़कर गांव भी लौटना पड़ा. वहीं कुछ ऐसे भी लोग भी सामने आए जिन्होंने महामारी के इस बुरे वक्त को भी अवसर में बदलने का काम किया. ऐसे ही हैं वाराणसी शहर से लगभग 35 किलोमीटर दूर सेवापुरी ब्लॉक के ग्राम बेसहूपुर के रहने वाले चार्टर्ड अकाउंटेंट प्रवीण कुमार और उनकी सॉफ्टवेयर इंजीनियर पत्नी नूतन.
लोगों को होता है आश्चर्य
बिल्कुल ठेठ ग्रामीण परिवेश में इस दंपति को रहते देखकर लोगों को आश्चर्य होता है. इसका कारण है कि ये पहली बार गांव में रहने पहुंचे थे. इस दंपति को गांव में रहने का बिल्कुल ना कोई एक्सपीरियंस और ना ही उन्हें कभी इसका मौका मिला. लेकिन लॉकडाउन में कंपनियों ने जब अपने कर्मचारियों को वर्क फ्रॉम होम का ऑप्शन दिया तो इस दंपति ने भी मेट्रो लाइफ को छोड़कर साधारण और ग्रामीण परिवेश में रहना ज्यादा बेहतर समझा. वे गुड़गांव और नोएडा के अपने फ्लैट को छोड़कर बनारस के अपने अपने पुश्तैनी गांव में रहने पहुंच गए.
दोनों को गांव में दिखा विकास
सेवापुरी ब्लॉक के ग्राम बेसहूपुर यहां प्रवीण कुमार और उनकी सॉफ्टवेयर इंजीनियर पत्नी नूतन को गांव में कई बदलाव दिखे. उन्हें ग्रामीण इलाके में चकाचक बिजली भी आ रही थी और तेज इंटरनेट सर्विस भी यहां मिल रही थी. बिजली और इंटरनेट की सुविधा ने इस दंपति को यहां रहकर गांव को समझते हुए भी काम करने का मौका मिला.
हाईटेक तरीके से जी रहे हैं ग्रामीण जिंदगी
ग्रामीण परिवेश में बिल्कुल भारतीय परिधान में घर के कामकाज में अपने आपको बिजी रखने वाली नूतन को देखकर आपको यह अंदाजा भी नहीं लगेगा कि वह दुबई बेस्ड एक सॉफ्टवेयर कंपनी के लिए सॉफ्टवेयर तैयार कर रही हैं. बीटेक कंपलीट करने के बाद नूतन की शादी हुई और शादी के बाद उन्होंने एक मल्टीनेशनल कंपनी में बतौर सॉफ्टवेयर इंजीनियर नौकरी ज्वाइन कर ली. नूतन के पति प्रवीण कुमार बीते 14 सालों से चार्टर्ड अकाउंटेंट हैं और वह फॉरेन बेस्ड एक कंपनी में बतौर फाइनेंशियल मैनेजर वर्क करते हैं.
वर्क फ्रॉम होम का उठाया फायदा
इन पति-पत्नी की अच्छी खासी मंथली इनकम है और नोएडा में उनका खुद का घर भी मौजूद है. प्रवीण के माता-पिता, दादी और परिवार के अन्य सदस्य उनके साथ ही मेट्रो सिटी में रहते हैं. जिसकी वजह से उनका बनारस का पैतृक ग्रामीण परिवेश का मकान कई सालों से बंद पड़ा था. प्रवीण ने बताया कि कई बार गांव में आकर रहने की उनकी इच्छा होती थी, लेकिन अपनी नौकरी की व्यस्तता की वजह से वह ऐसा कर ना सके. कोरोना के कारण लागू लॉकडाउन के बाद जब उन्हें वर्क फ्रॉम का ऑप्शन मिला तब उन्होंने पत्नी के साथ मिलकर अपने इस पैतृक आवास में रहने और इसका कायाकल्प करने की प्लानिंग की. इसके बाद पति पत्नी दोनों लोग मेट्रो सिटी का घर और वहां की लाइफस्टाइल छोड़कर गांव की मिट्टी से जुड़ने के लिए पहुंच गए.
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