नई दिल्ली/गाजियाबाद: हर साल जुलाई-अगस्त के महीने में मुरादनगर को बसाने वाले हजरत बाबा मुराद गाजी की दरगाह पर हिंदू-मुस्लिम एकता के प्रतीक उर्स (मेले) का आयोजन किया जाता है. जिसमें हिंदू-मुस्लिम मिलकर दरगाह पर कव्वाली का आयोजन और दरगाह के सामने के मुख्य रास्तों पर खेल-खिलौने, खाने पीने से जुड़ी दुकानों के साथ मनोरंजन के लिए झूले और सर्कस शो का आयोजन कराते थे. लेकिन इस बार कोरोना महामारी के कारण मेला नही लगने से मेला संचालकों को कितना नुकसान होगा, इसी को लेकर ईटीवी भारत में उर्स कमेटी के प्रबंधक हामिद पठान से खास बातचीत की.
बाबा मुराद गाजी की दरगाह पर नहीं लगेगा मेला ईटीवी भारत को मुरादनगर में लगने वाले मेले के प्रबंधक हामिद पठान ने बताया कि वह प्रशासन से अनुमति लेने के बाद हर साल बाबा मुराद गाजी की दरगाह पर हिंदू मुस्लिम एकता का प्रतीक मेले का आयोजन करते हैं, जिसमें दूर-दूर से लोग मन्नत मांगने के लिए आते हैं और यह मेला 353 साल से लगातार लगता आ रहा है. दरगाह पर दूर-दूर से मन्नत मांगने आते हैं लोग
मेला प्रबंधक हामिद पठान ने बताया कि इस बार कोरोना महामारी को देखते हुए मंदिर-मस्जिद बन्द हैं, यहां तक के कावड़ यात्रा भी रद्द कर दी गई है, इसीलिए मुरादनगर की उर्स कमेटी ने इस बार उर्स मेला नहीं लगाने का फैसला लिया है. उन्होंने बताया कि इस बार मेला नहीं लगने से मेला लगाने वाले व्यापारी और झूला-सर्कस लगाने वाले लोग परेशान हैं.
मेला नहीं लगने से होगा लाखों का नुकसान
इसके साथ ही मेला प्रबंधक हामिद पठान ने बताया कि यह मुरादनगर के इतिहास में पहली बार हो रहा है कि इस बार मेला नहीं लगाया जायेगा. इस मेले की यह खासियत होती है कि यह हिंदू मुस्लिम एकता का प्रतीक है, इस मेला कमेटी का अध्यक्ष हमेशा हिंदू समुदाय से ही बनाया जाता है. मुरादनगर में मेला लगाने के लिए मेरठ, बिजनौर, राजस्थान और अलग-अलग जगह से व्यापारी आते थे.