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पर्यावरण से था प्रेम इसलिए छोड़ दी नौकरी, अब तालाबों के लिए कर रहे काम - पर्यावरण से प्रेम इसलिए छोड़ दी नौकरी

इंजीनियरिंग करने के बाद युवाओं का सपना होता है मल्टीनेशनल कंपनी में काम करने का, लेकिन कुछ लोग अपने पैशन को लेकर इतने डेडिकेटेड होते हैं कि उनके लिए कोई भी नौकरी मायने नहीं रखती है. ऐसे ही एक शख्स हैं रामवीर सिंह तंवर. रामवीर इंजीनियरिंग के बाद एक मल्टीनेशनल कंपनी में काम करते थे, लेकिन अपने पर्यावरण के प्रति प्रेम के लिए उन्होंने नौकरी छोड़ दी और तालाबों को पुनर्जीवित करने का जिम्मा उठा लिया. वो अब तक करीब 50 तालाबों को पुनर्जीवित कर चुके हैं. उनके और उनके काम के बारे में जानने के लिए पढ़ें पूरी स्टोरी.

पर्यावरण से था प्रेम इसलिए छोड़ दी नौकरी
पर्यावरण से था प्रेम इसलिए छोड़ दी नौकरी

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Published : Sep 23, 2021, 8:40 PM IST

नई दिल्ली/गाजियाबाद :इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने के बाद हर किसी का सपना मल्टीनेशनल कंपनी में नौकरी कर लाखों रुपये कमाना और सुकून की जिंदगी जीना होता है. ग्रेटर नोएडा के रहने वाले रामवीर तंवर भी इंजीनियरिंग के बाद मल्टीनेशनल कंपनी में नौकरी कर सुकून की जिंदगी जी सकते थे, लेकिन रामवीर तंवर ने पर्यावरण को बचाने के लिए मल्टीनेशनल कंपनी की नौकरी छोड़ दी.


दिल्ली-NCR में तालाब लुप्त होते जा रहे हैं. कहीं तालाब डंपिंग ग्राउंड बन चुके हैं तो कहीं पर भू माफियाओं ने तालाबों पर कब्जा कर रखा है. तालाबों को पुनर्जीवित करने का बीड़ा उठाया है पर्यावरण प्रेमी रामवीर तंवर ने. रामवीर तंवर तकरीबन पांच सालों से तालाबों को पुनर्जीवित करने का काम कर रहे हैं. बीते पांच सालों में रामवीर दिल्ली, हरियाणा, उत्तर प्रदेश समेत कई राज्यों में 50 से ज्यादा तालाबों को पुनर्जीवित कर चुके हैं.

रामवीर तंवर : पर्यावरण से था प्रेम इसलिए छोड़ दी नौकरी
रामवीर तंवर बीते चार सालों से SAY EARTH एनजीओ चला रहे हैं. एनजीओ के माध्यम से तंवर देश के विभिन्न राज्यों में तालाबों को पुनर्जीवित करते हैं. तंवर ने इंजीनियरिंग की पढ़ाई के दौरान ही पर्यावरण संरक्षण को लेकर काम करना शुरू कर दिया था. इस दौरान उन्होंने "जल चौपाल" के नाम से एक मुहिम चलाई थी. मुहिम में तंवर अपने कॉलेज के छात्रों के साथ गांव देहातों में जाकर लोगों को पर्यावरण संरक्षण के प्रति जागरूक करते थे.
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पुनर्जीवित किया गया मोरटा गांव का तालाब

तंवर बताते हैं कि मुहिम के दौरान इस बात का अंदाजा हुआ कि केवल लोगों को पर्यावरण संरक्षण के प्रति जागरूक करने से काम नहीं चलेगा. तब उन्होंने पर्यावरण संरक्षण को लेकर ग्राउंड पर कवायद करनी शुरू कर दी. पर्यावरण संरक्षण को लेकर काम करने के लिए उन्होंने मल्टीनेशनल कंपनी की नौकरी तक छोड़ दी. नौकरी छोड़ने के बाद तंवर ने केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड से पर्यावरण संरक्षण को लेकर ट्रेनिंग ली.

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पर्यावरण प्रेमी रामवीर तंवर बताते हैं कि गाज़ियाबाद नगर निगम द्वारा इस साल 46 तालाबों का जीर्णोद्धार करने का लक्ष्य रखा गया है. नगर निगम की इस मुहिम में "Say Earth" NGO भी महत्वपूर्ण योगदान कर रहा है. NGO द्वारा 26 तालाबों का जीर्णोद्धार किया जा रहा है, जिसमें से अधिकतर तालाबों का जीर्णोद्धार पूरा हो चुका है. जबकि कई तालाबों में थोड़ा बहुत काम होना बाकी है जो कि आने वाले दो महीने में पूरा कर लिया जाएगा. कई ऐसे तालाबों को भी पुनर्जीवित किया गया है जो कूड़ा घर बने हुए थे या फिर भू माफियाओं के कब्जे में थे. भू माफियाओं के कब्जे से तालाबों को मुक्त कराने में प्रशासन का भी योगदान रहा है.

मोरटा तालाब पर इंजीनियर रामवीर तंवर
गाज़ियाबाद के मोरटा गांव स्थित तालाब को पुनर्जीवित करने का कार्य लगभग सात महीनों से चल रहा है. मोटा गांव का तालाब डंपिंग ग्राउंड में तब्दील हो चुका था. शुरुआती दौर में तालाब में पड़ा कूड़ा साफ कराया गया, जिसके बाद तालाब में मौजूद पानी को किसानों की मदद से खेतों में पहुंचाया गया, जिसके बाद आधुनिक मशीनों के माध्यम से तालाब की खुदाई कराई गई.


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तंवर ने बताया आसपास के क्षेत्रों के पानी को तालाब में पहुंचाने के लिए पानी के चेंबर बनाए गए हैं. तालाबों के माध्यम से बारिश का पानी खेतों से तालाब में पहुंचता है. खेतों का पानी तालाब में पहुंचाने से पहले एक चेंबर में इकट्ठा किया जाता है. चेंबर में पत्थर मौजूद होते हैं. पत्थरों से फिल्टर होकर पानी तालाब में पहुंचता है. मौजूदा समय में तालाब बारिश के पानी से लबालब भरा हुआ है.


रामजी ने बताया कि तालाब को पुनर्जीवित करने में कई महीने का वक्त लगा. तालाब की खुदाई आदि करने में भारी संख्या में मजदूरों की जरूरत पड़ी. इस दौरान गांव के लोगों तो ही तालाब के काम में लगाया गया, जिससे उनको कई महीने का रोजगार गांव में ही मिल गया.

इंजीनियर रामवीर तंवर
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उन्होंने बताया कि दिल्ली-NCR में जलस्तर तेजी से नीचे गिर रहा है. तालाब के माध्यम से बारिश का पानी जमीन में सहेजा (Ground Water Recharge) जाता है. तालाब की चारदीवारी पर भारी संख्या में पेड़ लगाए जाते हैं. पेड़ों से मिट्टी का कटाव नहीं हो पाता साथ ही पक्षियों के बैठने के लिए भी जगह मिलती है.

तालाब से गांव के लोगों को रोजगार भी मिल सकता है. गांव के लोग तालाब में मछली पालन, सिंघाड़े आदि की खेती कर सकते हैं. रामवीर तंवर के नेतृत्व में चल रहे थे 'से अर्थ' एनजीओ की टीम तकरीबन 200 से अधिक वॉलिंटियर्स और 14 सदस्य शामिल हैं. टीम के सदस्यों अलग-अलग इलाकों के तालाबों को पुनर्जीवित करने की जिम्मेदारी निभा रहे हैं.

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