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गाजियाबाद: सब की अपनी डफली-अपना राग, सभी उम्मीदवारों को है जीत का भरोसा

गाजियाबाद में गठबंधन ने अपना उम्मीदवार बदल दिया है. सुरेंद्र कुमार मुन्नी की जगह सुरेश बंसल को उम्मीदवार बनाया गया है. इससे गाजियाबाद की पॉलिटिक्स मजेदार मोड़ पर पहुंच गई है. समझिए, कौन-सा उम्मीदवार अपने बारे में क्या कहता है.

'सब की अपनी डफली-अपना राग, सभी उम्मीदवारों को है जीत का भरोसा'

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Published : Mar 23, 2019, 8:45 PM IST

Updated : Mar 23, 2019, 11:36 PM IST

नई दिल्ली/गाजियाबाद: राजधानी दिल्ली से सटे गाजियाबाद में इस बार मुकाबला कड़ा हो गया है. गठबंधन ने सुरेंद्र कुमार मुन्नी की जगह सुरेश बंसल को अपना प्रत्याशी बताया है. इस सीट पर बीजेपी ने जनरल वीके सिंह को दोबारा टिकट दी है. इसको लेकर बीजेपी, कांग्रेस और गठबंधन के प्रत्याशियों से हमने लोकसभा सीट के मुकाबले पर अलग-अलग बात की.

इससे हमने समझने का प्रयास किया कि तीनों की अलग अलग राय क्या है. वह किन मुद्दों पर चुनाव लड़ रहे हैं. एक तरफ जहां बीजेपी प्रत्याशी वीके सिंह को बाकी दोनों कैंडिडेट बाहरी बता रहे हैं, तो वीके सिंह ने उनको दो टूक जवाब भी दिया है.

सब की अपनी डफली-अपना राग, सभी उम्मीदवारों को है जीत का भरोसा

गाजियाबाद में कांग्रेस ने हाल ही में ब्राह्मण कार्ड खेला. इसके तहत डॉली शर्मा को कैंडिडेट के रूप में उतार दिया गया. जाहिर है इसके बाद समीकरण बिगड़ गए. ऐसे में सुरेंद्र कुमार मुन्नी को हटाकर सपा बसपा महा गठबंधन ने सुरेश बंसल को मैदान में लाकर खड़ा कर दिया.

इससे माना जा रहा है कि व्यापारी और बनिया वर्ग का वोट महागठबंधन के खाते में जा सकता है. एक तरफ गाजियाबाद की पांचों विधानसभा सीट पर बीजेपी काबिज़ है. और दूसरी तरफ इस समय सेना के प्रति देश का रुख काफी ज्यादा है. ऐसे में पूर्व जनरल वीके सिंह पर दांव खेलना बीजेपी के लिए फायदे का सौदा था. लिहाजा उन्हें दोबारा से टिकट दी गई.

साथ ही धौलाना के पास करीब 60 गांव ऐसे हैं जो ठाकुर बाहुल्य गांव है. और वीके सिंह खुद ठाकुर बिरादरी से ताल्लुक रखते हैं, तो उसका फायदा भी देहात में वीके सिंह को मिल सकता है. शहरी विधानसभा की बात करें तो यहां पढ़ा लिखा समाज रहता है, जो सोच समझकर वोट करेगा. और उस पर भी काफी कुछ डिपेंड करेगा.

बीजेपी उसी वोटर को साधने में लगी है. लेकिन इसी वोट पर महागठबंधन और कांग्रेस की भी नजर है. एक तरफ कांग्रेस की डॉली शर्मा कह रही है कि वह विकास और स्वच्छता के अलावा शिक्षा और स्वास्थ्य के मुद्दे पर चुनाव लड़ रही है.

जाहिर है पढ़े-लिखे वर्ग को साधने की कोशिश डॉली शर्मा की है. वही उन्होंने कहा कि वीके सिंह बाहरी कैंडिडेट है और गाजियाबाद में बीजेपी बाहरी कैंडिडेट को लड़ाती है. 5 साल के लिए कैंडिडेट गुमशुदा तलाश केंद्र में चले जाते हैं.

इसके बाद हमने महागठबंधन के प्रत्याशी सुरेश बंसल से भी बात की तो उनका कहना है कि वीके सिंह जैसे बाहरी प्रत्याशी को जनता अब बर्दाश्त नहीं करेगी. पिछली बार भले ही लाखों वोटों से वीके सिंह जीते थे, लेकिन अब की बार इतने ही वोटों से हारेंगे.

वहीं वीके सिंह की राय भी आपको बता देते हैं. वीके सिंह की पार्टी यानी बीजेपी के ही कुछ लोग उनके खिलाफ थे. वह बाहरी कैंडिडेट नहीं चाहते थे, लेकिन वीके सिंह ने उन सब को यह कहा कि 98 फीसदी लोग उनके पक्ष में हैं. और 2 फीसदी लोगों के खिलाफ होने से कोई फर्क नहीं पड़ता.


कुल मिला जुला कर निचोड़ देखा जाए तो बीजेपी राष्ट्रीय और स्थानीय दोनों मुद्दों को साथ में लेकर लड़ रही है. तो वहीं महागठबंधन और कांग्रेस स्थानीय मुद्दों को ज्यादा तरजीह दे रही है. देखना यह होगा कि ऊंट किस ओर करवट लेता है.

Last Updated : Mar 23, 2019, 11:36 PM IST

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