नई दिल्ली/गाजियाबाद:राजधानी से सटे गाजियाबाद में एक ऐसी कॉलोनी है, जहां रहने वाला हर व्यक्ति खौफ के साए में जी रहा है. इस कॉलोनी को देखकर आप समझ जाएंगे कि यहां की इमारतें कभी भी ताश के पत्तों की तरह भरभरा कर गिर सकती हैं. यहां रह रहे 2 हजार 292 परिवार खौफ के साए में हैं, जबकि सरकारी महकमे जान कर भी अंजान हैं.
मौत के मुहाने पर गाजियाबाद की कॉलोनी! कभी भी हो सकता है श्मशान घाट जैसा हादसा
गाजियाबाद के तुलसी निकेतन इलाका जो कि दिल्ली के नंदनगरी के पास है, यहां भोपुरा बॉर्डर पर बसी ये कॉलोनी जर्जर हो चुकी है. हाल ये है कि घरों के अंदर से भी छत का प्लास्टर गिर रहा है. यही नहीं इमारतों में इस्तेमाल किए गए सरिए भी जर्जर होकर बाहर की तरफ दिखाई दे रहे हैं. ये हाल यहां आज से नहीं बल्कि पिछले कई सालों से है. अगर एक भी तेज भूकंप का झटका आया तो क्या इस कॉलोनी की इमारतें अपनी जगह खड़ी रह पाएंगी. यहां रहने वाले सैकड़ों लोगों की चिंता यही है. हालांकि जीडीए ने पूर्व में इस कॉलोनी को खाली करने का भी आदेश दिया था, लेकिन लोगों ने विरोध किया और कानूनी रास्ता अपना लिया. फिर भी जब भी भूकंप आता है या फिर बारिश आने वाली होती है. तो लोगों को डर सताता है. कहीं इमारत ताश के पत्तों की तरह न ढह जाए. जब भूकंप आया तो लोगों के पैरों तले जमीन खिसक गई थी.
पानी की निकासी न होने से हुई जर्जर
लोगों का आरोप है कि इलाके में पानी निकासी की व्यवस्था नहीं होने से इस तरह का हाल हुआ है, लेकिन सरकारी विभागों ने इस तरफ कोई ध्यान नहीं दिया. बारिश आने पर लोगों के घरों के अंदर तक पानी भर जाता है. लगभग सभी इमारतों की नींव में जलभराव होने से इमारतें जर्जर हुई हैं. लोग सरकार से मदद की गुहार लगा रहे हैं, लेकिन अपने आशियाने छोड़कर कहीं और जाने को भी तैयार नहीं हैं. ऐसे में सैकड़ों जिंदगियों पर ये खतरा लगातार मंडरा रहा है.
जामिया ने किया सर्वे, पार्षद ने जीडीए पर उठाए सवाल
इन सभी आरोपों पर हमने स्थानीय पार्षद से बात की. इलाके से बीजेपी पार्षद विनोद कसाना का कहना है कि हाल ही में जामिया यूनिवर्सिटी की टीम ने इलाके का जायजा लिया था और बिल्डिंग को खतरनाक घोषित किया था. इसके बाद जीडीए ने लोगों को मकान खाली करने के लिए कहा. लेकिन पेंच रजिस्ट्री को लेकर फंस रहा है. सिर्फ 450 लोगों ने ही अपने घरों की रजिस्ट्री करवा रखी है. ऐसे में पुनर्वास के लिए औपचारिकता पूरी होना आसान नहीं है. लिहाजा रहने के लिए खतरनाक हो चुके इन 2292 मकानों को जीडीए खाली नहीं करवा पा रहा है.
क्या जान जाने के बाद खुलेगी नींद?
हाल ही में भूकंप के झटकों के बाद एनसीआर के लोग काफी डरे हुए हैं. वहीं कुछ दिन पहले मुरादनगर में श्मशान घाट हादसा भी हुआ था, जिसमें लापरवाही की वजह से करीब दो दर्जन लोगों की जान चली गई थी. अगर इस दौरान भूकंप के झटकों से तुलसी निकेतन की जर्जर इमारतें गिर गईं. हजारों लोगों की जिंदगी पर मौत का साया मंडरा जाएगा. मगर सिर्फ एक तकनीकी दिक्कत को दूर करने के लिए सरकारी महकमे कोई कदम नहीं उठा रहे है.