नई दिल्ली:कृषि कानूनों की वापसी और न्यूनतम समर्थन मूल्य की गारंटी पर कानून बनाने की मांग को लेकर दिल्ली की विभिन्न सीमाओं पर तक़रीबन तीन महीने से किसानों का आंदोलन जारी है. गाजीपुर बॉर्डर पर बैठे किसान फसलों की एमएसपी पर खरीद ना होने और समय पर गन्ना भुगतान न होने से खासा परेशान है. किसानों को उम्मीद थी कि आंदोलन के चलते सरकार दबाव में है और गन्ने का मूल्य बढ़ाया जाएगा, लेकिन इस बार भी गन्ने के एफआरपी में कोई बढ़ोतरी नहीं हुई है.
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क्या होता है FRP ?
एफआरपी (फेयर एंड रेमुनेरटीव प्राइस) वह न्यूनतम मूल्य है, जिस पर चीनी मिलों को किसानों से गन्ना खरीदना होता है. कमीशन ऑफ एग्रीकल्चरल कॉस्ट एंड प्राइसेज (सीएसीपी) हर साल एफआरपी की सिफारिश करता है. सीएसीपी गन्ना सहित प्रमुख कृषि उत्पादों की कीमतों के बारे में सरकार को अपनी सिफारिश भेजती है.
गाजीपुर बार्डर आंदोलन स्थल पर सैकड़ों की संख्या में पश्चिमी उत्तर प्रदेश के गन्ना किसान मौजूद हैं. एफआरपी ना बढ़ने से किसान काफी निराश हैं. इसी को लेकर ईटीवी भारत ने किसानों से बातचीत की.
'सरकार खड़ी कर रही समस्या'
भारतीय किसान यूनियन के उत्तर प्रदेश अध्यक्ष राजवीर जादौन ने बताया गन्ने की लागत लगातार बढ़ती जा रही है, लेकिन अगर लागत के साथ आमदनी बढ़ती तो किसान का फायदा होता. बीते तीन सालों से प्रदेश सरकार किसानों की समस्या बढ़ाने का काम कर रही है. तीन महीने से किसान गन्ना डाल रहा है, लेकिन गन्ने की पर्ची पर रेट शून्य आ रहा है. इस साल भी गन्ने का मूल्य नहीं बढ़ा, जिससे कि आज किसान का आत्मबल टूटता है.
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