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पेट्रोल-डीजल के दाम बढ़ने से आधुनिक युग में बैलों से जुताई करने को मजबूर हुए किसान

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Published : Jun 15, 2021, 4:58 AM IST

पेट्रोल-डीजल महंगा होने से मुरादनगर क्षेत्र के गांवों के किसान मजबूरी में बैलों से खेती करके अपना गुजारा कर रहे हैं. किसानों का कहना है कि जहां एक ओर पहले ही खेती में लागत निकालना मुश्किल हो रहा है. तो वहीं अब डीजल के दाम बढ़ने से उनकी मुश्किलें और बढ़ गई हैं. ऐसे में वह ट्रैक्टरों का इस्तेमाल सिर्फ गन्ने को मिल पर ले जाने और खेतों से सामान घर लाने ले जाने के लिए करते हैं.

Farmers forced to plow field with oxen in modern era due to rising price of petrol and diesel
बैलों से जुताई

नई दिल्ली/गाजियाबाद: बैलों से परंपरागत खेती सदियों से चली आ रही है. बैलों को कृषि का मेरुदंड कहा जाता है, लेकिन अब 21वीं सदी में बैलों और हल से जुताई गुजरे जमाने की बात हो गई है. क्योंकि खेती में अब आधुनिक तकनीकों के उपकरणों के इस्तेमाल की महत्वता बहुत अधिक बढ़ गई है.

बैलों से जुताई करने को मजबूर हुए किसान, देखें वीडियो

लेकिन मौजूदा समय में पेट्रोल और डीजल के दामों में इजाफा होने से खेती में पेट्रोल-डीजल से संचालित होने वाले ट्रैक्टर और अन्य उपकरणों को इस्तेमाल करने में किसानों को दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है. डीजल की कीमत बढ़ने से अधिकतर किसान अब ट्रैक्टरों का इस्तेमाल सिर्फ मिलों पर गन्ना ले जाने और खेत से घर सामान लाने ले जाने के लिए कर रहा है.

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इसके अलावा किसान अब मजबूरी में एक बार फिर से परंपरागत बैलों से खेती कर रहे हैं. किसानों का कहना है कि मौजूदा समय में महंगाई और डीजल के दाम बढ़ने से खेती की लागत निकालना मुश्किल हो रहा है. इसलिए वह कुछ खर्च बचाने के लिए बैलों से खेती कर रहे हैं.

बैलों से जुताई
ईटीवी भारत को मुरादनगर ब्लॉक के खिदौड़ा गांव निवासी किसान राहुल ने बताया कि डीजल के दाम बढ़ने और महंगाई के अधिक हो जाने से वह मजबूरी में बैलों से खेतों की जुताई कर रहे हैं. लेकिन वहीं दूसरी ओर खेती में अब कुछ बच नहीं रहा है.

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वह सरकार से मांग करते हैं कि अगर डीजल सस्ता हो जाए तो राशन का सभी सामान सस्ता हो जाएगा. जिससे सभी को राहत मिलेगी. लेकिन अब इतनी महंगाई होने के बावजूद खेती करना उनकी मजबूरी बना हुआ है.


लागत कम करने के लिए करते हैं बैलों से खेती


किसान घनश्याम ने बताया कि वह भैसे से जुताई इसलिए कर रहे हैं. क्योंकि इसमें कम मजदूरी लगती है. क्योंकि ट्रैक्टर के डीजल के महंगा होने से लागत अधिक आती है. इसलिए वह टैक्टर का इस्तेमाल मील पर गन्ना ले जाने के लिए करते हैं. हालाकि बैलों और भैसों से खेतों की जुताई में समय अधिक लगता है.



20 से 30% तक घटी डीजल की मांग

रावली गांव के इंडियन पेट्रोल-डीजल पंप के डीलर कुलदीप त्यागी ने बताया कि गांव के अंदर पेट्रोल पंप होने के कारण उनका पेट्रोल पंप किसानों पर अधिक आधारित है.

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ऐसे में किसानों के पारंपरिक बैल और भैसों से खेती करने के कारण उनकी सेल पर 20 से 30% तक फर्क पड़ा है. जो काम पहले किसान का ₹300 के डीजल में होता था. वह आज 600 से 700 रूपये की लागत में हो रहा है.

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