नई दिल्ली/गाजियाबाद: राजधानी दिल्ली से सटे गाजियाबाद में एक ऐसा श्मशान घाट है, जहां पर ना तो लकड़ियां हैं और ना ही शव का अंतिम संस्कार करवाने वाले पुरोहित की व्यवस्था. ऐसे में इस श्मशान घाट में लकड़ियां भी खुद ले जानी पड़ती है और शव के अंतिम संस्कार के लिए पुरोहित को भी साथ ले जाना पड़ता है. यह श्मशान घाट लापरवाही की ऐसी तस्वीर उजागर करता है, जो कई सवाल खड़े भी करती है. श्मशान घाट नया नहीं है, साल 2009 में इस श्मशान घाट को तैयार कर दिया गया था. लेकिन 2020 में कोरोना महामारी से सबक नहीं लिया गया. यह रिपोर्ट देखिए...
सरकारी लापरवाही का शिकार बना श्मशान घाट ऐसा श्मशान घाट, जहां खुद ले ले जानी पड़ती हैं लकड़ियां और पंडित जलती हुई चिताएं एनसीआर की बेबसी की कहानी लगातार बयां कर रही हैं. गाजियाबाद में हिंडन श्मशान घाट से बीते दिनों ऐसी कई तस्वीरें सामने आईं, जहां आजकल लाशों की कतार देखी गयी. हर चेहरा मायूस दिखाई दिया. अपनों की लाशों को लेकर श्मशान घाट पर लंबा इंतजार करते हुए लोग देखे जा सकते हैं. सबके जहन में सवाल उस व्यवस्था को लेकर है, जो बुरी तरह से झकझोर रही है. ऐसी तस्वीर आपने इन दिनों पहले भी लगातार देखी होगी.
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देश की राजधानी दिल्ली से लेकर गाजियाबाद के श्मशान घाट से ऐसी ही तस्वीरें सामने आई हैं. लेकिन हम आपको दूसरी तस्वीर के बारे में बताते हैं, जो अलग भले हैं लेकिन बेबसी जाहिर करती हैं. हम गाजियाबाद के शालीमार गार्डन इलाके में स्थित श्मशान घाट की बात कर रहे हैं. जहां लगे उद्घाटन के पत्थर को देखकर साफ पता चलता है कि इस श्मशान घाट की शुरुआत साल 2009 में हुई थी. लेकिन तब से लेकर अब तक यहां कोई व्यवस्था नहीं हुई.
सरकारी लापरवाही के कारण लोग परेशान
हाल ये है कि यहां पर लोग अंतिम संस्कार के लिए भी नहीं आते थे. क्योंकि सरकारी लापरवाही के चलते यहां ना तो लकड़ियों का इंतजाम किया गया और ना ही अंतिम संस्कार के लिए कोई पुरोहित मिल पाते हैं. जब अन्य श्मशान घाट पर लाशों का ढेर लग गया, तब मजबूरी में कुछ लोग यहां अंतिम संस्कार के लिए पहुंचते हैं, लेकिन हैरत की बात ये है कि जो लोग यहां किसी शव के अंतिम संस्कार के लिए आते हैं, उन्हें अंतिम संस्कार करवाने के लिए पुरोहित और चिता के लिए लकड़ियां साथ में लानी पड़ती हैं. जाहिर है इस श्मशान घाट के बारे में जानकर आप समझ गए होंगे, लापरवाही सिर्फ वहां नहीं हुई, जहां शवों की कतार लगी है, बल्कि लापरवाही वहां भी हुई जहां एक भी शव नहीं है.
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कब खत्म होगा यह काल
साल 2020 में कोरोना अटैक किया था, लेकिन उस समय ही कोरोना महामारी ने काफी कुछ सिखाया था. जिससे सबक लेने की जरूरत थी, मगर सरकारी विभागों ने सबक नहीं लिया और तैयारी पूरी नहीं की. साल 2021 में इसका जीता जागता उदाहरण देखने को मिल रहा है. अगर पहले से सभी महकमों ने मिलकर व्यवस्थाओं को दुरुस्त करने का काम किया होता, तो शायद आज ऐसी बेबसी की तस्वीर नहीं सामने आती.