नई दिल्ली: भारत में आमतौर पर देखने को मिलता है कि प्राइवेट और सरकारी स्कूलों में खेलकूद की तमाम व्यवस्था और साधन मौजूद होते हैं. लेकिन मदरसे में या फिर संस्कृत पाठशालाओं में खेलकूद के मुकम्मल संसाधनों के अभाव और कम जागरूकता के चलते यहां पढ़ने वाले छात्र खेलों में बेहतरीन प्रदर्शन नहीं कर पाते. हालांकि इस बात से भी इंकार नहीं किया जा सकता कि मदरसे और संस्कृत पाठशालाओं में पढ़ने वाले छात्रों में टैलेंट भरपूर होता है.
मदरसा और संस्कृत पाठशालाओं को खेल की मुख्यधारा से जोड़ने के लिए 'स्पोर्ट्स द वे ऑफ लाइफ' संस्था द्वारा एक अनूठी पहल की शुरुआत की गई है. मदरसे में पढ़ने वाले बच्चे अब अलिफ से आईस हॉकी (अलिफ-उर्दू अक्षर), बे से बैडमिंटन (बे-उर्दू अक्षर) पे से पोलो (पे-उर्दू अक्षर) और वाव से वेटलिफ्टिंग (वाव-उर्दू अक्षर) पढ़ सकेंगे. जबकि संस्कृत पाठशाला में उ से 'उच्चकुर्दनम', घ से 'घनुघर्र:' त से तरणम पढ़ सकेंगे.
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'स्पोर्ट्स द वे ऑफ लाइफ' संस्था के अध्यक्ष कनिष्क पांडे का कहना है कि यदि देश में खेल संस्कृति को विकसित करना है और स्पोर्ट्स में सुपर पावर बनना है तो किसी भी पोटेंशियल टारगेट को इग्नोर नहीं किया जा सकता. यह नहीं कहा जा सकता कि मदरसे और संस्कृत पाठशालाओं में पढ़ने वाले बच्चों में स्पोर्ट्स आदि की क्षमता नहीं है. मदरसों और पाठशाला में पढ़ने वाले बच्चों को खेलों के प्रति जागरूक करने की आवश्यकता है. इन संस्थानों को खेलों की धारा में लाने की शुरुआत की जा रही है.
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कनिष्क पांडे ने बताया कि मदरसों में पढ़ने वाले बच्चे उर्दू भाषा से जुड़े होने के कारण उसी भाषा में स्पोर्ट्स से परिचित हो इसके लिए "खेल कायदा" नाम से उर्दू में पुस्तक तैयार की गई है. इसी तरह संस्कृत विद्यालयों में संस्कृत भाषा से पढ़ने वाले बच्चों के लिए संस्कृत में "क्रीड़ा परिचारिका" पुस्तक तैयार की गई है. यही नहीं बच्चों को पढ़ाने वाले उर्दू और संस्कृत के अध्यापक भी अपनी भाषा में खेल से जुड़ें इसके लिए उर्दू में "खेल सफा" किताब और संस्कृत में "क्रीड़ा एका जीवन पद्धति" पुस्तक तैयार की गई है. खेलों से जो जिस माध्यम में जुड़ना चाहे उसकी उपलब्धता होनी चाहिए.