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'नारी तू नारायणी': महिलाओं की आत्मनिर्भरता के लिए शिक्षा और हुनर दोनों जरूरी - महिलाओं की आत्मनिर्भरता के लिए शिक्षा व हुनर जरूरी

गाजियाबाद के इंदिरापुरम में रहने वाली डॉ. भारती गर्ग गरीब महिलाओं को सशक्त (Women Empowerment) करने का काम कर रही हैं. उन्होंने 2017 में अस्मी फाउंडेशन की स्थापना की और पिछले पांच साल से यह महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में काम कर रही है.

महिला सशक्तिकरण कर रही अश्मी फाउंडेशन
महिला सशक्तिकरण कर रही अश्मी फाउंडेशन

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Published : Sep 27, 2022, 6:51 AM IST

Updated : Sep 27, 2022, 10:10 AM IST

नई दिल्ली/गाजियाबादः गाजियाबाद के इंदिरापुरम इलाके में रहने वाली डॉ. भारती गर्ग कई सालों से गरीब तबके की महिलाओं की जिंदगी संवार (Women Empowerment) रहीं हैं. डॉ भारती अब तक तकरीबन 200 से अधिक महिलाओं को आत्मनिर्भर बना (Dr Bharti Garg is making women self reliant) चुकी हैं. वह बताती हैं कि इंदिरापुरम में बड़ी संख्या में रेसिडेंशियल सोसाइटी मौजूद हैं. सोसायटी में सैकड़ों की संख्या में महिलाएं काम करती हैं. अधिकतर महिलाएं झाड़ू और पोछा कर अपना और अपने परिवार का पेट भरती हैं.

आर्थिक हालात इन महिलाओं को बच्चों को अच्छी शिक्षा देने की इजाजत नहीं देते. ऐसे में एक दिन मन में ख्याल आया क्यों न वह इन महिलाओं और उनके बच्चों के लिए कुछ ऐसा करें, जिससे कि इनकी जिंदगी और बेहतर हो जाए.

महिला सशक्तिकरण कर रही अस्मी फाउंडेशन
महिलाएं बन रही आत्मनिर्भरः डॉ. गर्ग ने 2016 में समाजसेवा की शुरुआत की और 2017 में उन्होंने अस्मी फाउंडेशन (Asmee Foundation) के नाम से संस्था रजिस्टर्ड करवाई. बीते 5 सालों से अस्मी फाउंडेशन महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने के लिए लगातार कार्य कर रही है. अस्मी फाउंडेशन द्वारा महिलाओं और लड़कियों को कई प्रकार के हुनर जैसे सिलाई, कढ़ाई, बुनाई, मेहंदी लगाना आदि सिखाया जाता है.

इंदिरापुरम के ग्रामीण इलाके में डॉ भारती द्वारा स्किल डेवलपमेंट सेंटर संचालित किया जाता है. जहां अलग-अलग शिफ्टों में महिलाओं और लड़कियों को प्रशिक्षित किया जाता है. अब तक तकरीबन 200 महिलाओं और लड़कियों को प्रशिक्षित कर आत्मनिर्भर बनाया गया है.

• शिक्षा से बदल रहा बच्चों का भविष्य अस्मी फाउंडेशन द्वारा इलाके से गरीब तबके के बच्चों को शिक्षित भी किया जाता है. डॉ भारती बताती हैं कि अगर हम किसी की जिंदगी को बेहतर बनाना चाहते हैं तो उसे शिक्षित करना सबसे अहम है. संस्था की शुरुआत से अब तक तकरीबन डेढ़ सौ बच्चों को प्रारंभिक शिक्षा देने के बाद उन्हें निजी स्कूलों में दाखिला (स्पॉन्सरशिप के माध्यम) से दिलाया जा चुका है.

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• बदल रही सुनीता की जिंदगी

इंदिरापुरम के कनावनी गांव में रहने वाली सुनीता देवी बिहार की रहने वाली हैं. सुनीता छह महीने से सिलाई सीख रही है और अब उन्हें सिलाई का अच्छा खासा काम आ गया है. सुनीता घरों में झाड़ू बर्तन का काम करती हैं. इसके साथ ही शाम को सेंटर पर जाकर सिलाई सीखती है. मौजूदा समय में सुनीता के पास आस-पड़ोस के लोग कपड़े सिलवाने के लिए आने लगे हैं. सिलाई का थोड़ा बहुत काम करके सुनी तकरीबन 4000 रुपए महीने कमा रही है. पूरी तरह से सिलाई का काम सीखने के बाद सुनीता बुटीक खोलना चाहती हैं.

Last Updated : Sep 27, 2022, 10:10 AM IST

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