नई दिल्ली: अमेरिका के 'हेल्थ इफेक्ट इंस्टीट्यूट' की एक रिपोर्ट में दावा किया गया है कि दिल्ली और कोलकाता में पार्टिकुलेट मैटर PM 2.5 प्रदूषण की वजह से 2019 में प्रति एक लाख आबादी पर क्रमश: 106 और 99 लोगों की मौत हुई. 2019 में, दिल्ली ने 110 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर की वार्षिक औसत पीएम 2.5 सांद्रता दर्ज की, जो दुनिया के सबसे अधिक आबादी वाले शहरों में सबसे ज्यादा है.
अक्टूबर की शुरुआत के बाद दिल्ली एनसीआरमें एक बार फिर प्रदूषण का ग्राफ ऊपर चढ़ना शुरू हो गया है. बीते कई सालों के दौरान यह देखने को मिला है कि दिवाली के बाद दिल्ली-एनसीआर गैस चैंबर में तब्दील हो जाता है. इसके चलते लोगों को कई प्रकार की स्वास्थ्य संबंधित समस्याओं का सामना करना पड़ता है.
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PM 2.5 और PM 10 के बढ़ने से बढ़ता है वायु प्रदूषण: वरिष्ठ सर्जन डॉ बीपी त्यागी बताते हैं कि हवा में मौजूद पार्टिकुलेट मैटर PM 2.5 और PM 10 समेत कई प्रकार की गैसों (सल्फरडाइऑक्साइड, कार्बनडाइऑक्साइड, नाइट्रस ऑक्साइड) की मात्रा बढ़ने से हवा प्रदूषित हो जाती है. पार्टिकुलेट मैटर PM 2.5 और PM 10 नाक के रास्ते साइनस (Sinus) में जाते हैं. साइनस द्वारा बड़े पार्टिकुलेट मैटर को फिल्टर कर लिया जाता है, जबकि छोटे कण फेफड़ों के आखरी हिस्से (Bronchioles) तक पहुंच जाते हैं.
Sinusitis और Bronchitis का खतरा: डॉ त्यागी के मुताबिक, साइनस में जब पार्टिकुलेट मैटर अधिक मात्रा में इकट्ठा हो जाते हैं तब साइनोसाइटिस (Sinusitis) का खतरा बढ़ जाता है. जबकि अगर यह फेफड़ों के आखिरी हिस्से तक पहुंचते हैं तो उससे ब्रोंकाइटिस (Bronchitis) का खतरा बढ़ जाता है. ब्रोंकाइटिस के चलते शरीर में ऑक्सीजन का प्रवाह कम हो जाता है, जिससे शरीर में ऑक्सीजन की मात्रा कम हो जाती है. शरीर में ऑक्सीजन की मात्रा कम होने पर कई प्रकार की परेशानी सामने आती है.