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साहित्य अकादमी के भाषा सम्मान की घोषणा, भोजपुरी और तिवा भाषा को मिला गौरव - लेखक डॉ अशोक द्विवेदी

साहित्य अकादमी का भाषा सम्मान भोजपुरी को दिया गया है. यह सम्मान लेखक डॉ अशोक द्विवेदी और श्री अनिल ओझा 'नीरद' को संयुक्त रूप से दिया गया है. वहीं तिवा भाषा में प्रख्यात विद्वान होरसिंह खोलर को सम्मानित किया गया है.

Sahitya Akademi language award announced in delhi
साहित्य अकादमी के भाषा सम्मान की घोषणा

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Published : Sep 20, 2021, 11:00 PM IST

नई दिल्ली:साहित्य अकादमी की ओर से भाषा सम्मान की घोषणा कर दी गई है और यह सम्मान भोजपुरी भाषा को दिया गया है, जिसमें लेखक डॉ अशोक द्विवेदी और श्री अनिल ओझा 'नीरद' को संयुक्त रूप से यह सम्मान दिया गया है और तिवा भाषा में प्रख्यात विद्वान होरसिंह खोलर को सम्मानित किया गया है.

अकादमी के अध्यक्ष डॉ चंद्रशेखर अंबार की अध्यक्षता में आयोजित कार्यकारी मंडल की बैठक में गैर मान्यता प्राप्त भाषाओं के लेखकों विद्वानों को संबंधित भाषाओं के सरवन और उनके बहुमूल्य योगदान के लिए यह पुरस्कार अनुमोदित किया गया है विजेताओं को एक लाख की इनामी राशि प्रदान की जाएगी. इसके साथ ही उत्कीर्ण ताम्रफलक विजेताओं को दिया जाएगा.

साहित्य अकादेमी भाषा सम्मान डॉ अशोक द्विवेदी जोकि भोजपुरी और हिंदी भाषाओं के प्रख्यात लेखक और संपादक हैं, उन्होंने बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी से डायरेक्टरेट की डिग्री प्राप्त की है, उनकी भोजपुरी और हिंदी में 13 पुस्तकें प्रकाशित हैं, इसके साथ ही कुछ रचनाएं भी हैं, जिसमें 'घनानंद' और उनकी कविता 'अढाई आखर' , 'रामजी के सगुना' , 'बनचरी' आदि काफी मशहूर है, उनकी रचनात्मक प्रतिभा संगठनात्मक क्षमता और भोजपुरी भाषा और साहित्य के लिए उनका समर्पण सराहनीय है.

इसके साथ ही अनिल ओझा 'नीरद' एक प्रख्यात भोजपुरी विद्वान है, उन्होंने कोलकाता विश्वविद्यालय से हिंदी में परास्नातक की डिग्री प्राप्त की. भोजपुरी में उनकी 6 रचनाएं प्रकाशित हैं. उनकी कुछ रचनाएं हैं 'माटी के दिया' 'वीर सिपाही मंगल पांडे' 'पिंजरा के मोल' 'गुरु दक्षिणा' तथा 'कहत कबीर' आदि जो काफी मशहूर हैं. उन्होंने विभिन्न विधाओं में रचनात्मक लेखन के साथ-साथ भोजपुरी से इतर क्षेत्रों में भोजपुरी के प्रचार प्रसार के लिए अतुल्य योगदान दिया है.

इसके साथ ही होरसिंह खोलर जो एक प्रख्यात तिवा विद्वान है, उनकी आठ रचनाएं प्रकाशित हैं उनकी तिवा में रचनाएं हैं,पलांग्शी, 'सिगारुने संजुली' 'चोंगमई', 'अदला रे थेनदुने सदरा' और 'पनत शाला' आदि जो पिछले 2 दशकों से तिवा भाषा के साहित्य परास को निर्मित करने में उनका महत्वपूर्ण योगदान है.

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