नई दिल्ली: जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के सेंटर फॉर चाइनीस एंड साउथ ईस्ट एशियन स्टडीज, स्कूल ऑफ़ लैंग्वेज लिटरेचर एंड कल्चरल स्टडीज द्वारा रामायण महाभारत और भारतीय और दक्षिण पूर्वी एशियाई के संदर्भ में सामाजिक एकता को लेकर वेबीनार आयोजित किया गया. वहीं इस वेबीनार को लेकर जेएनयू के कुलपति प्रोफेसर एम जगदीश कुमार ने कहा कि रामायण और महाभारत केवल भारत तक ही सीमित नहीं है, बल्कि साउथईस्ट एशिया के नृत्य, नाट्य, पोशाक,कला आदि में भी इसकी झलकियां मिलती है और धर्म से ऊपर उठकर देखें तो यह दोनों महान ग्रंथ प्राचीन काल से ही सामाजिक एकता को बढ़ाने और अनेकता में भी एकता बनाए रखने की प्रेरणा देते आ रहे हैं.
कोरोना वायरस के दौरान जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय द्वारा अलग-अलग विषयों पर कई वेबीनार आयोजित किए जा रहे हैं. जिससे महामारी के समय में भी सकारात्मक सोच को बढ़ावा दिया जा सके. इसी कड़ी में आज रामायण और महाभारत कैसे सामाजिक सद्भाव को मजबूत करने में सक्षम है इस पर वेबीनार आयोजित किया गया. वहीं दो घंटे चले इस वेबिनार को लेकर जेएनयू कुलपति प्रोफेसर एम जगदीश कुमार ने बताया कि रामायण और महाभारत को कई भाषाओं में भारत ही नहीं बल्कि विश्व के कई देशों में लिखा और माना जाता है. उन्होंने बताया कि कई धर्मों के प्रचलन के बावजूद दक्षिण पूर्व एशिया विशेष रूप से इंडोनेशिया और थाईलैंड में इन महाकाव्यों का गहरा प्रभाव लोगों के विवेक पर दिखता है.
'ये महाकाव्य आज भी मनुष्य के विवेक पर कर रहे हैं राज'
प्रोफेसर एम जगदीश कुमार ने बताया कि इस वेबीनार में इस बात पर चर्चा हुई कि कैसे यह दो महाकाव्य सामाजिक सद्भाव को मजबूत करने में सक्षम है और इतना समय बीत जाने पर भी माननीय विवेक पर राज कर रहे हैं. उनका कहना है कि भारत और दक्षिण पूर्व एशिया के क्षेत्र में इन दो महाकाव्यों की शुरुआत केवल संजोग नहीं है बल्कि हजारों वर्षों से पोषित ज्ञान परंपरा की झलक है.