नई दिल्ली : बैंकों को कर्ज लेने वालों को मुआवजा देना पड़ सकता है और अगर वे कर्ज लेने वालों के संपत्ति के मूल दस्तावेज खो देते हैं, तो उन्हें जुर्माना भी भरना पड़ सकता है. लेकिन इसके लिए जरूरी है कि आरबीआई उच्च स्तरीय समिति की सिफारिशों को स्वीकार कर लें. जिसे आरबीआई ने पिछले साल मई में बैंकों और अन्य उधार देने वाले संस्थानों में ग्राहक सेवा मानकों की समीक्षा के लिए उच्च स्तरीय समिति गठित की थी.
आरबीआई पैनल ने की ये सिफारिशे
आरबीआई ने पूर्व डिप्टी गवर्नर बी पी कानूनगो के नेतृत्व में एक उच्च स्तरीय समिति गठित की थी. इस पैनल ने इस साल अप्रैल में केंद्रीय बैंक को अपनी रिपोर्ट पेश की, जिसमें सुझाव दिया गया है कि लेंडर की संपत्ति संबंधी डाक्यूमेंट खो जाने पर बैंकों को न केवल उनकी लागत पर दस्तावेजों की सर्टिफाइड रजिस्टर्ड कॉपिज प्राप्त करने में सहायता करने के लिए बाध्य होना चाहिए, बल्कि डाक्यूमेंट्स की वैकल्पिक प्रतियों की व्यवस्था करने में लगने वाले समय को ध्यान में रखते हुए ग्राहक को पर्याप्त मुआवजा भी देना चाहिए.
सिफारिशों पर राय देने का समय 7 जुलाई तक
पैनल ने ये भी सुझाव दिया है कि आरबीआई ऋण खाता बंद करने की तारीख से उधारकर्ता को संपत्ति के डाक्यूमेंट वापस करने के लिए बैंकों के लिए एक समय सीमा निर्धारित करने पर विचार कर सकता है. इसमें देरी होने पर बैंकों को लेंडर को जुर्माने के रूप में मुआवजे का भुगतान किया जाना चाहिए. आम तौर पर बैंक मूल संपत्ति दस्तावेजों के लिए अनुरोध करते हैं और उन्हें तब तक रखते हैं जब तक कि लोन पूरी तरह चुकाया नहीं जाता. आरबीआई ने समिति की सिफारिशों पर 7 जुलाई तक लोगों की राय मांगी है.