नई दिल्ली : विदेशों में खाद्य तेल कीमतों के दाम में आये सुधार के बाद दिल्ली तेल-तिलहन बाजार में बीते सप्ताह लगभग सभी तेल-तिलहनों की कीमतें पिछले सप्ताहांत के मुकाबले लाभ के साथ बंद हुईं. बाजार के जानकार सूत्रों ने कहा कि विदेशों में सूरजमुखी तेल का जो दाम पहले 880 डॉलर प्रति टन था वह अब बढ़कर 980 डॉलर प्रति टन हो गया है. जबकि सोयाबीन तेल का दाम पहले के लगभग 1,025 डॉलर प्रति टन से बढ़कर 1,100 डॉलर प्रति टन हो गया है. इस तेजी का कारण इन खाद्य तेलों के नीचे भाव होने से वैश्विक लिवाली में आई तेजी और अमेरिका में मौसम का शुष्क होना है.
सूत्रों ने बताया कि आयातित तेलों के मुकाबले सरसों में सामान्य वृद्धि हुई, क्योंकि मंडियों में सरसों अब भी न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) से काफी नीचे बिक रहा है. सरकार को देश में देशी तेल-तिलहनों का बाजार बनाने की ओर पर्याप्त ध्यान देना होगा. इससे तिलहन किसानों को अपने तिलहन उत्पाद खपने का भरोसा बढ़ेगा और दाम अच्छा मिलने से वे इसका उत्पादन बढ़ाने को प्रेरित होंगे. सरसों के विकल्प में बारे में सोचना मुश्किल है और इसका उत्पादन भारत में ही होता है. इसकी जगह और कोई खाद्य तेल-तिलहन नहीं ले सकता क्योंकि लोग सरसों के स्थान पर किसी अन्य तेल का इस्तेमाल नहीं कर सकते.
सूत्रों ने कहा कि उपभोक्ताओं को सस्ता खाद्य तेल सुलभ कराने के मकसद से लगभग डेढ़ साल पहले उत्तर प्रदेश में खाद्य तेल प्रसंस्करण मिलों से निविदा मंगवाकर राशन की दुकानों के जरिये इनके वितरण का प्रयोग काफी सफल रहा था. इस दिशा में आगे और प्रयास करने की आवश्यकता है. सूत्रों ने कहा कि पिछले वर्ष सरसों इसलिए खप गया क्योंकि इसका दाम आयातित सूरजमुखी तेल से 40 रुपये किलो नीचे था. इस कारण 30-35 लाख टन सरसों का रिफाइंड भी बना था और सस्ता होने के कारण इसकी खपत काफी बढ़ी थी. वैसे सामान्य तौर पर हमारे देश में साल में 55-60 लाख टन सरसों की खपत होती है. लेकिन इस बार आयातित सूरजमुखी तेल के साथ-साथ आयातित सोयाबीन तेल इतनी सस्ती है कि ऊंची लागत वाली सरसों मंडियों में नहीं खप पा रहे हैं.
सूत्रों ने कहा कि पिछले साल साल्वेंट एक्सट्रैक्टर्स एसोसिएशन (SEA) ने सरसों के डी-आयल्ड केक (डीओसी) के निर्यात के आंकड़े जारी किये थे. लेकिन इस बार मई में कितना डीओसी निर्यात हुआ इसके आंकड़े नहीं जारी किये गये हैं, जिससे पता लगेगा कि देश की मंडियों में सरसों के खपने की क्या स्थिति है. वैसे देखा जाये तो SEA की जगह सरसों से सीधा संबंध रखने वाले तेल संगठन- ‘मोपा’ को ये आंकड़े देने चाहिये थे.
विदेशी बाजारों में सोयाबीन तेल के साथ-साथ इसके डीओसी के दाम मजबूत हुए हैं. इसके साथ देश में किसान नीचे भाव में बिकवाली नहीं कर रहे हैं, जो सोयाबीन तेल- तिलहन कीमतों में सुधार का मुख्य कारण है. सूत्रों ने कहा कि निर्यात की अच्छी मांग के कारण मूंगफली तेल-तिलहन कीमतों में भी पिछले सप्ताहांत के मुकाबले समीक्षाधीन सप्ताहांत में सुधार है. उन्होंने कहा कि बिनौला की आवक घटने से बिनौला तेल कीमतों में भी सुधार आया. बिनौला की आवक पिछले महीने (मई) के लगभग डेढ़ लाख गांठ के मुकाबले अब लगभग 30-32 हजार गांठ रह गई है. हरियाणा, पंजाब, राजस्थान में इसकी आवक नगण्य रह गई है.