नई दिल्लीः एक फरवरी 2023 को वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण संसद में आम बजट पेश करेंगी. आजादी के बाद से आज तक कई बजट पेश किये जा चुके हैं. इस बार का बजट चुनावी होगा या कुछ और. यह बजट पेश होने के बाद पता चलेगा. लेकिन आजादी के बाद से कई बजट ऐसे पेश हुए, जिसने देश को आर्थिक रूप से समृद्ध और मजबूत किया. पेश है ऐसे बजट के बारे में कुछ महत्वपूर्ण जानकारियां.
- 1947 में स्वतंत्र भारत का पहला बजट पेश
आजादी के बाद भारत का पहला बजट प्रथम वित्त मंत्री आरके षणमुखम चेट्टी ने 1947 में प्रस्तुत किया था. साढ़े सात महीने के लिए 15 अगस्त 1947 से 31 मार्च 1948 तक की अवधि के लिए यह बजट पेश किया गया था. बजट में कुल राजस्व का अनुमान 171.15 करोड़ रुपये का था. वहीं राजकोषीय घाटा 204.59 करोड़ रुपये था. आजादी के तुरंत बाद सीमित संसाधन में बजट तैयार करना काफी चुनौतीपूर्ण था. - 1951 में भारत गणराज्य का पहला बजट
गणराज्य बनने के बाद कांग्रेस सरकार में तत्कालीन वित्त मंत्री ने सदन के पटल पर बजट प्रस्तुत किया. इस बजट के दौरान विकास के रोड मैप के लिए योजना आयोग के गठन को मंजूरी दी गई. योजना आयोग सभी संसाधनों का आकलन कर विकास की रूपरेखातैयार करता है. इसमें सेक्टर का निर्धारण किया जाता है. देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू योजना आयोग के पहले अध्यक्ष थे. 13 अगस्त 2014 को योजना आयोग कर खत्म कर इसके स्थान पर नीति आयोग का गठन किया गया. नीति आयोग भारत सरकार की दीर्घकालिक प्लानिंग के लिए एक थिंक टैंक है. - भारत के तीसरे वित्त मंत्री सीडी देशमुख ने बजट में कई अहम बदलाव किए. उनका कार्यकाल 1951 से 1957 तक था. उनके समय में ही पहली बार बजट को हिंदी में भी छापा गया था.
- 1968 में बजट को जन केंद्रित किया गया: तत्कालीन केंद्रीय वित्त मंत्री के रूप में मोरारजी देसाई ने 1968 में नीतिगत बदलाव किये. इस बजट को जन केंद्रित करते हुए उद्योगों पर अधिकारियों की निगरानी को कम करते हुए स्व-मूल्यांकन की प्रणाली शुरू की गई, जो सभी बड़े और छोटे निर्माताओं के लिए उन दिनों राहत वाली खबर थी. इससे पहले आबकारी विभाग के अधिकारी फैक्ट्री के गेट से निकलने वाले प्रत्येक सामान की जांच-पड़ताल करते थे. बजट में देसाई ने जीवनसाथी भत्ता को समाप्त कर दिया. इस दौरान उन्होंने अपने बजट भाषण में कहा कि 'जब पति और पत्नी दोनों टैक्सपेयर हैं तो यह सही नहीं होगा कि कोई बाहरी व्यक्ति तय करे कि कौन-किस पर निर्भर रहेगा.'
- मोरारजी देसाई के नाम एक और रिकॉर्ड है. उन्होंने सबसे ज्यादा बार बजट पेश किया. देसाई 1962 से लेकर 1969 तक वित्त मंत्री थे. उन्होंने 10 बार बजट पेश किया.
- 1973 का ब्लैक बजट
तत्कालीन वित्त मंत्री यशवंतराव बी.चव्हाण ने 28 फरवरी 1973को वित्तीय वर्ष 1973-1974 का बजट सदन के पटल पर प्रस्तुत किया. अनुमानित बजट घाटा 550 करोड़ रुपये का था. बजट में सामान्य बीमा कंपनियों, भारतीय कॉरपोरेशन और कोल माइन्स के राष्ट्रीयकरण के लिए 56 करोड़ का पैकेज दिया गया. इससे बाजार में कोयले के व्यापार में प्रतियोगिता समाप्त हो गई. सरकार की ओर से यह कदम बिजली, सीमेंट और स्टील जैसे उद्योगों में कोयले की बढ़ती मांग और निर्बाध आपूर्ति के लिए कोयले को सरकार के नियंत्रण में किया गया. - 1986 का बजट
वित्त मंत्री वीपी सिंह ने 28 फरवरी 1986 का बजट पेश किया. इस बजट में लाइसेंस राज के खात्मे की शुरुआत की गई. अप्रत्यक्ष कर सुधारों की शुरुआत करते हुए कर प्रणाली में बदलाव की नींव रखी गई. - 1987 'गांधी' बजट
यह बजट तत्कालीन पीएम राजीव गांधी ने सदन में पेश किया था. देश में कई लाभदायक कंपनियां 1987 से पहले कर दायरे से बाहर थीं. सरकार की ओर से इन कंपनियों को कर दायरे में लाया गया. इसके बाद सरकार के लिए ये कंपनियां राजस्व का प्रमुख स्रोत बना. - 1991 उदारीकरण की शुरुआत
प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव के कैबिनेट में वित्त मंत्रीमनमोहन सिंह ने 24 जुलाई 1991 को बजट को सदन के पटल पर रखा. इस बजट को उदारीकरण की शुरुआत माना जाता है. बजट में आयात-निर्यात के नीति में काफी बदलाव किये गये. आयात के लिए लाइसेंसिग नीति में राहत दी गई और निर्यात को बढ़ावा देने वाले कई कई कदम उठाये गये. इस दौरान भारतीय उद्योगों के लिए वैश्विक प्रतिस्पर्धा में शामिल होने के कई अवसर प्रदान किये गये. इस बजट को भारत के इतिहास में टर्निंग प्वाइंट के रूप में भी देखा जाता है. - 2000 का मिलेनियम बजट
वित्त मंत्री यशवंत सिन्हा ने 29 फरवरी 2000 को भारत को एक प्रमुख सॉफ्टवेयर हब के रूप में बढ़ावा देने के इरादे से कई कदम उठाये. इसके बाद भारत में सॉफ्टवेयर निर्यात की शुरूआत हुई. इस कारण भारतीय आईटी क्षेत्र में असाधारण वृद्धि देखी गई. - मोदी सरकार ने साल 2017 में फरवरी महीने की आखिरी तारीख की बजाय पहली तारीख को संसद में बजट पेश करने की शुरुआत की. तब अरुण जेटली वित्त मंत्री थे.
- सदी में एक बार मिलने वाला बजट
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने 1 फरवरी 2021 को पेश किया, जिसे उन्होंने 'सदी में एक बार मिलने वाला बजट' कहा था. बजट में बुनियादी ढांचे और स्वास्थ्य सेवा में निवेश के माध्यम से एशिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था को पुनर्जीवित करने के लक्ष्य पर केंद्रित कर निजीकरण की रणनीति और मजबूत कर संग्रह को आगे बढ़ाया गया.