नई दिल्ली: वित्तीय प्रणाली में तरलता को बढ़ावा देने के लिए उदार रुख अपनाते हुए बेंचमार्क ब्याज दरों को कम रखने की रिजर्व बैंक की नीति अगले दो माह में बदल सकती है, क्योंकि खुदरा मुद्रास्फीति इस साल मार्च में 7 प्रतिशत पर पहुंच गई. छह सदस्यीय मौद्रिक नीति समिति के लिए इस साल जून में फिर से बैठक करना मुश्किल होगा, जो कि चालू वित्त वर्ष की दूसरी बैठक है. मुश्किल इसीलिए क्योंकि उपरी स्तर पर सीपीआई मुद्रास्फीति मार्च में तेजी से बढ़ी है जो कि खाद्य और मूल मुद्रास्फीति में तेज वृद्धि से प्रेरित है. ऑक्सफोर्ड इकोनॉमिक्स में भारत और दक्षिण पूर्व एशिया की प्रमुख प्रियंका किशोर का कहना है कि थिंक टैंक ने पहले ही इस संभावना पर प्रकाश डाला है कि मुद्रास्फीति कुछ समय के लिए 7% तक बढ़ जाएगी और निकट भविष्य में कीमतों के दबाव में काफी कमी आने का कोई कारण नहीं दिखता है. इसीलिए प्रियंका जून में रेपो दर में 25 प्वाइंट की वृद्धि के अपने पूर्वानुमान पर कायम है.
उन्होंने ईटीवी को भेजे एक बयान में कहा, "8 अप्रैल की मौद्रिक नीति बैठक में एक उदार रुख बनाए रखने के बावजूद आरबीआई ने अपने वित्त वर्ष 23 मुद्रास्फीति के पूर्वानुमान को काफी हद तक संशोधित किया और नीतिगत गलियारे को 40 आधार अंकों तक सीमित कर दिया. इसी महीने 6 और 7 अप्रैल को दो दिनों के लिए हुई छह सदस्यीय मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) ने उच्च मुद्रास्फीति पर काबू करने के लिए दर में वृद्धि की उम्मीद के बावजूद रेपो दर और 4% और रिवर्स रेपो दर को 3.35% पर बनाए रखा. फरवरी में 6% से अधिक आरबीआई के लिए सरकार द्वारा निर्धारित अनिवार्यता की उपरी सीमा है.
हालांकि ऑक्सफोर्ड इकोनॉमिक्स ने जून की बैठक में रेपो दर में 25 आधार अंकों की बढ़ोतरी के अपने पूर्वानुमान को बरकरार रखा है, लेकिन एक अन्य अर्थशास्त्री, इंडिया रेटिंग्स के सुनील सिन्हा का मानना है कि रेपो दर में 50 आधार अंकों की बढ़ोतरी की गुंजाइश है. रेपो दर अल्पकालिक बेंचमार्क अंतर-बैंक उधार दर है जिस पर बैंक आरबीआई से पैसा उधार लेते हैं और रिवर्स रेपो दर बेंचमार्क ब्याज दर है जिस पर बैंक अपने अधिशेष धन को रिजर्व बैंक के पास रखते हैं.
आरबीआई के पास इस साल जून में रेपो दर को ऊपर की ओर संशोधित करके चक्र को उलटने के कई कारण हैं. गौर है कि मुद्रास्फीति इस साल मार्च में सालाना आधार पर बढ़कर 6.95% पहुंच गई. इस साल फरवरी में इसमें 6.07% की वृद्धि हुई थी जबकि पिछले साल इसी महीने में सीपीआई की वृद्धि हुई थी. बढ़ी हुई मुद्रास्फीति के पीछे का मुख्य कारण खाद्य कीमतों में वृद्धि थी. जैसा कि जानते है खाद्य मुद्रास्फीति 5.9% से बढ़कर 7.7% हो गई. कोर-ऑफ-द-कोर मुद्रास्फीति, जो मूल रूप से खाद्य, ईंधन और मोटर ईंधन को छोड़कर सीपीआई है, भी 5.6% से बढ़कर 6.2% पहुंच गई. हालांकि ईंधन मुद्रास्फीति में कुछ कमी थी क्योंकि यह फरवरी में 8.7% से कम होकर 7.5% हो गई थी.