नई दिल्ली : दुनिया के कई देशों के लिए खाद्य महंगाई एक चुनौती बनी हुई है. जिसमें अमेरिका और ब्रिटेन जैसे विकसित अर्थव्यवस्था वाले देश भी शामिल है. हालांकि भारत ने Food Inflation का प्रबंधन अच्छे तरीके से किया है. भारत उन देशों की लिस्ट में शामिल है जहां खाद्य मुद्रास्फीति 5 फीसदी से कम है. भारत में उपभोक्ता खाद्य मूल्य सूचकांक (CFPI) इस साल मार्च में घटकर 4.79 फीसदी हो गया, जो फरवरी में 5.95 फीसदी और मार्च 2022 में 7.68 फीसदी था.
इन देशों में इतनी फूड इंफ्लेशन
जब भारत में खाद्य महंगाई 5 फीसदी से कम है, ठीक इसी समय अमेरिका और यूरोपियन देशों में महंगाई अपनी उच्च स्तर पर बनी हुई है. अमेरिका में 8.5 फीसदी, ब्रिटेन में 19.1 फीसदी और अन्य यूरोपियन देशों में 17.5 फीसदी फूड इंफ्लेशन रहा. वहीं, लेबनान, वेनेजुएला, अर्जेंटीना और जिम्बाब्वे जैसे देशों में महंगाई 102 फीसदी से लेकर 352 फीसदी तक रही. इस महंगाई का कारण कोविड-19 और रसिया-यूक्रेन वॉर को माना जाता है. जिसका पूरे वैश्विक अर्थव्यवस्था पर नाकारात्मक असर पड़ा.
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फूड इंफ्लेशन बढ़ने के कारण
रूस -यूक्रेन के कारण वैश्विक स्तर पर गेहूं की आपूर्त बाधित हुई. जिस कारण पिछले एक साल में गेहूं की कीमतों में काफी उतार-चढ़ाव देखने को मिला. वहीं, पिछले साल रबी की फसल से पहले भारत में कई गेहूं उगाने वाले क्षेत्रों में गर्मी की लहरों ने फसलों को नुकसान पहुंचाया. जिसके चलते भारत ने गेहूं के एक्सपोर्ट को रोक दिया. एक तरफ विश्व में गेहूं के प्रमुख आपूर्तिकर्ता रूस -यूक्रेन युद्ध में उलझे रहें वहीं, भारत में गेहूं की पैदावार खराब होने के चलते वैश्विक स्तर पर गेहूं की आपूर्ति बाधित हुई और कीमतें आसमान छूने लगीं.
भारत में महंगाई कम होने के कारण
भारत सरकार ने Food Inflation को कंट्रोल में रखने के लिए कई कदम उठाए. जिसमें देश की समग्र खाद्य सुरक्षा का प्रबंधन करने के साथ-साथ यूक्रेन युद्ध के दौरान पड़ोसी और अन्य कमजोर देशों की जरूरतों को पूरा करने के लिए, भारत ने पिछले साल गेहूं के एक्सपोर्ट को रोक दिया, जो अभी भी लागू है. इसके अलावा देश में महंगाई पर काबू पाने में आरबीआई ने रेपो रेट का सही इस्तेमाल किया. बता दें कि रेपो रेट बढ़ा कर या घटा कर आरबीआई महंगाई को नियंत्रित करती है. अगर महंगाई बढ़ जाए तो RBI रेपो रेट बढ़ा देती है, जिससे अर्थव्यवस्था में मांग घट जाए और मांग घटने से महंगाई कम हो जाती है.
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