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High Crude Oil Prices : कच्चे तेल की ऊंची कीमतें बिगाड़ सकती हैं भारतीय अर्थव्यवस्था की मुद्रास्फीति का गणित

फिच समूह की रेटिंग एजेंसी इंडिया रेटिंग्स एंड रिसर्च ने चालू वित्त वर्ष की दूसरी छमाही (अक्टूबर 2023-मार्च 2024 अवधि) के लिए भारत के लिए कच्चे तेल की कीमतों के अपने अनुमान को लगभग 89 डॉलर प्रति बैरल से लगभग 95 डॉलर प्रति बैरल तक संशोधित किया है. पढ़ें कृष्णानंद की रिपोर्ट...

High Crude Oil Prices
प्रतिकात्मक तस्वीर

By ETV Bharat Hindi Team

Published : Sep 30, 2023, 11:33 AM IST

नई दिल्ली: ब्रेंट कच्चे तेल की अंतरराष्ट्रीय कीमत पिछले तीन महीनों में तेजी से बढ़ी है. जून के अंत में यह 72 अमेरिकी डॉलर प्रति बैरल से थोड़ा अधिक के निचले स्तर से 29 सितंबर को 95 अमेरिकी डॉलर प्रति बैरल तक पहुंच गई. यह तीन महीने में लगभग एक तिहाई की वृद्धि है. भारत कीमत काफी हद तक ब्रेंट कच्चे तेल का आयात करता है. इसलिए, ब्रेंट क्रूड बास्केट की कीमतों में किसी भी उतार-चढ़ाव का देश में खुदरा और थोक कीमतों पर असर पड़ता है. साथ ही इसका सीधा असर भारत की अर्थव्यवस्था पर भी पड़ता है.

रिजर्व बैंक की मुद्रास्फीति प्रबंधन नीतियों के साथ-साथ उच्च ऊर्जा कीमतों का अर्थव्यवस्था के अन्य क्षेत्रों पर भी व्यापक प्रभाव पड़ता है. उदारहण के लिए इस साल 3 मई को भारत ने प्रति बैरल 70 अमेरिकी डॉलर की कीमत से कच्चे तेल की खरीददारी की थी. लेकिन इस महीने (सितंबर) के अंत में यह बढ़कर 94-95 अमेरिकी डॉलर प्रति बैरल से अधिक हो गई है. इस तेज वृद्धि के कारण रेटिंग और आर्थिक अनुसंधान एजेंसियां भारत की जीडीपी वृद्धि और मुद्रास्फीति अनुमानों को संशोधित कर रही है.

फिच समूह की रेटिंग एजेंसी इंडिया रेटिंग्स एंड रिसर्च ने चालू वित्त वर्ष की दूसरी छमाही (अक्टूबर 2023-मार्च 2024 अवधि) के दौरान भारत के लिए कच्चे तेल की कीमतों के अपने अनुमान को लगभग 89 डॉलर प्रति बैरल से बढ़ाकर लगभग 95 डॉलर प्रति बैरल तक संशोधित किया है.

कच्चे तेल की कीमतों में तेजी का असर थोक कीमतों पर पड़ता है. थोक कीमतों को थोक मूल्य सूचकांक (डब्ल्यूपीआई) के रूप में मापा जाता है. वहीं खुदरा कीमतों को उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई) के रूप में मापा जाता है. अंतर्राष्ट्रीय कच्चे तेल की कीमतों में किसी भी तरह की वृद्धि का असर समग्र से बाजर में दिखता है. लेकिन खुदरा बाजार के मुकाबले थोक बाजार में इसका असर ज्यादा प्रत्यक्ष और तेजी से होता है. ऊर्जा उत्पादों की कीमतों में वृद्धि डब्ल्यूपीआई और सीपीआई में स्पष्ट रूप में अपनी अपनी धमक दर्ज कराती है.

इंडिया रेटिंग्स एंड रिसर्च के अर्थशास्त्रियों की गणना के अनुसार, कच्चे तेल की कीमतों में एक प्रतिशत की वृद्धि से खुदरा मूल्य सूचकांक में चार आधार अंक की वृद्धि होती है. हालांकि, ऐसा तब होता है जब नियामक संस्थाओं द्वारा इसे नियंत्रित करने का कोई प्रयास ना किया जाये. हालांकि, अक्सर देखा जाता है कि कच्चे तेल की बढ़ी हुई कीमतों का बोझ आम जनता पर कम से कम पड़े इसके लिए नियामक संस्थाएं कुछ ना कुछ प्रतिरोधी कदम उठाते हैं. जिसके फलस्वरूप जनता पर पड़ने वाले बोझ को 50 प्रतिशत तक कम किया जाता है. इससे सीपीआई यानी खुदरा मूल्य सूचकांक में दो आधार अंक की वृद्धि होती है. एक आधार अंक एक प्रतिशत अंक का सौवां हिस्सा है.

इससे उलट, कच्चे तेल की अंतरराष्ट्रीय कीमत में एक प्रतिशत की वृद्धि से भारत के थोक मूल्य सूचकांक (डब्ल्यूपीआई) में 10 आधार अंक की वृद्धि होती है. रेटिंग एजेंसी की गणना के अनुसार, कच्चे तेल की कीमतों में वृद्धि से भारत में चालू वित्त वर्ष की तीसरी तिमाही (अक्टूबर-दिसंबर 2023 अवधि) में थोक कीमतों में 3 प्रतिशत की वृद्धि होगी. जो चौथी तिमाही (जनवरी-मार्च 2024 अवधि) के दौरान 3.7 प्रतिशत तक बरकार रहने की आशंका है.

इसके साथ ही इंडिया रेटिंग्स एंड रिसर्च के अर्थशास्त्रियों ने आशंका जताई है कि कच्चे तेल की कीमतों में वृद्धि के वैश्विक कारण की वजह से अक्टूबर-दिसंबर 2023 की अवधि के दौरान खुदरा मुद्रास्फीति बढ़कर 5.9 से 6.1 प्रतिशत और जनवरी से मार्च 2024 के दौरान 5.3 से 5.5 प्रतिशत हो जाएगी. सब्जियों, फलों और खाद्यान्नों की ऊंची कीमतें देश में नीति निर्माताओं के लिए चिंता का कारण है. आरबीआई अधिनियम की धारा 45ZA के तहत इसे नियंत्रित रखने की जिम्मेदारी भारतीय रिजर्व बैंक की है.

ईटीवी भारत को भेजे गए एक बयान में, इंडिया रेटिंग्स एंड रिसर्च ने कहा कि एजेंसी का वित्त वर्ष 2023-24 के लिए खुदरा और थोक मुद्रास्फीति का वर्तमान पूर्वानुमान क्रमशः 5.5% और 1.0% है. हालांकि, अगर अक्टूबर 2023-मार्च 2024 के दौरान यदि भारत 94.50 डॉलर प्रति बैरल की औसत दर से कच्चा तेल आयात करता है तो चालू वित्त वर्ष के लिए औसत खुदरा मुद्रास्फीति बढ़कर 5.7 प्रतिशत हो जाएगी. एजेंसी ने कहा कि यदि कीमतों में वृद्धि का 50 प्रतिशत प्रभाव पड़ा तो भी यह 5.6 पहुंच जायेगी.

रूस-यूक्रेन युद्ध का तेल विपणन कंपनियों पर प्रभाव :रेटिंग एजेंसी की गणना के अनुसार, रूस-यूक्रेन संघर्ष के बाद सार्वजनिक क्षेत्र की तीन प्रमुख तेल विनिर्माण कंपनियों (ओएमसी) - इंडियन ऑयल, भारत पेट्रोलियम और हिंदुस्तान पेट्रोलियम को 129.1 अरब रुपये का कुल घाटा (ईबीआईटीडीए) हुआ. पिछले वित्तीय वर्ष की पहली तिमाही (अप्रैल-जून 2022 अवधि) में उन्होंने अप्रैल 2022 के बाद पेट्रोल और डीजल की खुदरा कीमतें नहीं बढ़ाईं.

बाद में जब अगस्त 2022 के बाद तेल की कीमतें कम होने लगीं, तब भी उन्होंने पेट्रोल और डीजल की खुदरा कीमतों पर यथास्थिति बनाए रखी. पेट्रोल और डीजल की खुदरा कीमत कम नहीं करने के फैसले से राज्य के स्वामित्व वाली तेल विपणन कंपनियों को लाभ कमाने में मदद मिली और चालू वित्त वर्ष की समान अवधि के दौरान तीनों ओएमसी का कुल ईबीआईटीडीए बढ़कर 491.5 अरब रुपये हो गया. एजेंसी के अर्थशास्त्रियों के मुताबिक, इस बार कच्चे तेल की कीमतों में बढ़ोतरी का बोझ उपभोक्ताओं, सरकार और तेल विपणन कंपनियों - सभी पर पड़ेगा.

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कच्चे तेल की ऊंची कीमतों का भारत में ब्याज दरों पर असर?एजेंसी ने कहा कि उसके विश्लेषण से पता चलता है कि कच्चे तेल की लागत में वृद्धि का असर खुदरा मुद्रास्फीति की तुलना में थोक मुद्रास्फीति पर अधिक होगा. क्योंकि थोक सूचकांक में खनिज तेल और पेट्रोलियम उत्पादों का वजन अधिक है, जबकि आरबीआई ब्याज दरों पर निर्णय लेने के लिए खुदरा कीमतों पर नजर रखता है. वैश्विक तेल कीमतों में उछाल के जवाब में खुदरा और थोक मुद्रास्फीति के अलग-अलग प्रभाव के नीतिगत निहितार्थ भी हैं. वैश्विक तेल कीमतों में बढ़ोतरी का मतलब कई उद्योगों के लिए लागत का बढ़ना होगा. इसलिए इंडिया रेटिंग्स एंड रिसर्च को उम्मीद है कि भारतीय रिजर्व बैंक चालू वित्त वर्ष की शेष अवधि के दौरान नीतिगत रुख और रेपो दर पर यथास्थिति बनाए रखेगा.

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