नई दिल्ली: ब्रेंट कच्चे तेल की अंतरराष्ट्रीय कीमत पिछले तीन महीनों में तेजी से बढ़ी है. जून के अंत में यह 72 अमेरिकी डॉलर प्रति बैरल से थोड़ा अधिक के निचले स्तर से 29 सितंबर को 95 अमेरिकी डॉलर प्रति बैरल तक पहुंच गई. यह तीन महीने में लगभग एक तिहाई की वृद्धि है. भारत कीमत काफी हद तक ब्रेंट कच्चे तेल का आयात करता है. इसलिए, ब्रेंट क्रूड बास्केट की कीमतों में किसी भी उतार-चढ़ाव का देश में खुदरा और थोक कीमतों पर असर पड़ता है. साथ ही इसका सीधा असर भारत की अर्थव्यवस्था पर भी पड़ता है.
रिजर्व बैंक की मुद्रास्फीति प्रबंधन नीतियों के साथ-साथ उच्च ऊर्जा कीमतों का अर्थव्यवस्था के अन्य क्षेत्रों पर भी व्यापक प्रभाव पड़ता है. उदारहण के लिए इस साल 3 मई को भारत ने प्रति बैरल 70 अमेरिकी डॉलर की कीमत से कच्चे तेल की खरीददारी की थी. लेकिन इस महीने (सितंबर) के अंत में यह बढ़कर 94-95 अमेरिकी डॉलर प्रति बैरल से अधिक हो गई है. इस तेज वृद्धि के कारण रेटिंग और आर्थिक अनुसंधान एजेंसियां भारत की जीडीपी वृद्धि और मुद्रास्फीति अनुमानों को संशोधित कर रही है.
फिच समूह की रेटिंग एजेंसी इंडिया रेटिंग्स एंड रिसर्च ने चालू वित्त वर्ष की दूसरी छमाही (अक्टूबर 2023-मार्च 2024 अवधि) के दौरान भारत के लिए कच्चे तेल की कीमतों के अपने अनुमान को लगभग 89 डॉलर प्रति बैरल से बढ़ाकर लगभग 95 डॉलर प्रति बैरल तक संशोधित किया है.
कच्चे तेल की कीमतों में तेजी का असर थोक कीमतों पर पड़ता है. थोक कीमतों को थोक मूल्य सूचकांक (डब्ल्यूपीआई) के रूप में मापा जाता है. वहीं खुदरा कीमतों को उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई) के रूप में मापा जाता है. अंतर्राष्ट्रीय कच्चे तेल की कीमतों में किसी भी तरह की वृद्धि का असर समग्र से बाजर में दिखता है. लेकिन खुदरा बाजार के मुकाबले थोक बाजार में इसका असर ज्यादा प्रत्यक्ष और तेजी से होता है. ऊर्जा उत्पादों की कीमतों में वृद्धि डब्ल्यूपीआई और सीपीआई में स्पष्ट रूप में अपनी अपनी धमक दर्ज कराती है.
इंडिया रेटिंग्स एंड रिसर्च के अर्थशास्त्रियों की गणना के अनुसार, कच्चे तेल की कीमतों में एक प्रतिशत की वृद्धि से खुदरा मूल्य सूचकांक में चार आधार अंक की वृद्धि होती है. हालांकि, ऐसा तब होता है जब नियामक संस्थाओं द्वारा इसे नियंत्रित करने का कोई प्रयास ना किया जाये. हालांकि, अक्सर देखा जाता है कि कच्चे तेल की बढ़ी हुई कीमतों का बोझ आम जनता पर कम से कम पड़े इसके लिए नियामक संस्थाएं कुछ ना कुछ प्रतिरोधी कदम उठाते हैं. जिसके फलस्वरूप जनता पर पड़ने वाले बोझ को 50 प्रतिशत तक कम किया जाता है. इससे सीपीआई यानी खुदरा मूल्य सूचकांक में दो आधार अंक की वृद्धि होती है. एक आधार अंक एक प्रतिशत अंक का सौवां हिस्सा है.
इससे उलट, कच्चे तेल की अंतरराष्ट्रीय कीमत में एक प्रतिशत की वृद्धि से भारत के थोक मूल्य सूचकांक (डब्ल्यूपीआई) में 10 आधार अंक की वृद्धि होती है. रेटिंग एजेंसी की गणना के अनुसार, कच्चे तेल की कीमतों में वृद्धि से भारत में चालू वित्त वर्ष की तीसरी तिमाही (अक्टूबर-दिसंबर 2023 अवधि) में थोक कीमतों में 3 प्रतिशत की वृद्धि होगी. जो चौथी तिमाही (जनवरी-मार्च 2024 अवधि) के दौरान 3.7 प्रतिशत तक बरकार रहने की आशंका है.