सिडनी : जब सोने के आभूषण की बात आती है तो सवाल यह खड़ा होता है कि वह कितना शुद्ध है ? और किसी को उसकी शुद्धता का कैसे पता चलेगा ? ऑस्ट्रेलिया की आधिकारिक बुलियन टकसाल और पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया के स्वामित्व वाली पर्थ मिंट के बारे में हाल के खुलासों से पता चला कि सोने के खरीददार और विक्रेता शुद्धता को बहुत गंभीरता से लेते हैं. शंघाई गोल्ड एक्सचेंज को बेचे गए करीब नौ अरब डॉलर के सोने में अशुद्धता को लेकर सवाल खड़े किए गए हैं.
सोने की शुद्धता की जांच करने का प्रश्न हजारों वर्ष से बना हुआ है और इसकी शुद्धता का पता लगाने के लिए तेजी से नयी पद्धतियां ईजाद की गयीं. लेकिन इन पद्धतियों के बावजूद स्वर्ण उद्योग अब भी विश्वास और प्रतिष्ठा पर चलता है.
यूरेका मोमेंट : ऐसा कहा जाता है कि प्राचीन यूनानी गणितज्ञ आर्किमिडीज ने स्नान करते वक्त सोने की शुद्धता की जांच करने का एक तरीका खोजा था, कहानी कुछ ऐसी है कि सिरैक्यूज के राजा ने गणितज्ञ को यह पता लगाने के लिए कहा था कि क्या सोने का एक ताज शुद्ध धातु से बना है या बेईमान सुनार ने इसमें मिलावट की है. समस्या पर विचार करते समय आर्किमिडीज ने स्नान किया और देखा कि जब वह पानी के अंदर डुबकी लगाते हैं तो पानी का स्तर बढ़ जाता है. वह तुरंत बाहर निकले और सड़क पर यूरेका (या मुझे यह मिल गया है) चिल्लाते हुए भागे.
उन्हें यह लगा कि ताज को पानी में डुबोने से उन्हें उसकी मात्रा तथा घनत्व का पता चल जाएगा. चूंकि सोने का घनत्व ज्यादातर अन्य धातुओं से कहीं ज्यादा होता है तो इसे ताज की शुद्धता को मापने में इस्तेमाल किया जा सकता है. हालांकि, इस कहानी की ऐतिहासिक सच्चाई को लेकर बहस चलती है.
आग और रोशनी :आर्किमिडीज की विधि की सरलता के बावजूद इसका आज इस्तेमाल नहीं किया जाता है. आधुनिक स्वर्ण उद्योग में इस्तेमाल होने वाली कुछ पद्धतियों में फायर एस्से, एक्स-रे फ्लूरोसेंस और प्लाज्मा मास स्पेक्ट्रोमीट्री (आईसीपी-एमएस) शामिल हैं. फायर एस्से हॉलमार्किंग उद्योग (उदाहरण के लिए यह सत्यापित करने कि आभूषण में सोना नौ कैरेट है या 18 कैरेट) में इस्तेमाल पारंपरिक पद्धति है और अयस्क की गुणवत्ता की जांच करने के लिए सोने की खदानों में इस्तेमाल की जाती है.