नई दिल्ली:यूरोप, अमेरिका और एशिया में केंद्रीय बैंकों ने बेंचमार्क ब्याज दरों में वृद्धि की है क्योंकि वे बढ़ती मुद्रास्फीति को काबू करना चाहते हैं. उन्होंने महसूस किया है कि उच्च वैश्विक कमोडिटी की कीमतें, विशेष रूप से क्रुड ऑयल और खाद्यान्न की कीमतें अस्थायी नहीं हैं और उसे नियंत्रित करने के लिए ठोस नीति की आवश्यकता है. जबकि भारत के सेंट्रल बैंक, भारतीय रिजर्व बैंक ने बेंचमार्क इंटरबैंक लेंडिंग रेट, रेपो रेट को 40 प्वाइंट बढ़ाकर 4.4 प्रतिशत कर दिया, यूएस फेडरल रिजर्व ने उसी दिन दशकों में सबसे बड़ी वृद्धि की है.
बुधवार को यूएस फेडरल रिजर्व ने बेंचमार्क लेंडिंग रेट में 50 प्वाइंट की बढ़ोतरी की, जिसे दो दशकों में सबसे बड़ी बढ़ोतरी माना जा रहा है. नई बढ़ोतरी के साथ, अमेरिका में नई बेंचमार्क ब्याज दर 0.75-से 1% की सीमा में पहुंच गई, जो कि कोविड -19 महामारी की शुरुआत के बाद से सबसे अधिक है. यूएस फेडरल रिजर्व ने बुधवार को 50 प्वाइंटो की बढ़ोतरी की घोषणा करने से पहले दो दिनों तक उससे होने वाले नफा व नुकसान पर गहन अध्ययन एवं चिंतन किया. क्योंकि 2000 के बाद से की गई बढ़ोतरी में सबसे अधिक है.
इसका उद्देश्य अमेरिका में मुद्रास्फीति को नियंत्रित करना है जो पिछले चार दशकों में नहीं देखी गई है. अमेरिकी फेडरल रिजर्व के अध्यक्ष जेरोम पॉवेल ने कहा कि मुद्रास्फीति को कम करने के लिए यह बढ़ोतरी जरूरी है. पॉवेल ने अगली कुछ बैठकों में और अधिक दरों में बढ़ोतरी का संकेत दिया, लेकिन 75 आधार अंकों की सीमा में एक और बढ़ोतरी से इनकार किया. मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने के लिए ब्याज दर बढ़ाने वाला यूएस सेंट्रल बैंक अकेला नहीं है. एक दिन पहले, ऑस्ट्रेलिया के रिजर्व बैंक ने एक दशक से अधिक समय में पहली ब्याज दर वृद्धि की घोषणा की क्योंकि उसने ब्याज दर को 25 प्वाइंट बढ़ाया जबकि चर्चा 35 प्वाइट की थी.