हैदराबाद: हरियाणा के 46 वर्षीय कपिल बंसल (बदला हुआ नाम) के लिए हालात काफी ठीक थे. दूध हमेशा से उनका पसंदीदा था और वह अपने परिवार के साथ बाहर खाना पसंद करते थे.
जब बंसल ने एक उद्यमी में बनने का फैसला लिया तो उन्हें अपनी बचत का बड़ा हिस्सा डेयरी और रेस्तरां व्यवसाय में निवेश किया, जो उनके लिए परेशानी भरा था. उन्होंने अपने बिजनेस को इस साल जनवरी में शुरु किया था. उन्हें उम्मीद थी कि साल के अंत तक वह धीरे-धीरे अपने निवेश से कुछ मुनाफा कमा लेंगे.
ये भी पढ़ें-आरबीआई मौद्रिक नीति: क्या अधिस्थगन को एक और विस्तार मिलेगा?
लेकिन फरवरी-मार्च में कोरोना वायरस ने दस्तक दे दी. जिसके बाद सरकार ने महामारी को रोकने के लिए लॉकडाउन और अन्य संबंधित नए नियम लागू कर दिए.
आपूर्ति श्रृंखला के निकट-विघटन के कारण बंसल का व्यवसाय ठप पड़ गया है. अब बंसल खाली हाथ हैं और चाह कर भी कुछ नहीं कर पा रहें हैं.
इसके बावजूद जरुरी खर्चों का ध्यान रखना पड़ता है, किराए और बिजली के बिलों का भुगतान करना पड़ता है, कर्मचारियों के वेतन और उपकरणों के रखरखाव के पर भी खर्च करना पड़ता है. खर्चों की सूची काफी लंबी है.
अब बंसल धीरे-धीरे कर्ज के जाल में घिरते जा रहे थे. अप्रत्याशित व्यवधान उनके मानसिक स्वास्थ्य पर भारी पड़ रहा है और बंसल धीरे-धीरे डिप्रेशन में जा रहें हैं.
नए सामान्य का बदसूरत पक्ष
ले-ऑफ, सैलरी कट्, ब्याज दरों में कमी के साथ-साथ किराये की आय में कमी, बचत की कमी और अन्य मुद्दों के कारण लोगों के मानसिक स्वास्थ्य को गंभीर रूप से नुकसान पहुंच रहा है.
वित्तीय तनाव के कारण किसी व्यक्ति के मानसिक स्वास्थ्य पर मनोवैज्ञानिक प्रभाव देखने को मिल रहा है.
वित्तीय तनाव के चरण
क) इनकार - वित्तीय तनाव के मनोवैज्ञानिक प्रभाव चरणों में हो सकते हैं. विडंबना यह है कि यह गैर-स्वीकृति के साथ शुरू होता है और इस तथ्य को ठुकरा देता है कि आपकी वित्तीय घाटे में चल रहें हैं.
इस स्थिति में आप अपने आप को सांत्वना देने लगते हैं कि हर कोई इस महामारी में एक ही स्थिति में है.
ख) निराशा और गुस्सा - इसके बाद आता है लोगों का सुझाव, प्रेरणा और देखभाल. यह काफी चुभने वाला होता है. आप अपने प्रियजनों के साथ लड़ना शुरू कर देते हैं. अपने दोस्तों की अनदेखी करते रहते हैं जो आपकी मदद की कोशिश कर रहें होते हैं. आप अपने परिवार पर अपना गुस्सा उतारने लगते हैं.
निराशा और क्रोध जीवनसाथी और बच्चों के साथ शारीरिक हिंसा भी पैदा कर सकता है. स्थिति तब और भी अधिक कठोर हो जाती है जब कोई व्यक्ति लोन और कर्ज वालों से मुकाबला कर रहा होता है.
ग) चिंता और अवसाद - तनाव के साथ उदास दृष्टिकोण, कम आत्मसम्मान और निराशा लाती है. आप काम पर ध्यान केंद्रित नहीं कर सकते, चीजों को याद रखने में असमर्थ हो जाते हैं.
चिंता के कारण नींद की कमी, ध्यान केंद्रित करने और घबराहट को कम करने में कठिनाई होती है. जहां छोटे खर्च भी भारी लगने लगते हैं. ये मिश्रित प्रभाव आपको एहसास दिलाते हैं कि आप डिप्रेशन में हैं.
घ) बुरे फैसले करना शुरू करना - वित्तीय तनाव से बाहर निकलने की जल्दबाजी आपको एक ऋण जाल में डाल सकता है और एक गड़बड़ वित्तीय निर्णय को आगे बढ़ा सकता है.
बिल और ऋण के बढ़ते ढेर, ले-ऑफ, वेतन में कटौती और मौद्रिक कुप्रबंधन की बढ़ती चिंता मन को अस्थिर कर देती है.
वित्तीय तनाव के मनोवैज्ञानिक प्रभावों का प्रबंधन कैसे करें?
कोई भी वित्तीय तनाव के मनोवैज्ञानिक प्रभावों से बचाव नहीं करता है. कोरोनो वायरस का टीका जल्द ही आ सकता है, लेकिन प्रचलित आर्थिक संकट निकट भविष्य में जाने के मूड में नहीं है. इसलिए आपको ध्यान के माध्यम से वित्तीय परामर्श और इसके मनोवैज्ञानिक प्रभावों के माध्यम से इस मौद्रिक तनाव को प्रबंधित करने की आवश्यकता है. हम खुश रहने की कोशिश करें और पैसों से जुड़ी अपनी आशंकाओं पर काम करें.
हमें इन अप्रत्याशित स्थितियों में असाधारण प्रयास करने की आवश्यकता है. केवल जरूरतों पर खर्च करके अपने वित्तीय नियंत्रण को बढ़ाएं, ऋणों का भुगतान करने की कोशिश करें. अपने नए शौक को कम करें, फालतू खर्चों से बचें. सीखते रहो और अपनी ऊर्जा को कुछ और सार्थक बनाओ.
अपनी समस्याओं के बारे में अधिक ना सोचें. अध्ययनों ने पता चलता है कि समस्याएं तब और बढ़ जाती हैं जब हम उसके बारे में जरुरत से ज्यादा सोचते हैं.
इसलिए संभव समाधानों के बारे में व्यावहारिक रूप से शांति से सोचें क्योंकि कुछ भी स्थायी नहीं है. याद रखें जीवन इस महामारी से बहुत लंबा है.
(लेखिका - वैशाली सिंह, स्वतंत्र वित्त लेखक)