नई दिल्ली: उच्चतम न्यायालय ने कोविड-19 लॉकडाउन के दौरान सरकार के 29 मार्च के आदेश के बावजूद अपने कर्मचारियों को पूर्ण पारिश्रमिक नहीं देने वाले नियोक्ताओं के खिलाफ दंडात्मक कार्रवाई पर लगी अंतरिम रोक की अवधि बृहस्पतिवार को 12 जून तक के लिये बढ़ा दी. गृह मंत्रालय ने एक सर्कुलर जारी कर सभी कंपनियों और नियोक्ताओं को निर्देश दिया था कि वे अपने यहां कार्यरत सभी श्रमिकों और कर्मचारियों को बगैर किसी कटौती के लॉकडाउन की अवधि में पूरे पारिश्रमिक का भुगतान करें.
श्रम एवं रोजगार सचिव ने भी सभी राज्यों के मुख्य सचिवों को पत्र लिखा था जिसमें नियोक्ताओं को यह सलाह देने के लिये कहा गया था कि कोविड-19 महामारी के मदेनजर वे अपने कर्मचारियों को नहीं हटायें ओर न ही उनका पारिश्रमिक कम करें.
न्यायमूर्ति अशोक भूषण, न्यायमूर्ति संजय किशन कौल और न्यायमूर्ति एम आर शाह की पीठ ने वीडियो कॉन्फ्रेंस के माध्यम से इस मामले की सुनवाई के दौरान गृह मंत्रालय के सर्कुलर पर चिंता व्यक्त की और कहा कि इसमें सौ फीसदी पारिश्रमिक का भुगतान करने का आदेश दिया गया है और ऐसा नहीं होने पर उन पर मुकदमा चलाने का निर्देश है.
पीठ ने कहा, "इसे लेकर हमारी आपत्तियां हैं. इस अवधि के लिये कोई समाधान खोजने के लिये कुछ चर्चा की जानी चाहिए. लॉकडाउन की अवधि के लिये पारिश्रमिक के भुगतान और उद्योगों को संरक्षण प्रदान करने के बीच संतुलन बनाने की आवश्यकता है."
पीठ ने इस मामले को लेकर दायर याचिकाओं पर सुनवाई पूरी करते हुये कहा, "शासन को छोटी इकाइयों के मालिकों को कुछ रास्ता देना होगा। प्रत्येक औद्योगिक इकाई और इसमें कार्यरत श्रमिकों की स्थिति के मद्देनजर इस बारे में बातचीत की आवश्यकता है."
पीठ ने कहा कि श्रमिकों को बगैर किसी भुगतान के उनके हाल पर छोड़ना चिंता का विषय है लेकिन ऐसी भी स्थिति हो सकती है जिसमें औद्योगिक इकाई के पास पारिश्रमिक देने के लिये धन ही नहीं हो। इसलिए इसमें संतुलन बनाने की आवश्यकता है.
केन्द्र की ओर से अटॉर्नी जनरल के के वेणुगोपाल ने कहा कि लॉकडाउन के बाद से कामगारों का पलायन हो रहा है और इसीलिए सरकार ने अधिसूचना जारी की ताकि श्रमिकों को पारिश्रमिक का भुगतान करके कार्यस्थल पर ही उनके रुके रहने को सुनिश्चित करने में मदद की जा सके.
गृह मंत्रालय के 29 मार्च के सर्कुलर को सही ठहराते हुये वेणुगोपाल ने राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन कानून के प्रावधानों का भी हवाला दिया. इस पर पीठ ने जानना चाहा कि औद्योगिक विवाद कानून के कतिपय प्रावधानों को लागू नहीं किये जाने के तथ्य के मद्देनजर क्या केन्द्र के पास कर्मचारियों को शत-प्रतिशत भुगतान नहीं करने वाली इकाइयों पर मुकदमा चलाने का अधिकार है. पीठ ने कहा कि ऐसी स्थिति में नियोक्ताओं और श्रमिकों के बीच बातचीत से इन 54 दिनों के वेतन के भुगतान का समाधान खोजने की आवश्यकता है.