मुंबई: कोरोना वायरस महामारी से प्रभावित अर्थव्यवस्था को वृद्धि की राह पर लौटाने की हड़बड़ी तथा उद्योग संगठनों की एक बार के ऋण पुनर्गठन की जोर पकड़ती मांग के बीच इस सप्ताह रिजर्व बैंक की मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) की बैठक होने जा रही है.
हालांकि विशेषज्ञों के बीच इस बात को लेकर एकराय नहीं है कि समिति इस सप्ताह की बैठक में नीतिगत दर में कटौती करेगी या नहीं. कई विशेषज्ञों की राय है कि मौजूदा स्थिति में कर्ज का एक बार पुनर्गठन अधिक आवश्यक है. रिजर्व बैंक के गवर्नर की अध्यक्षता वाली मौद्रिक नीति समिति की तीन दिन की बैठक चार अगस्त को शुरू होगी. समिति बैठक के नतीजों की घोषणा छह अगस्त को करेगी.
रिजर्व बैंक अर्थव्यवस्था पर कोरोना वायरस महामारी तथा इसकी रोकथाम के लिये लागू लॉकडाउन के असर को सीमित करने के लिये पिछले कुछ समय से लगातार सक्रियता से कदम उठा रहा है. तेजी से बदलती वृहद आर्थिक परिस्थिति तथा वृद्धि के बिगड़ते परिदृश्य के कारण रिजर्व बैंक की दर निर्धारण समिति को पहले मार्च में और फिर मई में समय से पहले ही बैठक करने की जरूरत पड़ी थी.
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भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) की शोध रिपोर्ट इकोरैप में कहा गया कि फरवरी के बाद से रेपो दर में 1.15 प्रतिशत की कटौती की जा चुकी है. बैंकों ने भी नये कर्ज पर 0.72 प्रतिशत तक ब्याज को सस्ता किया है. कुछ बड़े बैंकों ने तो 0.85 प्रतिशत तक का लाभ ग्राहकों को दिया है. यह संभवत: भारतीय इतिहास में सबसे तेजी से राहत दिये जाने का मामला है. उसने कहा, "हमारा मानना है कि अगस्त में शायद ही नीतिगत दर में कटौती हो."
हालांकि कुछ बैंकों समेत विशेषज्ञों के एक धड़े का मानना है कि रिजर्व बैंक इस बार भी कम से कम 0.25 प्रतिशत की कटौती कर सकता है. उल्लेखनीय है कि मांस, मछली, खाद्यान्न और दालों की अधिक कीमतों के कारण उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई) आधारित खुदरा मुद्रास्फीति जून में 6.09 प्रतिशत पर पहुंच गयी.