नई दिल्ली :भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने 31 मार्च, 2021 को समाप्त नौ महीने की लेखा अवधि के लिए केंद्र सरकार को 99,122 करोड़ रुपये के अधिशेष को हस्तांतरित करने का निर्णय लिया है.
आरबीआई गवर्नर शक्तिकांत दास की अध्यक्षता में केंद्रीय बोर्ड की 589वीं बैठक में वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिए यह फैसला लिया गया.
आरबीआई के अनुसार, बोर्ड ने अपनी बैठक में अर्थव्यवस्था पर कोविड-19 की दूसरी लहर के प्रभाव को कम करने के लिए वर्तमान आर्थिक स्थिति, वैश्विक और घरेलू चुनौतियों और रिजर्व बैंक द्वारा उठाए गए हाल के नीतिगत उपायों की समीक्षा की.
गौरतलब है कि 2001-02 में 10,320 करोड़ तक दिया गया सरप्लस 20 सालों में बढ़कर लगभग 1 लाख करोड़ रुपये तक पहुंच चुका है.
केंद्र को मिलते सरप्लस में बढ़ोतरी
आरबीआई पूरी तरह से केंद्र के स्वामित्व में है, जिस कारण भारतीय रिजर्व बैंक अधिनियम, 1934 केंद्रीय बैंक को अधिशेष अधिशेष लाभ या लाभांश केंद्र सरकार को स्थानांतरित करना अनिवार्य करता है.
प्रत्येक वित्तीय वर्ष के खातों की समीक्षा करने के बाद, आरबीआई लाभांश की घोषणा करता है.
लाभांश की राशि अनिवार्य रूप से दो तत्वों पर निर्भर करती है - किसी दिए गए वर्ष में बैंक ने कितना कमाया और बैंक कितना आकस्मिक रिजर्व बनाए रखना चाहता है.
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केंद्र को उच्च लाभांश के लिए आरबीआई की मांग बढ़ने के साथ, बैंक ने समय-समय पर बैंक के आपातकालीन भंडार के आदर्श आकार को तय करने के लिए विशेषज्ञ समितियों की नियुक्ति की थी.
दो दशक की अवधि में, वी सुब्रह्मण्यम (1997), उषा थोराट (2004), वाई एच मालेगाम (2014), और बिमल जालान (2018) जैसे विशेषज्ञों की अध्यक्षता में चार ऐसी समितियों का गठन किया गया.
सुब्रह्मण्यम समिति ने अपने सुझाव में आरबीआई द्वारा 12 फीसदी की आकस्मिक रिजर्व बनाने कील सिफारिश की, वहीं थोराट पैनल ने सुझाव दिया कि इसे केंद्रीय बैंक की कुल संपत्ति के 18 प्रतिशत से अधिक पर रखा जाना चाहिए.
आरबीआई बोर्ड ने थोराट समिति की सिफारिश को स्वीकार नहीं किया और सुब्रह्मण्यम समिति की सिफारिश के तहत 12 फीसदी रिजर्व को जारी रखने का फैसला किया.
बाद में, 2014 के दौरान मालेगाम समिति ने कहा कि आरबीआई को अपने लाभ की पर्याप्त राशि सालाना आकस्मिक भंडार में स्थानांतरित करनी चाहिए, लेकिन किसी विशेष संख्या का उल्लेख नहीं किया.
वहीं सबसे नवीनतम समिति बिमल जालान समिति ने आरबीआई की बैलेंस शीट के 6.5 के 5.5 प्रतिशत की सीमा तक आकस्मिक रिजर्व बनाने का समर्थन किया, जिसके परिणामस्वरूप केंद्र को एक बड़ा हस्तांतरण हुआ है.
10,000 करोड़ रुपये से 1 लाख करोड़ रुपये तक
आरबीआई के आंकड़ों से पता चलता है कि विभिन्न समितियों की सिफारिश के आधार पर बैंक केंद्र को अधिक राशि का हस्तांतरित करता आया है, जो कि 2001-02 के 10,000 करोड़ रुपये से बढ़कर पिछले वित्तीय वर्ष में लगभग 1 लाख करोड़ रुपये हो गया है.
केंद्र को दिया गया आरबीआई का सरप्लस : सोर्स आरबीआई उदाहरण के लिए, मालेगाम पैनल की सिफारिशों के बाद, केंद्रीय बैंक ने 2013-14 के लिए 52,679 करोड़ रुपये के लाभांश के हस्तांतरण को मंजूरी दी - उस वक्त पिछले वर्ष के हस्तांतरण की तुलना में 60 प्रतिशत अधिक.
इसी तरह, 2018-19 के लिए, बैंक द्वारा जालान पैनल की सिफारिशों को स्वीकार करने के बाद, हस्तांतरण राशि 1,75,987 करोड़ रुपये तक पहुंच गई, जिसमें वर्ष के लिए 1,23,350 करोड़ रुपये का अधिशेष और 52,637 करोड़ रुपये का अतिरिक्त एकमुश्त हस्तांतरण शामिल था. पैनल के सुझावों के अनुसार पहचाने गए अतिरिक्त प्रावधानों को देखते हुए यह आरबीआई द्वारा एक साल में अब तक का सबसे ज्यादा ट्रांसफर है.
वहीं 99,122 करोड़ रुपये का नवीनतम हस्तांतरण केंद्रीय बैंक द्वारा अब तक का दूसरा सबसे बड़ा वार्षिक हस्तांतरण है.
आरबीआई सरप्लस सरकार को क्यों ट्रांसफर करता है?
भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) अधिनियम, 1934 के प्रावधानों के अनुसार ब्रिटिश शासन के दौरान 1 अप्रैल 1935 को आरबीआई की स्थापना की गई थी.
हालांकि स्थापना के वक्त से निजी हाथों में रही रिजर्व बैंक, 1949 में राष्ट्रीयकरण के बाद से पूरी तरह से भारत के स्वामित्व में है.
जिस कारण, आरबीआई अधिनियम, 1934 बैंक को अधिशेष लाभ केंद्र को हस्तांतरित करने का आदेश देता है.
अधिनियम की धारा 47 में कहा गया है, 'अशोध्य और संदिग्ध ऋणों के लिए प्रावधान करने के बाद, संपत्ति में मूल्यह्रास, कर्मचारियों को योगदान और सेवानिवृत्ति निधि... आमतौर पर बैंकरों द्वारा प्रदान की जाती हैं, लाभ का शेष भुगतान केंद्र सरकार को किया जाएगा.'
विशेष रूप से, उसी अधिनियम की धारा 48 के अनुसार, रिजर्व बैंक अपनी किसी भी आय, लाभ या लाभ पर आयकर या सुपर टैक्स का भुगतान करने के लिए उत्तरदायी नहीं है.