मुंबई: भारतीय स्टेट बैंक के अर्थशास्त्रियों ने गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (एनबीएफसी) में जारी संकट के बीच शुक्रवार को कहा कि रिजर्व बैंक को अंतिम कर्जदाता की अपनी भूमिका निभानी चाहिए.
इन अर्थशास्त्रियों का मानना है कि केंद्रीय बैंक एनबीएफसी क्षेत्र में 2018 में समस्या शुरू होने के समय से ही अपनी इस भूमिका से बचता रहा है. बजट को लेकर उम्मीदों पर अपनी रिपोर्ट में अर्थशास्त्रियों ने कहा है कि आरबीआई को एनबीएफसी को संपत्ति के एवज में नकदी उपलब्ध कराने के बारे में 'गंभीरता से विचार' करना चाहिए.
उनका कहना है, "वित्तीय बाजार में भरोसे के संकट को देखते हुए यह जरूरी है कि केंद्रीय अंतिम कर्जदाता की अपनी भूमिका नहीं भूले."
उल्लेखनीय है कि आईएल एंड एफएस के धाराशायी होने के बाद से एनबीएफसी क्षेत्र प्रभावित है. कुछ विश्लेषकों का कहना है कि नकदी समस्या से जूझ रही एनबीएफसी द्वारा कर्ज दिये जाने में कमी से खपत कम हुई है. इसके कारण अन्य बातों के अलावा जीडीपी (सकल घरेलू उत्पाद) वृद्धि दर घटी है.
ये भी पढ़ें:विदेशी निवेश का स्वागत, पर देश के कायदे-कानून के दायरे में: अमेजन मुद्दे पर गोयल
एसबीआई की रिपोर्ट में एक फरवरी को पेश होने वाले बजट के लिये राजकोषीय नीति को लेकर दिये गये सुझाव में एनबीएफसी की मदद की बात शामिल की गयी है. अन्य बातों में एसबीआई के अर्थशास्त्रियों ने सिफारिश की है कि सरकार को वृद्धि पर ध्यान देना चाहिए न कि राजकोषीय घाटे का लक्ष्य हासिल करने पर.
रिपोर्ट के अनुसार अगर ऐसा नहीं किया गया तो वृद्धि में नरमी की समस्या और बढ़ेगी. उन्होंने 2020-21 के लिये राजकोषीय घाटा 3.8 प्रतिशत पर रखने का सुझाव दिया है. यह 2019-20 के उसके संशोधित अनुमान 3.8 प्रतिशत के बराबर है. इसमें कहा गया है कि सरकार को 2021-22 के लिये नये राजकोषीय मजबूती के लिये नयी रूपरेखा अपनाना चाहिए.
इसके तहत 2024-245 तक राजकोषीय घाटे को 0.20 प्रतिशत कमी लाने पर गौर किया जाना चाहिए. अर्थशास्त्रियों के अनुसार कृषि क्षेत्र की बेहतरी और बेहतर स्वास्थ्य परिणाम के लिये सरकार 'पौष्टिक भारत' नाम से योजना घोषित कर सकती है.