भोपाल: भारतीय रेलवे ने स्क्रैप बेचकर अपने खजाने में एक बड़ी धनराशि जोड़ी है. रेलवे की तरफ से एक आरटीआई आवेदन के जवाब में जारी ब्यौरे के अनुसार, विभाग ने बीते 10 सालों में स्क्रैप (कबाड़) से 35,073 करोड़ रुपये की आमदनी की है.
रेल मंत्रालय ने बीते 10 सालों में बेचे गए स्क्रैप को लेकर जो ब्यौरा जारी किया है, उससे पता चलता है कि वर्ष 2009-10 से वर्ष 2018-19 की अवधि के बीच विभिन्न तरह के स्क्रैप बेचकर विभाग ने 35,073 करोड़ रुपये कमाए. इसमें कोच, वैगन्स और पटरी के कबाड़ शामिल हैं.
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मध्य प्रदेश के मालवा-निमांड अंचल के वरिष्ठ पत्रकार और सामाजिक कार्यकर्ता जिनेंद्र सुराना को सूचना के अधिकार के तहत रेलवे बोर्ड द्वारा दिए गए ब्यौरे में बताया गया है कि बीते 10 सालों में सबसे ज्यादा स्क्रैप 4,409 करोड़ रुपये का वर्ष 2011-12 में बेचा गया, जबकि सबसे कम स्क्रैप से आमदनी वर्ष 2016-17 में 2,718 करोड़ रुपये हुई.
रेलवे ने 10 साल में कबाड़ से कमाए 35 हजार करोड़ रुपये
रेल मंत्रालय ने बीते 10 सालों में बेचे गए स्क्रैप को लेकर जो ब्यौरा जारी किया है, उससे पता चलता है कि वर्ष 2009-10 से वर्ष 2018-19 की अवधि के बीच विभिन्न तरह के स्क्रैप बेचकर विभाग ने 35,073 करोड़ रुपये कमाए. इसमें कोच, वैगन्स और पटरी के कबाड़ शामिल हैं.
रेलवे बोर्ड की तरफ से दी गई जानकारी के अनुसार, बेचे गए कबाड़ में सबसे बड़ी हिस्सेदारी रेल पटरियों की है. वर्ष 2009-10 से 2013-14 के बीच 6,885 करोड़ रुपये के स्क्रैप बेचे गए, वहीं वर्ष 2015-16 से 2018-19 की अवधि के बीच 5,053 करोड़ रुपये के स्क्रैप बेचे गए. कुल मिलाकर 10 सालों में रेल पटरियों का स्क्रैप बेचने से 11,938 करोड़ रुपये की आमदनी हुई.
सुराना कहते हैं, "रेल पटरी के स्क्रैप से एक बात साफ हो जाती है कि वर्ष 2009-10 से 2013-14 के बीच पांच साल की अवधि की तुलना में वर्ष 2014-15 से 2018-19 के बीच रेल पटरी का स्क्रैप कम निकला है. इससे ऐसा लगता है कि अंतिम पांच साल की अवधि में रेल पटरियों में कम बदलाव हुआ है. अगर रेल पटरी का अमान परिवर्तन होता है तो उसी अनुपात में पुरानी पटरी के स्क्रैप निकलते हैं."