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लॉकडाउन से आर्थिक गतिविधियों पर हुआ है असर, लेकिन बड़ी पीड़ा से बचाव भी हुआ है: एसबीआई चेयरमैन

एसबीआई के चेयरमैन रजनीश कुमार ने शुक्रवार को कहा कि देश भर में लागू लॉकडाउन को सिर्फ तभी हटाया जाना चाहिये, जब स्थिति पूरी तरह से नियंत्रित हो जाये.

लॉकडाउन से आर्थिक गतिविधियों पर हुआ है असर, लेकिन बड़ी पीड़ा से बचाव भी हुआ है: एसबीआई चेयरमैन
लॉकडाउन से आर्थिक गतिविधियों पर हुआ है असर, लेकिन बड़ी पीड़ा से बचाव भी हुआ है: एसबीआई चेयरमैन

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Published : May 1, 2020, 7:37 PM IST

कोलकाता: भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) के चेयरमैन रजनीश कुमार ने शुक्रवार को कहा कि लॉकडाउन के कारण देश में आर्थिक गतिविधियों पर असर पड़ा है लेकिन इसने देश को बड़ी पीड़ा से बचाया है.

उन्होंने कहा कि देश भर में लागू लॉकडाउन को सिर्फ तभी हटाया जाना चाहिये, जब स्थिति पूरी तरह से नियंत्रित हो जाये.

कोरोना वायरस महामारी की रोकथाम के लिये देश भर में 25 मार्च से लॉकडाउन (बंद) लागू है. पहले बंद 14 अप्रैल को समाप्त होने वाला था, लेकिन बाद में इसे तीन मई तक के लिये बढ़ा दिया गया. अब जब तीन मई की तारीख पास आ गयी है, एक बार फिर से इस बात को लेकर बहस तेज हो गयी है कि अब बंद को समाप्त कर देना चाहिये या बढ़ाया जाना चाहिये.

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कुमार ने इस बारे में पीटीआई-भाषा से कहा, "अधिक धैर्य की आवश्यकता है. हम तब तक बचाव को कम नहीं कर सकते हैं जब तक इस बात का भरोसा नहीं हो जाये कि स्थिति पूरी तरह नियंत्रण में हैं और वायरस के प्रसार पर काबू पा लिया गया है."

उन्होंने कहा, "मुझे लगता है कि लॉकडाउन ने भारत को बहुत बड़ी पीड़ा से बचाया है और संक्रमण मामलों की संख्या नियंत्रण में है.

कुमार ने कहा कि जब तक बंद जारी रहेगा, आर्थिक गतिविधियां सुस्त बनी रहेंगी, लेकिन "अर्थव्यवस्था में मांग बनी होनी चाहिये" और इसके लिये लॉजिस्टिक्स के मामले पर ध्यान दिया जा सकता है.

एसबीआई चेयरमैन ने यह भी कहा, " मुझे लगता है कि हम अब इस बात से कुछ ही दिन दूर हैं, जब लॉकडाउन पूरी तरह से हटाया जा सकता है. कुछ राज्य खराब स्थिति में हैं. यह भी सुनिश्चित करना होगा कि देश भर में संक्रमण से मुक्त क्षेत्रों की संख्या बढ़े."

कुमार ने कहा कि यदि लोग इस दौरान अनुशासन बनाये रखते हैं, तो संक्रमण की रफ्तार को कम किया जा सकता है और नये मामलों की संख्या में तेजी से वृद्धि रुक सकती है.

उन्होंने कहा, "हमें नतीजे मिल रहे हैं, क्योंकि मरीजों के सही होने की दर 25 फीसदी से ज्यादा है."

(पीटीआई-भाषा)

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