नई दिल्ली :अगले साल एक अप्रैल से चार श्रम संहिताओं के कार्यान्वयन से औद्योगिक संबंधों में सुधार की दिशा में एक नई शुरुआत होगी, जिससे अधिक निवेश जुटाने में मदद मिलेगी. हालांकि रोजगार सृजन का मुद्दा 2021 में भी एक महत्वपूर्ण चुनौती बना रहेगा.
कोविड-19 महामारी के चलते ये साल कार्यबल के साथ ही नियोक्ताओं के लिए भी चुनौतीपूर्ण रहा है. सरकार ने 25 मार्च से देशव्यापी लॉकडाउन लागू किया, जिसका आर्थिक गतिविधियों पर प्रतिकूल असर पड़ा और इसके चलते बड़े शहरों से प्रवासी मजदूरों को अपने मूल स्थान की ओर पलायन करना पड़ा.
कई प्रवासी मजदूरों ने अपनी नौकरी खो दी और उन्हें अपने मूल स्थानों से काम पर वापस लौटने में महीनों लग गए.
भारतीय मजदूर संघ (बीएमएस) की शोध शाखा के प्रमुख और पूर्व महासचिव विरजेश उपाध्याय ने कहा कि भारत को बड़ी संख्या में श्रमिकों की नौकरी बहाल करने की बड़ी चुनौती का सामना करना पड़ेगा, जिन्होंने महामारी के कारण अपनी आजीविका खो दी.
उन्होंने आगे कहा कि नई नौकरियां सृजित करना आसान नहीं होगा, क्योंकि महामारी के बीच अर्थव्यवस्था में गिरावट, ऑटोमेशन और 'वर्क फ्रॉम होम' जैसी नई अवधारणाओं से कई चुनौतियां पैदा हुई हैं. उन्होंने कहा कि सरकार 2020 में कर्मचारियों और नियोक्ताओं को राहत देने के लिए जो कर सकती थी, उसने किया.
उपाध्याय ने कहा कि महामारी के प्रभाव को देखते हुए अब नीति निर्माताओं को 2021 में लागू किए जाने वाली नई श्रम संहिताओं में जरूरी सुधार के बारे में सोचना होगा.
उन्होंने कहा कि अर्थव्यवस्था में समग्र खपत तब तक नहीं सुधरेगी, जब तक लोगों के पास रोजगार नहीं होगा और केवल उत्पादन को बढ़ावा देने से अर्थव्यवस्था को कोविड -19 से पहले के स्तर पर लौटने में मदद नहीं मिलेगी. केंद्र सरकार हालांकि महामारी के बीच तीन श्रम संहिताओं के लिेए संसद की मंजूरी पाने में सफल रही. इसके अलावा मजदूरी संहिता को पिछले साल संसद द्वारा अनुमोदित किया गया था.