नई दिल्ली: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में गठित नई सरकार के लिये मौजूदा कठिन आर्थिक परिस्थितियों में राजकोषीय घाटे के लक्ष्य को हासिल करने योग्य दायरे में रखकर बजट तैयार करने की बड़ी चुनौती होगी. आर्थिक क्षेत्र के विशेषज्ञ प्रोफेसर एन.आर. भानुमूर्ति का यह मानना है. उल्लेखनीय है कि 2018- 19 के बजट में अनुमानित 3.4 प्रतिशत के राजकोषीय घाटे को पूरा करने के लिये सरकार को कड़ी मशक्कत करनी पड़ी है.
वर्ष के संशोधित अनुमानों में भारी वृद्धि के चलते सरकार को तय लक्ष्यों को हासिल करना मुश्किल हो गया था. वर्ष 2018- 19 में निगम कर के 6,21,000 करोड़ रुपये के बजट अनुमान को संशोधित अनुमानों में बढ़ाकर 6,71,000 करोड़ रुपये कर दिया गया. वर्ष की चौथी तिमाही में सकल घरेल उत्पाद (जीडीपी) वृद्धि दर पांच साल के निम्नस्तर 5.8 प्रतिशत पर आ गई है.
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वार्षिक जीडीपी वृद्धि का आंकड़ा भी 6.8 प्रतिशत रह गया, जो कि पिछले पांच साल में सबसे कम रहा है. राष्ट्रीय लोक वित्त एवं नीति संस्थान (एनआईपीएफपी) में प्रोफेसर एन आर भानुमूर्ति ने कहा कि सरकार के समक्ष आगामी बजट में आंकड़ों को वास्तविक धरातल पर रखते हुये बजट तैयार करने की चुनौती है.
वित्तीय स्थिति है काफी कठिन
एन आर भानुमूर्ति ने कहा कि सरकार के लिए वित्तीय स्थिति कठिन बनी हुई है. वास्तविक अनुमान लगाने होंगे. पिछले वित्त वर्ष की चौथी तिमाही और पूरे साल के जीडीपी वृद्धि आंकड़े कम रहने के बाद सभी बजट अनुमानों पर इसका असर हुआ होगा. इसे ध्यान में रखते हुये आगामी पूर्ण बजट में अगले साल के लिये विभिन्न वृद्धि अनुमानों को वास्तविकता के धरातल पर आंकना होगा.
मानसून को लेकर भी चिंता बढ़ी
भानुमूर्ति ने कहा कि अंतरराष्ट्रीय अर्थव्यवस्था में सुस्ती गहरा रही है. विश्व बाजार मंदी की तरफ बढ़ रहा है. अमेरिका के केंद्रीय बैंक फेडरल रिजर्व ने भी इस ओर संकेत दिया है. अंतरराष्ट्रीय बाजार में यदि मांग घटती है तो भारतीय निर्यात कारोबार पर भी उसका असर होगा. कच्चे तेल के दाम में उतार- चढ़ाव का मुद्दा भी हमारे सामने है. मानसून को लेकर भी चिंता बढ़ी है. इसका हमारी अर्थव्यवस्था पर गंभीर असर होगा. ऐसे में सरकार के समक्ष बड़ी चुनौती खड़ी हो सकती है.