नई दिल्ली: साख निर्धारण कंपनी क्रिसिल ने मंगलवार को कहा कि भारत अबतक की सबसे खराब मंदी की स्थिति का सामना कर रहा है. उसने कहा कि आजादी के बाद यह चौथी और उदारीकरण के बाद पहली मंदी है तथा यह संभवत: सबसे भीषण है.
रेटिंग एजेंसी के अनुसार कोरोना वायरस महामारी तथा उसकी रोकथाम के लिये जारी 'लॉकडाउन'(बंद) से अर्थव्यवस्था में चालू वित्त वर्ष में 5 प्रतिशत की गिरावट आने की आशंका है.
क्रिसिल ने भारत के जीडीपी (सकल घरेलू उत्पाद) के आकलन के बारे में कहा, "पहली तिमाही (अप्रैल से जून) में 25 प्रतिशत की बड़ी गिरवट की आंशका है."
उसने कहा, "वास्तविक आधार पर करीब 10 प्रतिशत जीडीपी स्थायी तौर पर खत्म हो सकती है. ऐसे में हमने महामारी से पहले जो वृद्धि दर देखी है, अगले तीन वित्त वर्ष तक उसे देखना या हासिल करना मुश्किल होगा."
उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार पिछले 69 साल में देश में केवल तीन बार-वित्त वर्ष 1957-58, 1965-66 और 1979-80...में मंदी की स्थिति आयी है. इसके लिये हर बार कारण एक ही था और वह था मानसून का झटका जिससे खेती-बाड़ी पर असर पड़ा और फलस्वरूप अर्थव्यवस्था का बड़ा हिस्सा प्रभावित हुआ.
क्रिसिल ने कहा कि चालू वित्त वर्ष 2020-21 में मंदी कुछ भिन्न है क्योंकि इस बार कृषि के मोर्चे पर राहत है और यह मानते हुए कि मानसून सामान्य रहेगा, यह झटके को कुछ मंद कर सकता है. प्रवृत्ति के अनुसार इसमें वृद्धि का अनुमान है. कोरोना वायरस महामारी ओर उसकी रोकथाम के लिये 'लॉकडाउन' से आर्थिक गतिविधियां बुरी तरह से प्रभावित हुई हैं. सबसे पहले 25 मार्च से देशव्यापी बंद की घोषणा की गयी. बाद में इसे तीन बार बढ़ाते हुए 31 मई तक कर दिया गया.
क्रिसिल के अनुसार, "चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही सर्वाधिक प्रभावित हुई. न केवल गैर कृषि कार्यों बल्कि शिक्षा, यात्रा और पर्यटन समेत अन्य सेवाओं के लिहाज से पहली तिमाही बदतर रहने की आशंका. इतना ही नहीं इसका प्रभाव आने वाली तिमाहियों पर भी दिखेगा. रोजगार और आय पर प्रतिकूल असर पड़ेगा क्योंकि इन क्षेत्रों में बड़ी संख्या में लोगों को कामकाज मिला हुआ है."