बिजनेस डेस्क, ईटीवी भारत: भारत में कोरोनोवायरस के प्रकोप ने अर्थव्यवस्था को पहले की बुरी तरह से हिला दिया है. जिससे उपभोक्ताओं को पैसे खर्च करने से पहले दस बार सोचना पड़ रहा है. खासकर तब जब कोरोना के कारण लोगों की आय में गिरावट आई है.
मंगलवार को केंद्रीय व्यय सचिव टीवी सोमनाथन ने कहा कि सरकार ने प्रत्यक्ष लाभ अंतरण से बैंक खातों में जितनी राशि भेजी, देखने में आया कि उसमें से करीब 40 प्रतिशत का खर्च नहीं किया गया, बल्कि उसे बचाकर रख लिया गया.
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एक कार्यक्रम में बोलते हुए सोमनाथन ने कहा कि वित्त और बीमा से परे सभी व्यक्तिगत सेवाओं की गतिविधि, जैसे सिनेमा हॉल, मॉल और रेस्तरां गंभीर रूप से प्रभावित हुए हैं.
उन्होंने कहा, "मेरा मानना है कि यह ऐसे क्षेत्र हैं जहां सरकार के वित्तीय प्रोत्साहन लोगों को दोबारा इस क्षेत्र में प्रवेश करने के लिए बाध्य कर सकें. अर्थव्यवस्था में सुधार लोगों के बीच से कोविड-19 का मनौवैज्ञानिक डर समाप्त होने के बाद ही संभव होगा."
मंगलवार को भारतीय रिजर्व बैंक की वार्षिक रिपोर्ट में यह भी उल्लेख किया गया है कि वर्ष के दौरान कुल मांग का आकलन बताता है कि खपत को गंभीर झटका लगा है और पूर्व-कोविड स्थिति में दोबारा पहुंचने में काफी समय लगेगा.
रिपोर्ट में कहा गया है, "निजी खपत में काफी गिरावट देखने को मिली है. विशेष रूप से परिवहन सेवाओं, आतिथ्य, मनोरंजन और सांस्कृतिक गतिविधियों में गिरावट ज्यादा है."
उन्होंने कहा, "शहरी खपत की मांग को बड़ा झटका लगा है. यात्री वाहन की बिक्री और 2020-21 की उपभोक्ता टिकाऊ वस्तुओं की आपूर्ति पहली तिमाही में एक साल पहले अपने स्तर से क्रमशः एक-पांचवें और एक तिहाई तक गिर गई है."
इस अनिश्चित समय में भारतीयों में पैसा बचाने की प्रवृत्ति देखी जा रही है. हालिया रिपोर्टों के अनुसार अप्रैल और जून की अवधि के दौरान भारतीय बैंकों ने एफडी में 6.1 लाख करोड़ रुपये की वृद्धि देखी है. यह पिछले वित्त वर्ष में इसी अवधि के दौरान 3 लाख करोड़ रुपये से अधिक है.
जुलाई के मध्य में जारी यूबीएस की एक रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि भारतीय परिवारों ने पिछले तीन महीनों में वित्तीय साधनों पर पैसा लगाया है और वित्तीय साधनों में निवेश किया है क्योंकि कोरोना महामारी ने आर्थिक गतिविधियों को काफी कम कर दिया है.
यूबीएस विश्लेषण के अनुसार आय की निरंतरता पर औपचारिक क्षेत्र में जबरन बचत की जा सकती है. अनौपचारिक क्षेत्र में नियोजित श्रम का एक बड़ा हिस्सा स्थिर खपत कम होने के बावजूद एहतियाती बचत में वृद्धि कर रहा है.
हालांकि, विशेषज्ञों को उम्मीद है कि मध्यम अवधि में भारत की खपत की स्थिति में सुधार होगा. डेटा एनालिटिक्स फर्म आईएचएस मार्किट का अनुमान है कि भारत का उपभोग खर्च 2020 में 1.6 ट्रिलियन डॉलर से 2030 तक 3.2 ट्रिलियन डॉलर हो जाएगा.
जुलाई में एक बयान में आईएचएस ने कहा कि भारत के लिए एक महत्वपूर्ण सकारात्मक कारक इसका बड़ा और तेजी से बढ़ता मध्यम वर्ग है जो उपभोक्ता खर्च को चलाने में मदद कर रहा है. कुल भारतीय उपभोक्ता खर्च 2020 और 2025 के बीच 42 प्रतिशत तक बढ़ने का अनुमान है.
आरबीआई ने अपनी वार्षिक रिपोर्ट में यह भी कहा कि निजी उपभोग से यह उम्मीद की जाती है कि जब वह गैर-विवेकाधीन खर्च को आगे बढ़ाए, जब तक कि डिस्पोजेबल आय में टिकाऊ वृद्धि न हो जाए.