भारत को कपड़ा क्षेत्र के बचाव के लिए आरसीईपी बातचीत के दौरान एहतियात बरतने की जरूरत
सिटी के चेयरमैन संजय जैन ने कहा कि अमेरिका - चीन के बीच व्यापार युद्ध को अनदेखा नहीं किया जा सकता है क्योंकि चीन अपने उत्पादों के लिए नया बाजार तलाश रहा है.
नई दिल्ली: भारत को अमेरिका-चीन व्यापार युद्ध को देखते हुए प्रस्तावित क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी (आरसीईपी) पर बातचीत के दौरान सावधानीपूर्वक आगे बढ़ना चाहिए ताकि वैश्विक वस्त्र एवं कपड़ा बाजार पर चीन का दबदबा नहीं बढ़ सके. कन्फेडरेशन ऑफ इंडिया टेक्सटाइल इंडस्ट्री (सिटी) ने सोमवार को यह बात कही.
वस्त्र उद्योग के निकाय ने कहा कि अमेरिका और चीन के बीच व्यापार मोर्चे पर टकराव भारतीय वस्त्र विनिर्माताओं के लिए एक अवसर है. वे अमेरिका को निर्यात बढ़ा सकते हैं. क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी (आरसीईपी) व्यापार परिदृश्य से पता चलता है कि भारत को एहतियात के साथ कदम उठाना चाहिए खासकर चीन के मामले में, क्योंकि आरसीईपी देशों में भारत का आधा वस्त्र एवं कपड़ा कारोबार चीन के साथ है.
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सिटी के चेयरमैन संजय जैन ने कहा कि अमेरिका - चीन के बीच व्यापार युद्ध को अनदेखा नहीं किया जा सकता है क्योंकि चीन अपने उत्पादों के लिए नया बाजार तलाश रहा है. भारत को चीन के साथ बातचीत करते समय सावधानी बरतनी चाहिए. चीन पहले से ही बांग्लादेश, श्रीलंका इत्यादि के माध्यम से अपने परिधान भारत भेज रहा है.
जैन के मुताबिक, आरसीईपी पर बातचीत पूरी होने के बाद वस्त्र एवं कपड़ा क्षेत्र में चीन के साथ भारत का व्यापार घाटा बढ़ने के आसार हैं और यह घरेलू कपड़ा निर्माताओं के लिए हानिकारक हो सकता है. आरसीईपी ब्लाक में आसियान के 10 देश (ब्रुनेई , कंबोडिया, इंडोनिशया, मलेशिया, म्यांमा, फिलीपीन, सिंगापुर, थाईलैंड, लाओस और वियतनाम) तथा आसियान के साथ मुक्त व्यापार समझौते के छह भागीदार आस्ट्रेलिया, चीन, भारत, जापान, दक्षिण कोरिया तथा न्यूजीलैंड शामिल हैं.
वित्त वर्ष 2018- 19 में भारत का आरसीईपी के सदस्य देशों में 11 देशों के साथ व्यापार में घाटा रहा है. इनमें चीन, दक्षिण कोरिया और आस्ट्रेलिया भी शामिल हैं. इस मेगा व्यापार समझौते पर 16 देशों के बीच नवंबर 2012 से बातचीत चल रही है.