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आर्थिक ताने बानों पर धांधलेबाजी का प्रभाव

भारतीय दंड संहिता के तहत अलग तरीकों से धोखेबाज़ी से निपटा जाता है. लंबे समय से भारतीय कोर्ट धोखेबाज़ी से जुड़े विवादों पर अलग से काम कर रहे है. किसी जीवित और अजीवित संपत्ति के खिलाफ कपट को धोखा करार किया जाता है. कोर्ट के मुताबिक धोखे के लिए दो चीज़े अहम हैं - छल और ज़ख्म.

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आर्थिक ताने बानों पर धांधलेबाजी का प्रभाव

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Published : Jan 18, 2020, 4:29 PM IST

हैदराबाद: कारोबार आए दिन बहुत से जोखिम, परेशानियां और उतार चढ़ावो से गुज़रते हैं. जिनमें से कईयों की लाभ हानि पर सीधा असर होता है. जिसके चलते उनका अस्तित्व तक चरमराने लगता है. अक्सर जब कोई कारोबार स्थापना के चरण पर होता है तो नफा और नुकसान, यहां तक कि जोखिम को भी उम्मीद से ज्यादा आंका जाता है.

जोखिमों को ढेर सारी परिचालन रणनीतियों से होकर परखा जाता है. हालांकि, बेहद जटिल होने के कारण बहुत से जोखिमों को परखना लाज़मी नहीं है. जिसमें से सबसे अहम है धोखेबाज़ी. धोखेबाज़ी के अर्तंगत कई आर्थिक गतिविधियां शामिल है.

धांधलेबाज़ी और धोखाधड़ी के लिए कई कानूनों के प्रावधान है. धोखेबाज़ी को यकीनन अर्थव्यवस्था का दुश्मन समझा जाता है. इसमें कोई दोराय नहीं है कि धोखा करने से समाज में अविश्वास की भावना जागती है. और विश्वास ही तो कारोबारी और सरकार के बीच के कारोबार अहम कड़ी होता है.

भारतीय दंड संहिता के तहत अलग तरीकों से धोखेबाज़ी से निपटा जाता है. लंबे समय से भारतीय कोर्ट धोखेबाज़ी से जुड़े विवादों पर अलग से काम कर रहे है. किसी जीवित और अजीवित संपत्ति के खिलाफ कपट को धोखा करार किया जाता है. कोर्ट के मुताबिक धोखे के लिए दो चीज़े अहम हैं - छल और ज़ख्म.

धोखे को धोखा तब माना जाता है जब
(1). जानबूझ कर या( 2) सच्चाई पर विश्वास किए बिना या( 3) बेतहाशा बेपरवाही में गलत-सही न सोचते हुए, गलत जानकारी दी जाती है. सबसे बड़ी बात धोखा और न्याय एक म्यान में दो तलवारों जैसा है, क्योकिं धोखेबाज़ी का मतलब जानबूझ कर किसी के साथ, किसी के विश्वास का गलत फायदा उठाना होता है. दूसरे शब्दों में कहें तो दूसरे के नुकसान से अपना फायदा भुनाना.

बहरहाल यहां दो चीज़े शामिल हैं - सिर्फ अपने लाभ की भावना और दूसरे का नुकसान. हालांकि यह बताना मुश्किल है कि हमारे देश में कितने तरह की धोखे मौजूद हैं. आमतौर पर कोर्ट धोखाधड़ी, संपत्ति हथियाना, जाली दस्तावेज तैयार करना, पिरामिड योजनाएं, ठगी, गलत चीज़ बेचना जैसे मामलों पर सुनवाई करती है.

धोखेबाज़ी का व्यापार और अर्थव्यवस्था पर प्रभाव

भारतीय अर्थव्यवस्था में मज़बूती आने से न केवल अवसरों में उछाल आता है बल्कि तरह तरह के धोखे भी दिखने को मिलते हैं (जो भ्रष्टाचार और कालेधन से हट कर होते हैं)। विडंबना यह है कि तकनीक के विकास के साथ धोखे करने के तरीके और संभावनाएं भी बढ़ जाती हैं. धोखेबाज़ सिर्फ भारत पर ही निशान नहीं दागते. यह दुनिया भर के व्यापारों पर भारी पड़ते हैं. दुनिया भर में धोखे और धांधलेबाज़ी, जो ज़ोखिमों से जुड़ी है के कई चौकाने वाले आंकड़े सामने आएं हैं.

पिछले साल दुनियाभर में 62 प्रतिशत कारोबारियों ने यह माना कि धोखे की घटनाएं कम होने के बजाय बढ़ी रही हैं. वहीं, भारत के एक तिहाई व्यापारों का नुकसान आंतरिक और बाहरी धोखों के कारण हुआ है. हाल ही में हुए सर्वे के मुताबिक, 49 प्रतिशत कंपनियों ने यह माना है कि वो, किसी ने किसी तरह सो धोखेबाज़ी का शिकार हुई हैं.

यह आंकड़ा 2016 में 36 प्रतिशत ही था. इससे यह बात ज़ाहिर है कि ऐसी कंपनियां, जो अपने ग्राहकों और अपने को बखूबी बचाने में समर्थ हैं, उन्हें छोड़ बाकी कंपनियों में धांधलेबाज़ी और बढ़ी है. नतीजा यह है कि कंपनियां अब इससे बचने के लिए भारी पैसा खर्च करने को तैयार है. सबसे चौकाने वाला पहलू यह है कि कंपनियों में घर का भेदी ही अक्सर कंपनियों को दीमक की तरह खा रहा है.

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यानि कंपनियों के अंदर ही अपराध की घटनाएं आए दिन बढ़ रही है. जिसका अहम कारण है कि 128 बड़ी अर्थव्यवस्थाओं के सर्वे के बाद यह सामने आया कि, कारोबार को सबसे बड़ा जोखिम होता है आतंरिक जानकारी लीक करने से(39%), फिर मुसीबत होती है डाटा चोरी से (29%), तीसरी पार्टी के द्वारा कंपनी की छवि खराब करने से (29%), बाहरी पार्टी के धोखे से (28%), आंतरिक पार्टी के कारण धोखे से (27%),बौद्धिक प्रोपर्टी की चोरी(24%), जालसाज़ी(17%), और काले धन को वैध बनाना (16%). गंभीर बात यह है कि भारत के हालात भी कुछ अलग नहीं है. जिसमे आंतरिक धोखों में से 45%कर्मचारियों से हुए धोखे हैं तो, 29% तीसरी पार्टी के कारण हैं.

हैरानी की बात है कि महज 3% आंतरिक धोखाधड़ी और 7% बाहरी धोखे के मामले अंजान लोगों के द्वारा होते है. चिंताजनक बात यह है कि बड़े पदों पर मौजूद अधिकारियों द्वारा धोखे के मामले दिनों दिन बढ़ रहे हैं. ऐसे मामलों की संख्या 2016 में 16% से बढ़कर, 2018 में 24% पहुंच गई है.

दिलचस्प बात है कि देश दुनिया में ज्यादातर धोखों का पता आंतरिक ऑडिट और कुछ मामलों में बाहरी ऑडिट की कंपनियों से चलता हैं. अक्सर जिन मामलों की छानबीन कानूनी संस्था करती है उनमें 5% फर्क देखा जाता है( आंतरिक मामलों के केस में) वहीं जालसाजी के मामलों में 21% फर्क पाया जाता है. इस लिए यह बात जाहिर है कि तकनीक से अपराध बढ़ते भी हैं और पकड़ में भी आ जाते हैं.

तकनीक के विकास से बाधाओं और जालसाजियों का आलम यकीनन बढ़ा है. तभी तो साइबर सिक्योरिटी, डाटा चोरी और बौद्धिक प्रोपर्टी चोरी अब धोखाधड़ी और आर्थिक अपराधों से जुड़े महत्वपूर्ण मामले हो गए हैं. डाटा चोरी और आंतरिक जानकारी लीक करना अब सबसे ज़रूरी जोखिम और धोखाधड़ी बन गया है, जिसे व्यापारी मध्य चरण में प्राथमिकता देते हैं. ऐसे में इनके कारण जन्म लेने वाली परेशानियां और नुकसान को समझना जरूरी हो जाता है.

इन नुकसानों का भारी प्रभाव यह है कि इनसे होने वाले नुकसानों का सही कारण पता लगाना मुश्किल होता है, कई बार पता लगने पर भी कंपनियां इसे छिपाती हैं, ताकि उनकी प्रतिष्ठा पर कोई दाग न लगे. अमेरिका जैसे देशों में प्रताड़ित कंपनियों की सही जानकारी निकालने के लिए फेडरल ट्रेड कमीशन(एफटीसी) साल दर साल सर्वे करती है.

एफटीसी के अनुमान के मुताबिक, साल में 4 करोड़ अमेरीकी या कहें 16% आबादी किसी न किसी आर्थिक धोखे का शिकार होते हैं. भारत के बैंक सबसे भारी नुकसान झेल चुकें हैं. पिछले सत्र में बैंकों से जुड़े धांधलेबाज़ी के मामलों से करीब 71,500 करोड़ का नुकसान हुआ. साथ ही 15% की बढ़ोतरी के साथ 2018-19 में करीब 3,766 धोखे के मामले दर्ज हुए.

इसके अलावा, पिछले 5 सालों में सीबीआई ने पिरामिड और गैरकानूनी जमा योजना से निवेशकों को 1.2 लाख करोड़ रुपये तक का चूना लगा चुके लोगों की तफतीश की है. वहीं एक अनुमान के मुताबिक जीएसटी में धोखे के करीब 45,000 करोड़ रुपये के अनगिनत केस शामिल है.

गौरतलब यह है कि इनमें व्यक्तिगत तौर पर हुए आर्थिक नुकसान शामिल नहीं है. जंगम और अचल संपत्ति, करार, दस्तावेज और लेखांकन से जुड़े नुकसान के मामले भी गिने नही गए हैं. कड़वी सच्चाई तो यह है कि सख्त और पुख्ता कानून न होने के कारण यह विवाद, कोर्ट के मामले और पुलिस शिकायतों के सिलसिले दिनों दिन सिर्फ बढ़ रहे हैं. जल्द ही अगर सरकार और प्रशासन की नींद नहीं खुली तो हालात बद से बदत्तर हो जाएंगे.

लेखक: डॉ एस अनंत

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