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विदेशी कंपनियों, निवेशकों के साथ किस तरह खुलेआम भेदभाव कर रहा चीन

चीन में अमेरिकन चैंबर ऑफ कॉमर्स के मार्च के एक सर्वेक्षण के अनुसार, प्रौद्योगिकी क्षेत्र के आधे से अधिक उत्तरदाताओं ने कहा कि उनके साथ गलत व्यवहार किया जा रहा है.

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Published : Jul 2, 2020, 10:12 PM IST

विदेशी कंपनियों, निवेशकों के साथ किस तरह खुलेआम भेदभाव कर रहा चीन
विदेशी कंपनियों, निवेशकों के साथ किस तरह खुलेआम भेदभाव कर रहा चीन

नई दिल्ली: पूर्वी लद्दाख की गलवान घाटी में सीमा पर जारी गतिरोध के बीच भारत में चीनी कंपनियों और उनके परिचालन के खिलाफ भारत ने कड़ा रुख अख्तियार किया है.

चीन ने कई एप्स पर प्रतिबंध लगाए जाने को लेकर अंतर्राष्ट्रीय व्यापारिक नियमों को हवाला दिया है और साथ ही वह खुद को नए जमाने के व्यापार का अग्रदूत कहता है. मगर उसकी खुद की कथनी और करनी में जमीन-आसमान का अंतर है. चीन खुद लंबे समय से उद्योगों के बीच भेदभाव कर रहा है. विशेष रूप से विदेशी संस्थाओं के खिलाफ, जो उस देश में काम करने के लिए आती हैं.

चीन में अमेरिकन चैंबर ऑफ कॉमर्स के मार्च के एक सर्वेक्षण के अनुसार, प्रौद्योगिकी क्षेत्र के आधे से अधिक उत्तरदाताओं ने कहा कि उनके साथ गलत व्यवहार किया जा रहा है.

विदेशी कंपनियों ने लंबे समय से चीनी व्यवसायों, विशेषकर राष्ट्र के स्वामित्व वाले उद्यमों के साथ असमान प्रतिस्पर्धा के बारे में शिकायत की है.

उदाहरण के लिए चीन में काम करने वाली भारतीय प्रौद्योगिकी कंपनियों टीसीएस, एचसीएल, इंफोसिस, टेक महिंद्रा और विप्रो की वृद्धि एक दशक के परिचालन के बाद भी बाजार पहुंच प्रतिबंध और गैर-टैरिफ बाधाओं से पंगु हो गई है.

चीन ने देश में चलने वाली वेबसाइट और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर लंबे समय तक सख्त नियम बनाकर रखे हैं और यह चीन के तथाकथित 'ग्रेट फायरवॉल' से इंटरनेट सेंसरशिप के कारण अवरुद्ध (ब्लॉक) हैं.

वैसे तो चीन भारत की ओर से सुरक्षात्मक दृष्टिकोण से उसके एप्स पर लगाए गए प्रतिबंधों का रोना रो रहा है, मगर वह अपने गिरेबां में झांकना तक नहीं चाहता. चीनी सरकार ने विकिपीडिया, फेसबुक, ट्विटर, यूट्यूब और कुछ अन्य गूगल सेवाओं को अपने देश के लिए खतरनाक बताते हुए पूरी तरह से अवरुद्ध या अस्थायी रूप से प्रतिबंधित किया हुआ है.

विदेशी निवेशकों के खिलाफ चीन की भेदभावपूर्ण नीतियों को भी अच्छी तरह से जाना जाता है.

चीन में दीर्घकालिक वीजा प्राप्त करना वास्तव में मुश्किल है. इसके लिए निवेशकों को एक कंपनी बनाने और चीन के अविकसित पश्चिम में 500,000 डॉलर का निवेश करने की जरूरत होती है. इसके अलावा एक केंद्रीय प्रांत में 1,000,000 डॉलर या किसी अन्य क्षेत्र में 2,000,000 डॉलर का निवेश करके चीनी निवेश वीजा प्राप्त करना होता है.

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विदेशी (स्थानीय लोग भी) चीन में संपत्ति को फ्री होल्ड नहीं कर सकते हैं. भूमि का हर भूखंड शुद्ध रूप से राष्ट्र का है और अधिकतम 70 साल की लीजहोल्ड पर ही प्राप्त किया जा सकता है. यह रियल एस्टेट निवेशकों के लिए व्यापार को बहुत कठिन बनाता है. शेयर निवेशकों को भी गंभीर प्रतिबंधों का सामना करना पड़ता है. विदेशी केवल हांगकांग के माध्यम से 'ए-शेयर' खरीद सकते हैं. ऐसा करने के लिए आपको हांगकांग ब्रोकरेज में अकाउंट खोलना होगा.

चीन की नियामक और कानूनी प्रणालियों में पारदर्शिता की कमी और कानून के शासन की कमी विदेशी निवेशकों को भेदभावपूर्ण प्रथाओं जैसे नियमों के चयनात्मक प्रवर्तन और चीनी कम्युनिस्ट पार्टी (सीसीपी) द्वारा न्यायिक कार्यवाही में हस्तक्षेप करने के लिए असुरक्षित छोड़ने पर मजबूर करती है.

कुछ विदेशी कारोबारियों ने बताया है कि स्थानीय अधिकारी और नियामक कभी-कभी तो केवल स्वैच्छिक प्रदर्शन आवश्यकताओं या प्रौद्योगिकी हस्तांतरण के साथ ही ऐसे निवेश को स्वीकार करते हैं, जो कुछ घरेलू उद्योगों को विकसित करने और स्थानीय नौकरियों के सृजन में मदद कर सके.

चीन में व्यवसाय को लेकर इस तरह के अन्य कई मापदंड हैं, जो विदेशी व्यवसायियों के लिए परेशानी का सबब बनते हैं. मगर इसके बावजूद चीन खुद को नए जमाने के व्यापार का तथाकथित अग्रदूत कहता है और भारत द्वारा उसके एप्स पर सुरक्षा के दृष्टिकोण से प्रतिबंध लगाने पर अंतर्राष्ट्रीय व्यापार नियमों के उल्लंघन का रोना रोता है.

(आईएएनएस)

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