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सरकार की टाइटैनिक दुविधा: 'सामाजिक दूरी' के समय में आर्थिक झटका - सरकार की टाइटैनिक दुविधा

अब तक न तो मांग है और न ही आपूर्ति लेकिन तालाबंदी और ना मिलने जुलने के कारण उपभोक्ता गायब हो गए हैं. जबकि सभी प्रकार की उत्पादन गतिविधियों को अचानक रोक देने के कारण आपूर्ति पक्ष में भी कोई गतिविधि नहीं है.

सरकार की टाइटैनिक दुविधा: 'सामाजिक दूरी' के समय में आर्थिक झटका
सरकार की टाइटैनिक दुविधा: 'सामाजिक दूरी' के समय में आर्थिक झटका

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Published : Mar 27, 2020, 9:08 PM IST

नई दिल्ली: कोविड-19 की वजह से सार्वजनिक स्वास्थ्य आपातकाल के कारण देश एक युद्धकालीन अर्थव्यवस्था जैसे हाल में है. इस समय सरकार का सारा ध्यान आदर्श रूप से संसाधन वितरण पर है.

शेफाली एक 44 साल की दो बच्चों की मां है. मूल रूप से पश्चिम बंगाल के मालदा की रहने वाली है. वह दक्षिण दिल्ली के पड़ोस में शर्मा के यहां पार्ट-टाइम नौकरानी के रूप में काम करती है. इन दिनों वह काफी चिंतित हैं. उसने सुना है कि एक खतरनाक बीमारी फैल रही है जिसके कारण सरकार ने तालाबंदी की घोषणा कर दी है.

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शर्मा जी ने कम से कम दो सप्ताह के लिए पर्याप्त भोजन और आवश्यक चीजें स्टॉक कर रखी हैं. वहीं, शेफाली के पास के उसके घर में सिर्फ दो दिन का राशन है. शेफाली के पास नाहीं ज्यादा पैसा है कि वह ज्यादा सामान खरीद सकें. और अब तो शर्मा जी ने भी शेफाली को सोशल डिस्टेंसिंग की वजह से काम पर आने से मना कर दिया है. शेफाली अब दुविधा में फंस गई है कि अब वह क्या करें.

शेफाली उस दिन को याद करती है जब उसकी मां ने उसे 1971 की भारत-पाकिस्तान की लड़ाई की बात बताई थी. यह वही लड़ाई थी जिसके बाद बांग्लादेश अस्तित्व में आया था. मालदा लड़ाई की जगह से कुछ ही दूर पर था.

शेफाली के लिए यह समय युद्ध के दिनों के समान है. बस अंतर इतना है कि वह युद्ध था और यह एक महामारी के कारण उत्तपन्न हुई स्थिती. दोनों ही समय गहरी मंदी आई है.

जियोग्राफर फिलिप ले बिलन ने एक युद्धकालीन अर्थव्यवस्था का वर्णन करते हैं. जहां उत्पादन, जुटाने और संसाधनों को आवंटित करने की प्रणाली को युद्ध के प्रयासों को बनाए रखने के लिए तैयार किया गया है.

आज भी सभी संसाधन और संसाधनों का आवंटन के संकट कोविड-19 का मुकाबला करने पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं. ऑटोमोबाइल कंपनियों सहित उद्योग घराने को अपने मुख्य काम को छोड़ वेंटिलेटर और कोविड-19 मरीजों के लिए बुनियादी ढांचा तैयार कर रहें. वहीं, कोई इस महामारी से लड़ने के लिए परीक्षण किट बना रहा है.

सरकार अपनी ओर से निरंतर प्रतिक्रिया दे रही है. इसी क्रम में वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने गुरुवार को कमजोर वर्गों के राहत पैकेज दी. वहीं, आरबीआई के गवर्नर शक्तिकांत दास ने भी आज रेपो दरों में कटौती कर करके राहत देने का काम किया है. आने वाले दिनों में कई और कदम उठाए जाने की उम्मीद है.

सीतारमण के उपाय समाज के सबसे कमजोर और सबसे गरीब तबके या सबसे कम आय वर्ग पर केंद्रित हैं. दास के कदम कॉर्पोरेट और ऋण उधार लेने वाले वर्ग की परेशानियों से निपटने के लिए थे जो अनिवार्य रूप से वेतनभोगी और मध्यम वर्ग के लिए हैं जिन्हें लंबित ईएमआई और अन्य समान भुगतान देने के लिए राहत दी गई है.

लेकिन इन उपायों के साथ सबसे बड़ी समस्या या परेशानी यह है कि किसीको भी पता नहीं कि यह समस्या कब तक रहेगी.

मौजूदा स्टॉक और इन्वेंट्रीज से अब खाद्यान्न और आवश्यक वस्तुओं की आपूर्ति पूरी हो रही है और यही कारण है कि सबसे कमजोर वर्गों को सरकार नकद सहायता दे रही है. लेकिन अगर आपूर्ति और प्रावधान नहीं रहेंगे तो आखिर नकदी क्या करेगी. लेकिन खेती की गतिविधि के साथ एक ठहराव आ गया है और कारखानों में 'लॉक आउट' हो गया है. जिससे एक बड़े संकट के आने की आशंका है.

अब तक न तो मांग है और न ही आपूर्ति लेकिन तालाबंदी और ना मिलने जुलने के कारण उपभोक्ता गायब हो गए हैं. जबकि सभी प्रकार की उत्पादन गतिविधियों को अचानक रोक देने के कारण आपूर्ति पक्ष में कोई गतिविधि नहीं है.

कुछ परिवारों के स्टॉक जमा करने के कारण खाद्यान्नों और आवश्यक वस्तुओं की तीव्र कमी हो सकती है असंतोष स्थिती को जन्म दे सकती है.

सरकार के सामने दुविधा यह है कि राज्य किस तरह से सामाजिक भेदभाव के समय काम करेगी.

(लेखक - संजीब कुमार बरुआ, वरिष्ट पत्रकार)

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