नई दिल्ली: कोविड-19 की वजह से सार्वजनिक स्वास्थ्य आपातकाल के कारण देश एक युद्धकालीन अर्थव्यवस्था जैसे हाल में है. इस समय सरकार का सारा ध्यान आदर्श रूप से संसाधन वितरण पर है.
शेफाली एक 44 साल की दो बच्चों की मां है. मूल रूप से पश्चिम बंगाल के मालदा की रहने वाली है. वह दक्षिण दिल्ली के पड़ोस में शर्मा के यहां पार्ट-टाइम नौकरानी के रूप में काम करती है. इन दिनों वह काफी चिंतित हैं. उसने सुना है कि एक खतरनाक बीमारी फैल रही है जिसके कारण सरकार ने तालाबंदी की घोषणा कर दी है.
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शर्मा जी ने कम से कम दो सप्ताह के लिए पर्याप्त भोजन और आवश्यक चीजें स्टॉक कर रखी हैं. वहीं, शेफाली के पास के उसके घर में सिर्फ दो दिन का राशन है. शेफाली के पास नाहीं ज्यादा पैसा है कि वह ज्यादा सामान खरीद सकें. और अब तो शर्मा जी ने भी शेफाली को सोशल डिस्टेंसिंग की वजह से काम पर आने से मना कर दिया है. शेफाली अब दुविधा में फंस गई है कि अब वह क्या करें.
शेफाली उस दिन को याद करती है जब उसकी मां ने उसे 1971 की भारत-पाकिस्तान की लड़ाई की बात बताई थी. यह वही लड़ाई थी जिसके बाद बांग्लादेश अस्तित्व में आया था. मालदा लड़ाई की जगह से कुछ ही दूर पर था.
शेफाली के लिए यह समय युद्ध के दिनों के समान है. बस अंतर इतना है कि वह युद्ध था और यह एक महामारी के कारण उत्तपन्न हुई स्थिती. दोनों ही समय गहरी मंदी आई है.
जियोग्राफर फिलिप ले बिलन ने एक युद्धकालीन अर्थव्यवस्था का वर्णन करते हैं. जहां उत्पादन, जुटाने और संसाधनों को आवंटित करने की प्रणाली को युद्ध के प्रयासों को बनाए रखने के लिए तैयार किया गया है.
आज भी सभी संसाधन और संसाधनों का आवंटन के संकट कोविड-19 का मुकाबला करने पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं. ऑटोमोबाइल कंपनियों सहित उद्योग घराने को अपने मुख्य काम को छोड़ वेंटिलेटर और कोविड-19 मरीजों के लिए बुनियादी ढांचा तैयार कर रहें. वहीं, कोई इस महामारी से लड़ने के लिए परीक्षण किट बना रहा है.