नई दिल्ली :पूर्व वित्त सचिव एस सी गर्ग ने सोमवार को कहा कि कोविड-19 के बढ़ते नये मामलों तथा उसकी रोकथाम के लिये स्थानीय स्तर पर लगाये जा रहे 'लॉकडाउन' से चालू वित्त वर्ष में आर्थिक वृद्धि दर 10 प्रतिशत से नीचे जा सकती है.
इस महीने की शुरूआत में अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) ने 2021 में भारत की वृद्धि दर 12.5 प्रतिशत रहने का अनुमान जताया. आर्थिक समीक्षा में चालू वित्त वर्ष में वृद्धि दर 11 प्रतिशत जबकि रिजर्व बैंक ने इसके 10.5 प्रतिशत रहने की संभावना जतायी है.
गर्ग ने अपने 'ब्लॉग' में लिखा है कि कोविड-19 मामलों में तेजी से वृद्धि और इसकी रोकथाम के लिये कई राज्यों में लगायी गयी पाबंदियों से चालू वित्त वर्ष में आर्थिक वृद्धि दर पर असर पड़ने वाला है.
उन्होंने कहा, 'अभी इस बात का अनुमान लगाना कठिन है संक्रमण किस तेजी फैलता है? सरकार इस संकट से निपटने के लिये क्या कदम उठाती है, किस तरह की पाबंदियां लगाायी जाती हैं और लोगों का रुख क्या होता है? ये सभी बातें मांग और आपूर्ति पर पड़ने वाले प्रभाव को निर्धारित करेंगी.'
पहली तिमाही में वृद्धि दर अब करीब 15 से 20 प्रतिशत रहने का अनुमान है. पिछले वित्त वर्ष 2020-21 की इसी तिमाही में सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में 24 प्रतिशत की गिरावट आयी थी.
उन्होंने कहा कि अगर कोरोना की मौजूदा दूसरी लहर नहीं आती, तो यह वृद्धि दर 25 से 30 प्रतिशत के बीच होती.
गर्ग ने पूरे वित्त वर्ष 2021-22 का अनुमान जताते हुए कहा, 'इस समय की स्थिति के अनुसार चालू वित्त वर्ष में वृद्धि दर 10 प्रतिशत से कुछ नीचे रहने की संभावना अधिक वास्तविक लग रही है.'
ये भी पढ़ें :बैंक विलय पर ग्राहक संतुष्टि सर्वेक्षण करेगा आरबीआई
उन्होंने राष्ट्रीय स्तर पर 'लॉकडाउन' नहीं लगाये जाने के विचार की सराहना की. अभी लगायी जा रही पाबंदियों से मासिक आधार पर नुकसान 0.5 प्रतिशत से कम होने का अनुमान है. जबकि पूर्ण रूप से 'लॉकडाउन' लगाये जाने से नुकसान 4 प्रतिशत होता.
पूर्व वित्त सचिव ने कहा, 'इस साल जिस प्रकार की पाबंदियां लगायी गयी हैं, उससे प्राथमिक क्षेत्र (कृषि, खनन आदि) की आर्थिक गतिविधियां कमोबेश प्रभावित नहीं होंगी. द्वितीयक क्षेत्रों (विनिर्माण, निर्माण आदि) में आर्थिक गतिविधियों पर भी बहुत कम प्रभाव पड़ने की संभावना हैं.'
उन्होंने कहा कि जो पाबंदियां लगायी गयी हैं, वे खुदरा, होटल, व्यक्तिगत सेवाएं, शिक्षा आदि जैसी तृतीय श्रेणी पर केंद्रित हैं. जिन क्षेत्रों में डिजिटलीकरण तेजी से हुआ है, उन पर ज्यादा असर नहीं पड़ेगा. इन क्षेत्रों में आईटी सेवाएं, दूरसंचार, वित्तीय सेवाएं और खुदरा तथा वितरण शामिल हैं.