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वित्त आयोग प्रमुख ने राजकोषीय घाटे पर नजर रखने के लिए संस्थागत व्यवस्था की वकालत की

वित्त आयोग के चेयरमैन एन के सिंह ने कहा कि राज्य सरकार की देनदारियों के संदर्भ में धारा 293 (3) कर्ज पर संवैधानिक अंकुश लगाती है, लेकिन केंद्र पर इस तरह का कोई अंकुश नहीं है.

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Published : Mar 29, 2019, 12:23 PM IST

एन के सिंह (फाइल फोटो)।

नई दिल्ली : वित्त आयोग के चेयरमैन एन के सिंह ने केंद्र और राज्य सरकारों की राजकोषीय सुदृढीकरण रूपरेखा की निगरानी के लिए 'राजकोषीय परिषद' जैसी संस्थागत व्यवस्था की वकालत की है. उन्होंने कहा कि राजकोषीय संघवाद एक गतिशील प्रक्रिया है और चलते हुये कार्य की तरह है.

सिंह ने यहां रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर वाई वी रेड्डी द्वारा लिखी गई पुस्तक 'इंडियन फिस्कल फेडरलिज्म' के विमोचन अवसर पर यह बात कही. रेड्डी वित्त आयोग के भी चेयरमैन रह चुके हैं. पुस्तक में दिए गए सुझाव पर सिंह ने कहा कि वह भी इस बात से सहमत हैं कि इस तरह का कोई तंत्र होना चाहिए, जिससे कि केन्द्र और राज्यों के बीच संसाधनों के बंटवारे की प्रक्रिया के मूल भावना पर चतुर वित्तीय इंजीनियरिंग से कोई कमी नहीं हो.

उन्होंने कहा कि कर्ज को लेकर केंद्र और राज्यों के लिए खेल के नियम एक समान होने चाहिए. सिंह ने कहा, "राज्य सरकार की देनदारियों के संदर्भ में धारा 293 (3) कर्ज पर संवैधानिक अंकुश लगाती है, लेकिन केंद्र पर इस तरह का कोई अंकुश नहीं है."

उन्होंने कहा कि मेरा मानना है कि अब समय आ गया है जबकि एक वैकल्पिक संस्थागत व्यवस्था मसलन राजकोषीय परिषद होनी चाहिए जो राजकोषीय नियमों को लागू करे और केंद्र की राजकोषीय मजबूती की स्थिति की निगरानी करे.
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