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समझिए: भारत की थोक और खुदरा मुद्रास्फीति दर में अंतर के कारण - भारत की थोक और खुदरा मुद्रास्फीति दर में अंतर के कारण

भारत का थोक मूल्य सूचकांक आधारित मुद्रास्फीति जून में -1.81% थी, जबकि उपभोक्ता मूल्य सूचकांक आधारित खुदरा मुद्रास्फीति उसी महीने के दौरान 6.09% थी. दोनों सूचकांक महंगाई दर बतातें हैं. लेकिन दोनों में अंतर कुछ सवाल खड़ें करते हैं. जानिए क्यों थोक और खुदरा मुद्रास्फीति दर में अंतर है.

समझिए: भारत की थोक और खुदरा मुद्रास्फीति दर में अंतर के कारण
समझिए: भारत की थोक और खुदरा मुद्रास्फीति दर में अंतर के कारण

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Published : Jul 17, 2020, 6:01 AM IST

हैदराबाद: मंगलवार को जारी आधिकारिक आंकड़ों से पता चलता है कि भारत का थोक मूल्य सूचकांक आधारित मुद्रास्फीति जून में सालाना आधार पर -1.81% थी. जिसका मतलब है कि देश में थोक मूल्य महंगाई एक साल पहले की तुलना में घटी है.

इस बीच उपभोक्ता मूल्य सूचकांक आधारित खुदरा मुद्रास्फीति जून में 6.09% थी जो उपभोक्ता स्तर पर उच्च कीमतों को दर्शाती है. यह संख्या यहां महत्वपूर्ण है क्योंकि यह भारतीय रिज़र्व बैंक की खुदरा मुद्रास्फीति के लिए ऊपरी सीमा से ज्यादा है. आरबीआई का लक्ष्य रहता है कि खुदरा महंगाई दर 4% पर रहे. इसमें 2% की कमी या बढ़ोतरी हो सकती है.

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दो प्रकार की मुद्रास्फीति दरों के बीच इस विशाल अंतर का अर्थ है कि बाजार की स्थिति ऐसी है कि थोक स्तर पर कीमतों में गिरावट हैं और खुदरा कीमतें यानि आम लोगों तक पहुंचने में यह महंगा हो जा रहा है. हालांकि, यह पूरी तरह से सही नहीं है क्योंकि विभिन्न अन्य कारक के कारण डब्ल्यूपीआई और सीपीआई के आंकड़ों में अंतर पैदा होता है. इस तरह के विचलन के पीछे तीन प्रमुख कारणों हैं.

1. सूचकांकों का गठन:दरअसल, ऐसा होने की वजह यह है कि खुदरा महंगाई दर में खाद्य पदार्थों की हिस्सेदारी 54.2 फीसदी की है, जबकि थोक महंगाई दर में यह हिस्सेदारी 15.3 फीसदी है. ऐसे में साफ है कि खाद्य पदार्थों की कीमतों में बदलाव का बड़ा असर खुदरा महंगाई पर ही देखने को मिलेगा.

इसी तरह फ्यूल और पावर कैटिगरी की थोक महंगाई दर में हिस्सेदारी 13.2 फीसदी है, जोकि खुदरा महंगाई में हिस्सेदारी 7.94 फीसदी है. साथ ही, चिकित्सा एवं शिक्षा जैसे खर्च की महंगाई आदि ऐसी हैं जिनका खुदरा महंगाई दर के आकलन में ध्यान रखा जाता है, लेकिन थोक महंगाई दर के आकलन में नहीं.

इसका मतलब यह है कि किसी विशेष वस्तु या लेख की कीमतों में किसी भी वृद्धि का थोक और उपभोक्ता मुद्रास्फीति पर अलग-अलग प्रभाव पड़ेगा.

2. समय अंतराल: इसके अलावा किसी भी बाजार की तरह थोक स्तर कीमतें बढ़ने से चीजों की कीमतें तुरंत नहीं बढ़ जाती है. कीमतों में परिवर्तन उपभोक्ता स्तर की यात्रा के लिए समय लगता है. इसलिए, कभी-कभी थोक मुद्रास्फीति में बढ़त या घटाव का सीधा असर सीपीआई मुद्रास्फीति पर तुरंत नहीं पड़ता है. हां, लेकिन इसके भविष्य में बढ़ने की आशंका बढ़ जाती है.

3) आपूर्ति श्रृंखला: आपूर्ति श्रृंखला में व्यवधान के परिणामस्वरूप थोक मुद्रास्फीति और उपभोक्ता मुद्रास्फीति की दर में अंतर हो सकता है. उदाहरण के लिए देश भर कोरोना महामारी के लॉकडाउन लगाया गया. जिसके कारण आपूर्ति श्रृंखला पर गहरा असर पड़ा. खासकर खाद्य सामानों को लेकर जा रहे ट्रकों को काफी मुश्किल का सामना करना पड़ा. कई खाने-पीन वाली चीजें खराब हो गई.

विभिन्न मीडिया रिपोर्टों में इस बात पर चर्चा की गई कि किस तरह किसानों को उनकी उपज का उचित मूल्य नहीं मिल रहा है क्योंकि आपूर्ति की कमी के कारण उपभोक्ताओं को बहुत अधिक कीमत चुकानी पड़ रही है.

नीति निर्माताओं के लिए खुदरा महंगाई और थोक महंगाई गैप का क्या अर्थ है?

जून की मुद्रास्फीति की संख्या केंद्रीय बैंक और नीति निर्माताओं के लिए वास्तविक चिंता का कारण हो सकती है. चूंकि भारतीय रिजर्व बैंक ब्याज दरों पर कार्रवाई के लिए बेंचमार्क के रूप में खुदरा महंगाई का उपयोग करता है.

हालांकि, थोक मूल्यों में गिरावट और भी चिंताजनक है क्योंकि यह संकेत देता है कि भारत का विनिर्माण क्षेत्र कमजोर हो रहा है. इससे विकास को बढ़ावा देने के लिए और अधिक दरों में कटौती होगी. हाल के महीनों में विशेष रूप से कोरोनो वायरस महामारी के प्रकोप के बाद आरबीआई ने बाकी सभी चीजों के विकास को पुनर्जीवित करने पर जोर दिया है. यह देखना बाकी है कि कब तक जारी रहता है.

(ईटीवी भारत रिपोर्ट)

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