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Covid Bond से जुटा सकते हैं पैसे, अभी नोट की छपाई की जरूरत नहीं : सुब्बाराव

भारतीय रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर डी सुब्बाराव (D Subbarao) ने कहा कि कोविड-19 महामारी की दूसरी लहर और उसकी रोकथाम के लिए राज्यों के स्तर पर लगाये गए लॉकडाउन से अर्थव्यवस्था में नरमी आई है. इससे निपटने के लिए सरकार पैसा जुटाने के लिए कोविड बॉन्ड (Covid Bond) लाने के विकल्प पर विचार कर सकती है.

भारतीय रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर डी सुब्बाराव
भारतीय रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर डी सुब्बाराव

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Published : Jun 9, 2021, 9:59 PM IST

नई दिल्ली : भारतीय रिजर्व बैंक (Reserve Bank of India - RBI) के पूर्व गवर्नर डी सुब्बाराव (D. Subbarao) ने बुधवार को कहा कि केंद्रीय बैंक (Central Bank) प्रत्यक्ष रूप से नोट की छपाई (RBI Money Printing) कर सरकार को जरूरी वित्त उपलब्ध करा सकता है. लेकिन, इसका उपयोग तभी होना चाहिए, जब कोई और उपाय न बचा हो. उन्होंने यह भी कहा कि भारत में अभी इस तरह की स्थिति नहीं है.

'लॉकडाउन से अर्थव्यवस्था में आई नरमी'

सुब्बाराव ने बातचीत में कहा कि कोविड-19 महामारी (Covid-19 Pandemic) की दूसरी लहर और उसकी रोकथाम के लिए राज्यों के स्तर पर लगाये गए लॉकडाउन से अर्थव्यवस्था में नरमी आई है. इससे निपटने के लिए सरकार पैसा जुटाने के लिए कोविड बॉन्ड (Covid Bond) लाने के विकल्प पर विचार कर सकती है. यह बजट में निर्धारित कर्ज के अतिरिक्त नहीं बल्कि उसी के अंतर्गत होना चाहिए.

उन्होंने कहा कि आरबीआई सीधे नोट की छपाई (RBI Money Printing) कर सकता है, लेकिन यह तभी होना चाहिए जब कोई और उपाय नहीं बचा हो. निश्चित रूप से, ऐसा भी समय होता है जब प्रतिकूल प्रभाव होने के बावजूद अतिरिक्त मुद्रा की छपाई जरूरी होती है. यह स्थिति तब होती है, जब सरकार अपने घाटे का वित्त पोषण तार्किक दर पर नहीं कर सकती. सुब्बाराव ने कहा कि बहरहाल, हम अभी वैसी स्थिति में नहीं हैं.

क्या कोविडबॉन्डएक विकल्प है?

यह पूछे जाने पर कि क्या कोविड बॉन्ड एक विकल्प है, जिसके जरिये सरकार कुछ उधार लेने पर विचार कर सकती है, सुब्बाराव ने कहा कि यह कुछ अच्छा विकल्प है, जिसपर विचार किया जा सकता है. लेकिन यह बजट में निर्धारित उधार के अलावा नहीं, बल्कि उसके एक हिस्से के रूप में होना चाहिए.

दूसरे शब्दों में, सुब्बाराव ने कहा कि बाजार में उधार लेने के बजाय, सरकार लोगों को कोविड बॉन्ड जारी करके अपनी उधार आवश्यकताओं का एक हिस्सा इससे जुटा सकती है.

उन्होंने कहा कि इस प्रकार के कोविड बॉन्ड से मुद्रा आपूर्ति नहीं बढ़ेगी और आरबीआई के नकदी प्रबंधन में इससे कोई फर्क नहीं पड़ेगा.

'केंद्रीय बैंक एक वाणिज्यिक संस्थान नहीं'

यह पूछे जाने पर कि क्या आरबीआई सरकार के राजकोषीय दबाव को कम करने में मदद के लिए अधिक मुनाफा कमा सकता है, उन्होंने कहा कि केंद्रीय बैंक एक वाणिज्यिक संस्थान नहीं है और लाभ कमाना इसका उद्देश्य नहीं है.

यह पूछे जाने पर कि आर्थिक पुनरूद्धार के लिए आरबीआई और क्या कर सकता है, उन्होंने कहा कि एक साल पहले आयी महामारी की शुरुआत से ही आरबीआई तेजी से और नए-नए कदम उठाता आ रहा है.

सुब्बाराव ने कहा कि आने वाले समय में आरबीआई क्या कर सकता है, यह गवर्नर ने हाल में मौद्रिक नीति समीक्षा (monetary policy review) को लेकर अपने बयान में स्पष्ट किया है. उसमें कहा गया है कि नकदी का समान वितरण हो. यानी सर्वाधिक दबाव वाले क्षेत्रों को कर्ज की सुविधा मिले.

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देश की अर्थव्यवस्था में गिरावट व लक्ष्य

देश की अर्थव्यवस्था में मार्च 2021 को समाप्त वित्त वर्ष (Fiscal Year) में 7.3 प्रतिशत की गिरावट आई जो विभिन्न अनुमानों से कम है. सरकार ने वित्त वर्ष 2021-22 के लिए राजकोषीय घाटा (fiscal deficit) 6.8 प्रतिशत रहने का अनुमान जताया है. इसे 2025-26 तक कम कर 4.5 प्रतिशत पर लाने का लक्ष्य रखा गया है.

रिजर्व बैंक ने महामारी की दूसरी लहर के कारण उत्पन्न अनिश्चितता को देखते हुए चालू वित्त वर्ष के लिए देश के आर्थिक वृद्धि दर के अनुमान को 10.5 प्रतिशत से कम कर 9.5 प्रतिशत कर दिया है. वहीं, विश्व बैंक (World Bank) ने 2021 में आर्थिक वृद्धि दर 8.3 प्रतिशत रहने की संभावना जताई है.

'केंद्रीय बैंक पूरा कर रहा सरकार का घाटा'

सुब्बाराव के अनुसार जब लोग कहते हैं कि आरबीआई को सरकार के घाटे को पूरा करने के लिए नोट छापना चाहिए, तो उन्हें इस बात का एहसास नहीं होता कि केंद्रीय बैंक घाटे को पूरा करने के लिए अब भी मुद्रा की छपाई कर रहा है, लेकिन यह अप्रत्यक्ष रूप से हो रहा है.

उन्होंने कहा कि उदाहरण के लिए जब रिजर्व बैंक अपने खुले बाजार संचालन (Open Market Operations-OMO) के तहत बॉन्ड खरीदता है या अपने विदेशी मुद्रा संचालन के तहत डॉलर खरीदता है, तो वह उन खरीद के भुगतान के लिए मुद्रा की छपाई कर रहा है. यह पैसा अप्रत्यक्ष रूप से सरकार के कर्ज वित्त पोषण के लिए जाता है.

सुब्बाराव ने कहा कि हालांकि, इसमें महत्वपूर्ण अंतर यह है कि जब आरबीआई अपने नकदी व्यवस्था के हिस्से के रूप में नोट छापता है, तो वह खुद चालक की सीट पर होता और यह तय करता है कि कितने नोट छापने हैं तथा उसे कैसे आगे बढ़ाना है.

यह भी पढ़ें- रिजर्व बैंक का चालू वित्त वर्ष में मुद्रास्फीति दर 5.1 प्रतिशत रहने का अनुमान

क्या है मौद्रिक नीति और मौद्रीकरण?

उन्होंने कहा कि इसके विपरीत अतिरिक्त मुद्रा छपाई को सरकार के राजकोषीय घाटे के वित्तपोषण के एक तरीके के रूप में देखा जाता है. इसमें छापे जाने वाली राशि की मात्रा और समय आरबीआई की मौद्रिक नीति (Monetary Policy) के बजाय सरकार की उधार आवश्यकता से तय होता है.

आरबीआई के पूर्व गवर्नर ने कहा कि इस स्थिति को आरबीआई का मुद्रा आपूर्ति पर नियंत्रण नहीं रहने के तौर पर भी देखा जाता है. इससे आरबीआई और सरकार दोनों की विश्वसनीयता को नुकसान पहुंचता है. साथ ही इसका प्रतिकूल वृहत आर्थिक प्रभाव होता है.

रिजर्व बेंक के राजकोषीय घाटे के मौद्रीकरण (monetization) से तात्पर्य है कि केन्द्रीय बैंक सरकार के लिए उसके राजकोषीय घाटे की भरपाई के तहत आपात व्यय के लिए मुद्रा की छपाई करता है.

(पीटीआई-भाषा)

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