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कोविड-19 संकट के बीच जीवन और अर्थव्यवस्था बचाने की जंग - जीवन बचाने और अर्थव्यवस्था बचाने के बीच द्वंद

पूर्व डिप्टी गवर्नर ने कहा कि अगर सरकार अर्थव्यवस्था के पक्ष में निर्णय लेती हैं तो कोई लोग बोलेंगे की स्वास्थ्य पर ध्यान देना चाहिए और अगर सरकार स्वास्थ्य पर ध्यान देगी तो लोग बोलेंगे की अर्थव्यवस्था को ठीक किया जाए लेकिन यह ठीक दृष्टिकोण नहीं है क्योंकि आज की स्थिति में इसके लिए कोई ठोस समाधान नहीं है.

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Published : Jul 2, 2020, 5:23 PM IST

नई दिल्ली: भारत और अन्य देशों में कोरोना वायरस के मामलों में लॉकडाउन हटने के बाद तेजी देखने को मिली है. भारत में मोदी सरकार ने 8 जून से अर्थव्यवस्था को अनलॉक करना शुरू कर दिया था. पांच मार्च से सात जून तक चले लॉकडाउन के अनलॉक करने की प्रक्रिया शुरु कर दी गई है.

अर्थव्यवस्था के खुलने के साथ ही राजस्व संग्रह में लगातार वृद्धि देखने को मिली थी. जून में भारत के जीएसटी संग्रह ने पूर्व-कोविड स्तर को लगभग छू लिया है, लेकिन इसी अवधि के दौरान नए कोरोना मामलों की संख्या भी 2 लाख से 6 लाख हो गई है.

पिछले महीने विश्व स्वास्थ्य संगठन ने देशों को अत्यधिक सावधानी के साथ लॉकडाउन खोलने के लिए कहा था क्योंकि इससे कोविड-19 संक्रमणों में संभावित पुनरुत्थान हो सकता है.

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कुछ अर्थशास्त्रियों ने अर्थव्यवस्था को पुनर्जीवित करने के उपायों की प्रभावकारिता पर भी संदेह व्यक्त किया है. जिसमें कहा गया है कि अर्थव्यवस्था को तब तक पुनर्जीवित नहीं किया जा सकता है जब तक कि चिकित्सा विज्ञान कोरोना वायरस के लिए कोई ठोस दवा या वैक्सिन नहीं बना लेता. अत्यधिक संक्रामक वायरस ने दुनिया भर 5,18,000 से अधिक लोगों की अपनी चपेट में ले चुका है.

इस मुद्दे पर बात करते हुए आरबीआई के पूर्व डिप्टी गवर्नर आर गांधी ने कहा कि कोरोना की दवाई कब तक आती है ये देखने वाली बात होगी लेकिन इस बीच हम कोरोना के मरीजों की संख्या बढ़ती ही जा रही है. यह काफी मुश्किल है कि कोरोना से निपटें या लोगों की आजीविका बचाएं.

देश में पुष्टि किए गए कोरोना मामलों की संख्या पहले ही 6 लाख के पार चली गई है. वहीं, अमेरिका (27,31,000), ब्राजील (14,10,000) और रूस (6,54,000) के बाद भारत कोरोना मरीजों के मामलों में दुनिया में चौथी स्थान पर पहुंच गया है.

मार्च के अंत में प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार ने वायरस को फैलने से रोकने के लिए दुनिया में सबसे कठोर राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन लगाया था. हालांकि, लॉकडाउन ने देश में आर्थिक गतिविधियों को भी रोक दिया है.

कोरोना वायरस महामारी के कारण पिछले कुछ महीनों से आर्थिक गतिविधियों के सिकुड़ते रहने से वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) के तहत आने वाले सरकारी राजस्व पर बुरा असर पड़ रहा है. यही वजह है कि यह जून में एक लाख करोड़ के मनोवैज्ञानिक स्तर से नीचे गिरकर 90,917 करोड़ रुपये ही प्राप्त हो पाया है. जून में प्राप्त हुआ संग्रह, पिछले वर्षों की संख्या का 91 प्रतिशत है.

अप्रैल महीने में जीएसटी संग्रह केवल 32,294 करोड़ रुपये था, जो पिछले साल के इसी महीने के दौरान एकत्र किए गए राजस्व का 28 प्रतिशत था. इसके अलावा मई महीने के लिए जीएसटी संग्रह 62,009 करोड़ रुपये था, जो पिछले साल इसी महीने के दौरान एकत्र किए गए राजस्व का 62 प्रतिशत था.

हालांकि, जैसे ही सरकार ने अपनी अनलॉक प्रक्रिया शुरू की वैसे ही देश में कोरोना के मामलों में भी उल्लेखनीय वृद्धि देखने को मिली.

भारत में एक दिन में कोविड-19 के 19,148 नए मामले आने के बाद संक्रमितों की संख्या छह लाख के पार चली गई है और मृतकों की संख्या 17,834 पर पहुंच गई है.

महज पांच दिन पहले ही संक्रमितों की संख्या पांच लाख के पार हुई थी1 जून से 1 जुलाई के बीच 1,98,000 से 6,00,000 से अधिक पुष्टि वाले मामलों में एक महीने में 4,00,000 से अधिक मामलों की वृद्धि हुई है. देश में अब भी 2,26,947 लोगों का कोरोना वायरस संक्रमण का इलाज चल रहा है.

पीएमजीकेएवाई के तहत देश के 80 करोड़ से अधिक राशन कार्डधारकों को हर महीने पांच किलो अनाज (गेहूं या चावल) और राशन कार्डधारक प्रत्येक परिवार को एक किलो दाल हर महीने मुफ्त दिया जाता है.

कोरोना काल में शुरू की गई मुफ्त अनाज वितरण की योजना अप्रैल, मई और जून अर्थात तीन महीने के लिए थी, लेकिन 30 जून को इसकी समय सीमा समाप्त होने से पहले प्रधानमंत्री ने इसे पांच महीने और बढ़ाकर नवंबर तक के लिए कर दिया. मतलब, पीडीएस के लाभार्थियों को अब नवंबर, 2020 तक इस योजना का लाभ मिलता रहेगा.

जब वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने इस साल मार्च के अंतिम सप्ताह में कल्याणकारी उपायों की घोषणा की थी तो पीएम गरीब कल्याण योजना के तहत अधिकांश कल्याणकारी उपायों का लक्ष्य लगभग दो-तिहाई आबादी के हाथों में भोजन और कुछ नकदी देना था.

यह दर्शाता है कि सरकार का अनुमान था कि जून तक महामारी को संभाल लिया जाएगा लेकिन नवंबर तक मुफ्त राशन योजना के विस्तार ये बताता है कि सरकार ने लंबी दौड़ की तैयारी कर ली है.

आर गांधी कहते हैं कि अधिकारियों को जीवन बचाने और आजीविका बचाने के दो विकल्पों के बीच संतुलन बनाना होगा.

पूर्व डिप्टी गवर्नर ने कहा कि अगर सरकार अर्थव्यवस्था के पक्ष में निर्णय लेती हैं तो कोई लोग बोलेंगे की स्वास्थ्य पर ध्यान देना चाहिए और अगर सरकार स्वास्थ्य पर ध्यान देगी तो लोग बोलेंगे की अर्थव्यवस्था को ठीक किया जाए लेकिन यह ठीक दृष्टिकोण नहीं है क्योंकि आज की स्थिति में इसके लिए कोई ठोस समाधान नहीं है.

उन्होंने कहा, "मुझे उम्मीद है कि अधिकारी लोगों के स्वास्थ्य और आजीविका के दोनों के हित में सही निर्णय लेंगे, और हमें इसे स्वीकार करना चाहिए,"

(लेखक - कृष्णानन्द त्रिपाठी, वरिष्ठ पत्रकार)

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