चेन्नई: मद्रास स्कूल ऑफ़ इकोनॉमिक्स में 'पांच ट्रिलियन अर्थव्यवस्था की ओर' विषय पर चर्चा की गई. चर्चा के दौरान नीति आयोग के उपाध्यक्ष राजीव कुमार और आरबीआई के पूर्व गवर्नर सी रंगराजन मौजूद थे.
कार्यक्रम के दौरान राजीव कुमार ने कहा कि मौजूदा आर्थिक सुस्ती संरचनात्मक और चक्रीय कारकों की वजह आई है. लेकिन कार्यक्रम में मौजूद आरबीआई के पूर्व गवर्नर रंगराजन ने इसे सिरे नकार दिया.
देश की अर्थव्यवस्था में आर्थिक मंदी नहीं बल्कि 'सुस्ती' है: रंगराजन
पिछले कुछ समय से अर्थव्यवस्था में सुस्ती की चर्चा शुरू हो गई है. ऐसे में एक कार्यक्रम के दौरान राजीव कुमार ने कहा कि मौजूदा आर्थिक सुस्ती संरचनात्मक और चक्रीय कारकों की वजह आई है. लेकिन कार्यक्रम में मौजूद आरबीआई के पूर्व गवर्नर रंगराजन ने इसे सिरे नकार दिया.
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रंगराजन ने बताया मंदी और सुस्ती का अंतर
ईटीवी भारत से बात करते हुए आरबीआई के पूर्व गवर्नर रंगराजन ने मंदी और सुस्ती के तकनीकी मायने बताये. उन्होंने कहा कि जीडीपी विकास दर में गिरावट होने पर उसे आर्थिक सुस्ती या स्लोडाउन कहा जाता है. वहीं, यदि जीडीपी में गिरावट देखने को मिलती है तो उसे मंदी कहते हैं. इस प्रकार से अर्थव्यवस्था की वर्तमान स्थिति को सुस्ती कहना कुछ हद तक जायज है क्योंकि आर्थिक क्रियाकलापों की गति लगातार धीमी हो रही है.
इससे पहले 'पांच ट्रिलियन अर्थव्यवस्था की ओर' विषय पर नीति आयोग के उपाध्यक्ष राजीव कुमार ने कहा कि अर्थव्यवस्था को गति देने के लिए जोरदार प्रयास किए जा रहें हैं. सरकार ने आर्थिक वृद्धि को तेज करने और देश को 5 लाख करोड़ डॉलर की अर्थव्यवस्था बनाने को प्राथमिकता दी है.
भविष्य की जरुरतों के लिए पांच ट्रिलियन की अर्थव्यवस्था जरुरी
राजीव कुमार ने कहा कि भविष्य की जरुरतों को ध्यान में रखते हुए हमें 5-ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनने की आवश्यकता है और ऐसा करने के लिए हमें प्रति वर्ष 12 प्रतिशत जीडीपी विकास दर की जरुरत है. इसके साथ ही उन्होंने कहा कि भारत को प्रति व्यक्ति आय में भी बढ़ोतरी करनी होगी.
अर्थव्यवस्था में आ चुका है ऋण संकट
राजीव कुमार ने जीरो बजट खेती का सुझाव भी देते हुए कहा कि हमें इनपुट लागत कम करने और निर्यात बढ़ाने की जरुरत है. उन्होंने कहा कि 2004-2011 की अवधि में उधार देने का कारण अर्थव्यवस्था में वर्तमान ऋण संकट आ चुका है. जिसके कारण बैंकों का विलय किया गया.
बता दें कि पिछले कुछ समय से अर्थव्यवस्था में सुस्ती की चर्चा शुरू हो गई है. बीते दिनों कई सेक्टर्स में जॉब कट की खबरें सामने आईं. ऐसे में हर जगह मंदी और सुस्ती यानि स्लोडाउन जैसे शब्दों का इस्तेमाल होने लगा है.
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