हैदराबाद: अमरीका ने क्रेडिट और डेबिट कार्ड के जरिये केशलेस पेमेंट को दुनिया में प्रचलित कर दिया है. फिर चाहे वो ऑनलाइन खरीददारी हो, दुकानों में शॉपिंग हो या रेसटोरेंट में खाना खाना. चीन में भी लोग भुगतान के लिये डिजिटल वॉलेट और क्यूआर कोड का प्रयोग कर रहे हैं. अब तक करीब 83 मिलियन लोगों ने पेमेंट करने के लिये अपने स्मार्ट फोन और मोबाइल एप्प का इस्तेमाल करना शुरू कर दिया है.
चीन में डिडिटल पेंमेंट के विकास का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि चीन में भिखारी भी भीख मांगने के लिये क्यूआर कोड का इस्तेमाल कर रहे हैं. मीडिया से जुड़ी बड़ी कंपनियां, जैसे कि अलीबाबा (चीन का अमेजन) और टेंसेंट (चीन का फेसबुक) पेंमेंट गेटवे के क्षेत्र में बैंको की भूमिका में आ रहे हैं.
जहां क्रेडिट या डेबिट कार्ड से पेंमंट लेने पर, दुकानदार बैंक को 0.5%-0.6% प्रोसेसिंग फीस देते हैं, वहीं मोबाइल वॉलेट के जरिये पेमेंट लेने में ये फीस केवल 0.1% है. यही कारण है कि पिछले साल अली-पे (अलीबाबा) और वी चैट पे (टेंनेसेंट) के जरिये $12.8 ट्रिलियन का भुगतान हुआ है. दुनिया में होने वाली तमाम डिजिटल पेमेंट में से आधी चीन में होती हैं.
अफ्रीका के लिये फायदे का सौदा
कैशलेस ऑनलाइन पेमेंट का जो दौर चीन ने शुरू किया वो अब तेजी से अफ्रीका में, जहां बैंकिंग सुविधाऐं अच्छी नही हैं वहां अपने पांव फैला रहा है. चीन द्वारा अफ्रीका में अपनी तकनीक और निवेश लाने के कारण आज वहां, 4जी नेटवर्क, स्मार्ट फोन और मोबाइल पेमेंट की संख्या तेजी से बढ़ती जा रही हैं.
भारत में इस साल अक्टूबर में पहली बार ऐसा हुआ कि, बाजार में यूपीआई की तुलना में कार्ड के जरिये कम पेमेंट की गई. देश के कई शहरों में, गूगल पे, फोन-पे, भीम एप्प आदि से पेमेंट करने के मामले में बैंगलोर (38.10%) सबसे आगे रहा. इसके बाद, हैदराबाद (12.50%) और दिल्ली(10.22%) का नंबर रहा. ये आंकड़े बैंगलोर की पेमेंट गोटवे कंपनी रेजर-पे ने जारी किये हैं.
हांलाकि अलीबाबा और वी चैट के पेमेंट एप्प बैंकिंग सेवाओं की जगह ले रहे हैं, लेकिन ये दोनो ही फिलहाल बैंक खातों से लिंक हैं और उसी के समन्व्य में काम करते है. अमरीकी कंपनी फेसबुक, अपनी खुद की डिजिटल क्रिप्टो करेंसी "लिब्रा" को 2020 में लांच करने की तैयारी मे है. लिब्रा की ही तर्ज पर चीन भी अपने केंद्रीय बैंत के जरिये अपनी खुद की क्रिप्टो करेंसी शुरू करने की तैयारियों में है. इसका लांच 2020 के मध्य में होने की संभावना है.
बाजार भाव में विश्व के सबसे बड़े बैंक, जेपी मॉर्गन एंड चेस ने भी इसी साल के शुरुआत में अपनी खुद की क्रिप्टो करेंसी "कॉइन" लांच की है. ये करेंसी ब्लॉक चेन तकनीक पर आधारित है, जिसमे खाताधारक तेज रफ्तार से पैसे ट्रांस्फर कर सकता है.
कैसे काम करती है "लिब्रा"?
वहीं फेसबुक, लिब्रा को विश्वव्यापी डिजिटल करेंसी बनाने के लिये काम कर रही है. लेकिन अगर चीन भी क्रिप्टो करेंसी के बाजार में कदम जमाता है तो ऐसे में लिब्रा को अमरीका और युरोप के बैंकिंग क्षेत्र और नियामक संस्थाओं से खासी मुखालफत का सामना करना पड़ सकता है.
लिब्रा एक क्रिप्टो करेंसी है। सभी क्रिप्टो करेंसी डिजिटल करेंसी होती हैं, लेकिन सभी डिजिटल करेंसी क्रिप्टो करेंसी नही हो सकती हैं. लिब्रा को दुनिया के किसी भी कोने से, बिना किसी शुल्क के, सुरक्षा और तेजी से ट्रांस्फर किया जा सकता है. लिब्रा की वैल्यू, बिटकॉइन की तरह उपर नीचे नही होती है. इसका गिरना डॉलर, येन और यूरो के ऊपर निर्रभर करता है.
जब कोई लिब्रा खरीददता है तो, उसके बराबर की रकम डॉलर, यूरो या येन के रूप में बैंक में जमा कराई जाती है. इन डिपोसिट पर ब्याज भी मिलता है. लिब्रा को वापस डॉलर या यूरो में बदलने के लिये, फेसबुक की एप्प "लिब्रा" एक्सचेंज रेट का भुगतान करेगी.
लिब्रा स्विटजर्लैंड के एक नॉन प्रॉफिट संस्थान के अंतर्गत काम करती है. जब लिब्रा कि शुरुआत हो जायेगी तो कोई भी कंपनी इस डिजिटल करेंसी से वॉलेट बना सकेगी. फेसबुक, फेसबुक मैसेंजर और व्हॉट्सएप्प के मिलाकर दुनियाभर में 270 मिलियन उपभोक्ता हैं. वो सभी ये चाहते हैं कि लिब्रा एक ऐसी डिजिटल करेंसी बने जो उन्हे भुगतान, निवेश और डिजिटल उधार देने में मदद करे. फेसबुक-पे, सबसे पहले एक पेमेंट सर्विसेज प्लेटफॉर्म की तरह शुरू हुआ था.
फेसबुक की सहायक कंपनियां, जैसे की व्हॉट्सएप्प, मैसेंजर और इंस्टाग्राम के जरिये भी पेमेंट कि जा सकती हैं. वहॉट्सएप्प ने हाल ही मे, भारत में डिजिटल पेमेंट के क्षेत्र में एक प्रयोग किया है। 100 बैंको और वित्तीय संस्थानों को लिब्रा समुदाय से जोड़ा गया है. पश्चिमी दुनिये के सबसे बड़े बैंक, जेपी मॉर्गन के भी इस समुदाय से जुड़ने के कयास लग रहे हैं, लेकिन जेपी मॉर्गन ने हाल ही जेपी कॉइन के नाम से अपनी खुद की डिजिटल करेंसी शुरू की है.
लिब्रा करेंसी से दूर रहना, मास्टर कार्ड, वीसा, पे पाल और ई-बे के लिये नुकसानदायक साबित हो रहा है. ऊबर और स्पॉटिफाई केवल लिब्रा करेंसी ही स्वीकार करती हैं. इस बात का भी संदेह है कि लिब्रा का इस्तेमाल नशे की तस्करी और गैरकानूनी धन के आदान प्रदान में हो सकता है. इसके साथ ही उपभोक्ता अधिकारों और आर्थिक मजबूती को लेकर भी कई सवाल खड़े हैं.