हैदराबाद: भारतीय रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर डी सुब्बाराव का मानना है कि चालू वित्त वर्ष में केंद्र और राज्यों का संयुक्त राजकोषीय घाटा सकल घरेलू उत्पाद के 13 से 14 प्रतिशत के स्तर पर पहुंच सकता है.
सुब्बाराव ने रविवार को कहा कि कोरोना वायरस की वजह से लागू लॉकडाउन के लिए केंद्र सरकार ने 26 मार्च को जो वित्तीय प्रोत्साहन घोषित किया है, वह अपर्याप्त है.
शहर के मंथन फाउंडेशन द्वारा आयोजित वेबिनार द चैलेंज ऑफ द कोरोना क्राइसिस-इकनॉमिक डाइमेंशन्स को संबोधित करते हुए सुब्बाराव ने कहा कि केंद्र को अपने कर्ज को सीमित करना होगा. इस तरह के कर्ज के कई नकारात्मक प्रभाव पड़ सकते हैं. मसलन ब्याज दरें ऊंचाई पर पहुंच सकती हैं.
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केंद्र सरकार ने सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के 0.8 प्रतिशत के बराबर वित्तीय पैकेज की घोषणा की है. सुब्बाराव ने कहा, क्या यह पर्याप्त है? 26 मार्च को जब इसकी घोषणा की गई थी, उस समय भी यह कम था. अब तो यह काफी कम लग रहा है. उन्होंने कहा कि सरकार को तीन मोर्चों पर अपना खर्च बढ़ाने की जरूरत है.
सबसे पहले लोगों की आजीविका पर खर्च बढ़ाने की जरूरत है. उन्होंने कहा कि 24 मार्च से लॉकडाउन लागू होने के बाद लाखों परिवारों की स्थिति काफी खराब है. ऐसे में इन परिवारों को समर्थन की जरूरत है क्योंकि इनकी बचत समाप्त हो चुकी है.
उन्होंने कहा कि सरकार के खर्च की पहली चुनौती यह है अधिक से अधिक परिवारों तक मदद पहुंचे. परिवारों को अधिक सहायता दी जाए. वित्त मंत्रालय ने 26 मार्च को 1.70 लाख करोड़ रुपये के आर्थिक पैकेज की घोषणा की थी. इसके तहत गरीबों को अगले तीन माह तक खाद्यान्न और रसोई गैस मुफ्त दी जाएगी.