नई दिल्ली:प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने गुरुवार को गन्ना आधारित इथेनॉल की खरीद के लिए बढ़ी कीमत को मंजूरी दे दी.
जूट उद्योग की मदद के लिए सरकार ने खाद्यान्नों की सौ फीसदी पैकिंग और चीनी की 20 प्रतिशत पैकिंग जूट की बोरियों में किया जाना अनिवार्य कर दिया है.
केंद्रीय मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने बताया कि कैबिनेट ने 10,211 करोड़ रुपये से अधिक की अनुमानित लागत पर बांध पुनर्वास और सुधार कार्यक्रम के दूसरे और तीसरे चरण को मंजूरी दी.
केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने यहां संवाददाताओं को बताया कि दिसंबर 2020 से शुरू हो रहे आपूर्ति वर्ष के लिये गन्ना से निकाले गये एथनॉल की कीमत मौजूदा 59.48 रुपये प्रति लीटर से बढ़ाकर 62.65 रुपये प्रति लीटर कर दी.
सी-हैवी मोलासेज (खांड़) से तैयार एथनॉल की दर 43.75 रुपये से बढ़ाकर 45.69 रुपये प्रति लीटर और बी-हैवी मोलासेज से बने एथनॉल की दर 54.27 रुपये से बढ़ाकर 57.61 रुपये प्रति लीटर कर दी गयी है. भारत ईंधन की जरूरतों की पूर्ति के लिये 85 प्रतिशत आयात पर निर्भर है.
भारत वाहनों का उत्सर्जन कम करने के साथ ही पेट्रोलियम पदार्थां का आयात घटाने के लिये पेट्रोल में 10 प्रतिशत एथनॉल मिलाने की अनुमति देता है.
ईंधन विपणन कंपनियों के द्वारा भुगतान की गयी एथनॉल कीमत में लगातार वृद्धि से एथनॉल की खरीद 2013-14 के 38 करोड़ लीटर से बढ़कर 2019-20 में 195 करोड़ लीटर पर पहुंच गयी
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जावड़ेकर ने कहा कि जीएसटी और परिवहन लागत तेल विपणन कंपनियों द्वारा पूरी की जाएगी जो ईंधन सम्मिश्रण के लिए इथेनॉल की खरीद करेगी.
यह निर्णय महाराष्ट्र, गुजरात और कर्नाटक के गन्ना किसानों के लिए सीधे लाभकारी होगा क्योंकि अधिकांश मिलें गन्ना किसानों को अग्रिम धनराशि देने वाली सहकारी समितियों के स्वामित्व में हैं.
उन्होंने कहा कि यह भारत के सबसे अधिक आबादी वाले राज्य उत्तर प्रदेश में गन्ना किसानों के लिए भी फायदेमंद होगा क्योंकि निजी चीनी मिलों के हाथों में अधिक पैसा अंततः राज्य के किसानों को लाभान्वित करेगा.
जावड़ेकर ने कहा कि ईंधन सम्मिश्रण के लिए इथेनॉल की खरीद में भारी वृद्धि के बावजूद, 2018 में 38 करोड़ लीटर से लेकर 2019 में 195 करोड़ लीटर तक, यह अभी भी इथेनॉल के 10% ईंधन सम्मिश्रण के लिए कुल आवश्यकता का 40-45% है.
उन्होंने कहा कि इथेनॉल के बढ़ते मिश्रण से देश के लिए विदेशी मुद्रा भंडार और आयात लागत में बचत होगी.