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बजट 2020: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सामने सब्सिडी की चुनौती - The subsidy challenge before Prime Minister Narendra Modi

कृषि लागत और मूल्य आयोग के पूर्व अध्यक्ष अशोक विशनदास ने कहा कि खरीद की लागत बढ़ गई है. सरकार ने न्यूनतम समर्थन मूल्य में काफी वृद्धि की है. जिससे इस वर्ष के बजट में खाद्य सब्सिडी बिल पर इसका असर पड़ना तय है.

बजट 2020: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सामने सब्सिडी की चुनौती
बजट 2020: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सामने सब्सिडी की चुनौती

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Published : Jan 29, 2020, 11:28 PM IST

Updated : Feb 28, 2020, 11:13 AM IST

नई दिल्ली: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार ने समाज के जरूरतमंद वर्गों को राहत देने के लिए वित्त वर्ष 2019-20 में 3 लाख करोड़ रुपये से अधिक खर्च करने का वादा किया. जो सहायता गरीब लोगों और किसानों को खाद्य, ईंधन और उर्वरक सब्सिडी के रूप में दी जाती है वह केंद्र सरकार के कुल बजटीय खर्च का 10 प्रतिशत से अधिक है जो कि करीब 28 लाख करोड़ रुपये है.

पिछले साल वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने खाद्य सब्सिडी के लिए 1.84 लाख करोड़ रुपये का आवंटन किया था जो अबतक का सर्वकालिक उच्च स्तर था. हालांकि, विशेषज्ञों का मानना ​​है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा लोकसभा चुनाव से पहले घोषित न्यूनतम समर्थन मूल्य में भारी वृद्धि के कारण इस वर्ष के बजट में यह राशि काफी हद तक बढ़ सकती है.

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कृषि लागत और मूल्य आयोग के पूर्व अध्यक्ष अशोक विशनदास ने कहा कि खरीद की लागत बढ़ गई है. सरकार ने न्यूनतम समर्थन मूल्य में काफी वृद्धि की है. इस वर्ष के बजट में खाद्य सब्सिडी बिल पर इसका असर पड़ना तय है.

वित्तवर्ष 2017-18 में तीन प्रमुख सब्सिडी में - खाद्य, ईंधन और उर्वरक पर केंद्र सरकार का कुल सब्सिडी बिल सिर्फ 1.91 लाख करोड़ रुपये था, जो 2018-19 (आरई) में 2.66 लाख करोड़ रुपये था. हालांकि ईंधन और उर्वरक सब्सिडी में मामूली वृद्धि हुई, खाद्य सब्सिडी बिल में सबसे बड़ी वृद्धि दर्ज की गई जो एक साल के भीतर 1 लाख करोड़ रुपये से बढ़कर 1.71 लाख करोड़ रुपये हो गई.

कृषि क्षेत्र के विशेषज्ञ खाद्य सब्सिडी बिल में 70% की भारी वृद्धि को खरीद की बढ़ती लागत, भारतीय गरीबों को सब्सिडी वाले खाद्यान्न उपलब्ध कराने के लिए बड़े पैमाने पर भंडारण की आवश्यकताओं को बताते हैं.

लोकसभा चुनाव से पहले कृषक समुदाय के बीच अपने समर्थन के आधार को वापस लेने के लिए प्रधान मंत्री मोदी ने जून 2018 में घोषणा की कि प्रधान खाद्यान्न का न्यूनतम समर्थन मूल्य 150% निर्धारित किया जाएगा. फिर पिछले साल चुनाव जीतने के बाद केंद्र सरकार ने एक बार फिर गेहूं, जौ, चना और दालों जैसे रबी सीजन (सर्दियों की फसलों) में बोए जाने वाले प्रधान खाद्यान्न के एमएसपी में बढ़ोतरी कर दी.

अक्टूबर 2019 में गेहूं का एमएसपी 1,840 रुपये प्रति क्विंटल से बढ़ाकर 1,925 रुपये प्रति क्विंटल किया गया था. कृषि क्षेत्र के विशेषज्ञों का मानना ​​है कि उचित मूल्य की दुकानों के माध्यम से वितरित सब्सिडी वाले अनाज के मूल्य को बनाए रखते हुए प्रमुख खाद्यान्नों के एमएसपी को बढ़ाने की सरकारी नीति इस साल खाद्य सब्सिडी बिल पर अधिक दबाव डालेगी.

केंद्र सरकार के सब्सिडी बिल ने अक्सर तीखी आलोचना सही है क्योंकि आवंटन में कोई भी बदलाव देश के गरीब लोगों के अधिकांश हिस्से पर सीधे प्रभाव डालता है.

अशोक विशनदास जैसे विशेषज्ञ सरकार को राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी कार्यक्रम मनरेगा के दायरे का विस्तार करने की सलाह देते हैं. उनका कहना है कि सरकार को देश के गरीबों को कर्ज देने के बजाय गरीबी से निपटने के लिए रोजगार सृजन पर अधिक जोर देना चाहिए.

पिछले साल वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने मनरेगा कार्यक्रम के लिए 59,000 करोड़ रुपये का आवंटन किया था, जो एक वित्तीय वर्ष में न्यूनतम 100 दिन काम करने की गारंटी देता है. बता दें कि मनरेगा के तहत काम करने वाले अधिकतर सदस्य ग्रामीण होते हैं.

ग्रामीण रोजगार गारंटी कार्यक्रम की तुलना में वित्तमंत्री ने देश के गरीबों के लिए रियायती राशन प्रदान करने के लिए 3 गुना अधिक धन (1.84 लाख करोड़ रुपये) आवंटित किया था.

अर्थशास्त्रियों का कहना है कि इस स्थिति से निकलने का कोई आसान रास्ता नहीं है क्योंकि राजनीतिक मजबूरियां किसी भी सरकार को खाद्य सब्सिडी बिल में कटौती नहीं करने देंगी.

अशोक विशनदास ने कहते हैं कि एक अच्छा अर्थशास्त्र हमेशा अच्छी राजनीति नहीं होती."

( लेखक - वरिष्ठ पत्रकार कृष्णानन्द त्रिपाठी )

Last Updated : Feb 28, 2020, 11:13 AM IST

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