नई दिल्ली: स्वतंत्रता दिवस की 74वीं वर्षगांठ पर पीएम मोदी आत्मनिर्भर भारत को आगे बढ़ाने की बात की. उन्होंने ये भी कहा कि भारत से कच्चा माल बाहर जाता है और वहां से बना हुआ सामान देश में आता है.
प्रधानमंत्री ने कहा आखिर कब तक हमारे ही देश से गया कच्चा माल, तैयार उत्पाद बनकर भारत में लौटता रहेगा. आजादी के 73 सालों के बाद भी प्रधानमंत्री का ऐसा कहना बहुत सारे सवाल उठाता है क्योंकि औपनिवेशिक प्रशासन द्वारा लगाए गए व्यापार के प्रतिरूपित पैटर्न को समाप्त करने के लिए यह 1947 में भारत की आकांक्षा थी.
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जाहिर है, भारत इसमें सफल नहीं हो पाया है लेकिन इसके लिए 1991 के पूर्व की व्यापार नीतियों पर पूरी तरह से दोषारोपण करना उचित नहीं है. तथ्य यह है कि उदारीकरण के तीस साल जिसमें व्यापार उदारीकरण और कई देशों के साथ मुक्त व्यापार समझौते शामिल हैं जो एक प्रतिस्पर्धी विनिर्माण क्षेत्र को सुविधाजनक बनाने में भी विफल रहा है. दोनों विफलताओं के लिए एक सामान्य चीज है जिसमें घरेलू संरचनात्मक सुधार की अनुपस्थिति, विशेष रूप से कारक बाजारों में जिसने प्रतिस्पर्धी मुक्त बाजार का उत्पादन किया.
प्रधानमंत्री के स्पष्ट आह्वान के बाद से आत्मनिर्भर भारत के सटीक अर्थ के बारे में कुछ चिंता है. पहले की तरह यदि एकमात्र यह लक्ष्य देखा जाता है वह व्यापार नीति और सुरक्षा है, तो सफलता की संभावना सीमित है.
आत्मनिर्भर भारत का मतलब उच्च मूल्य की अर्थव्यवस्था की कमी से नहीं हो सकती है. सौभाग्य से प्रधानमंत्री के स्वतंत्रता दिवस के भाषण से पता चलता है कि यह अतीत में वापसी नहीं है.
प्रधानमंत्री ने यह स्पष्ट किया कि उनका लक्ष्य मेक इन इंडिया है. इसके लिए वैश्विक प्रतिस्पर्धात्मकता हासिल करने के लिए उद्योग की आवश्यकता है. पूर्वी एशियाई अर्थव्यवस्थाओं और चीन की रणनीतियों की तरह भारत भी अब मैन्यूफैक्चरिंग हब बनना चाहता है. प्रधानमंत्री ने यह भी कहा कि आत्मनिर्भरता केवल भारत में निर्मित वस्तुओं के उपभोग के लिए नहीं है, बल्कि इसमें हमारी क्षमताओं, कौशल और रचनात्मकता को शामिल करना होगा.