हैदराबाद:फ्रांस के येलो वेस्ट आंदोलन ने दुनिया के विभिन्न देशों का ध्यान आकर्षित किया है. नवंबर 2018 में सरकार विरोधी प्रदर्शनों के रूप में फ्रांस में ईंधन करों में बढ़ोतरी का विरोध करना शुरू कर दिया. इस आंदोलन में हिस्सा लेने वालों ने पीले रंग के जैकेट पहने हुए थे, जिन्हें सुरक्षा के लिहाज से पहना जाता है. प्रदर्शनकारियों ने ये जैकेट सांकेतिक रूप से पहने हुए थे ताकि अपनी मांगों और समस्याओं की ओर सरकार का ध्यान खींच सकें.
इमैनुएल मैक्रोन के नेतृत्व वाली सरकार द्वारा कथित तौर पर जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए ईंधन करों में बढ़ोतरी की घोषणा के बाद 17 नवंबर को आंदोलन शुरू हुआ था. इस निर्णय ने मैक्रोन के पदभार ग्रहण करने के बाद से पारित किए गए सभी गरीब-विरोधी सुधारों के खिलाफ लोगों के गुस्से को भड़का दिया.
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येलो वेस्ट आंदोलन फ्रांस में सबसे पहले फ्यूल टैक्स में बढ़ोतरी और यातायात के प्रदूषक कारकों पर टैक्स में प्रस्तावित वृद्धि के खिलाफ शुरू हुआ था. हालांकि आंदोलन जैसे जैसे बढ़ता गया लोग ईंधन करों को कम महत्व देकर देश में बढ़ रही आर्थिक असमानताओं को लेकर आंदोलनरत्त हो गए.
फ्रांस सरकार को प्रदर्शनकारियों को शांत कराने के लिए आपातकालीन योजना पेश करनी पड़ी जिसके तहत न्यूनतम मजदूरी 100 यूरो बढ़ाने की घोषणा की गई है. इसके साथ ही मध्यम वर्ग के श्रमिकों पर टैक्स में कटौती और शीर्ष स्तर के सिविल सेवकों के लिए फ्रांस के कुलीन स्कूलों को बंद करने की घोषणा की गई.
येलो वेस्ट आंदोलन से भारत को सबक सीखना चाहिए. बता दें कि फ्रांस का बुनियादी ढांचा भारत से काफी बेहतर है. यहां की बेहतर स्वास्थ्य व्यवस्था और मुफ्त शिक्षा प्रणाली दुनियाभर में मशहूर है.
सबक नंबर 1: सामाजिक सुरक्षा व्यवस्था के बाद भी हो सकते हैं आंदोलन
वास्तव में फ्रांस की पुन: वितरण कल्याण प्रणाली यूरोप में सबसे अच्छी है और सही मायने में स्वीडन से बेहतर है. इसलिए भारत को इस जन आन्दोलन से जो पहला सबक मिलता है, वह यह है कि देश में सबसे अच्छी सामाजिक सुरक्षा व्यवस्थाओं के होने के बाद भी आय असमानताएं होने के कारण एक बड़े पैमाने पर आंदोलन हो सकता है. जिसके लिए भारत जैसे बड़े देश को संभालना मुश्किल हो सकता है.
कुछ बुद्धिजीवियों का ने यह तर्क दिया कि फ्रांस में सरकार की नीतियों के बारे में गलत सार्वजनिक धारणाएं होने की वजह से लोग सड़कों पर आए.
हालांकि ऐसा नहीं है. वास्तविकता यह है कि फ्रांस सच में संकट की घड़ी से गुजर रहा है, यहां भेदभाव की भावना बनी है और यहां के लोग मुख्यधारा के नीति संवाद से अलग महसूस कर रहे हैं और यही वजह है जिसने उन्हें विरोध प्रदर्शनों में लाया.
भारत एक ऐसा देश जहां एक प्रतिशत आबादी के पास देश की कुल संपत्ति का 73 प्रतिशत हिस्सा है. यह आकड़ा अपने आप में ही देश में असमानता को दिखाता है.
भारत को आर्थिक असमानताओं से दूर करने में बहुत लंबा वक्त लग सकता है. यहां भ्रष्टाचार, शासन में सुधार, प्रौद्योगिकी के हस्तक्षेप के साथ सार्वजनिक सेवाओं की डिलीवरी में बेहतरी, भौतिक और सामाजिक बुनियादी ढांचे में निवेश जैसे कई सुधान करने की जरुरत है.
सबक नंबर 2 - विद्रोह से निपटने का तरीका
लोकतंत्र में अपनी बातें कहने का सबको हक है. लोग विरोध प्रदर्शन के लिए कई तरीके अपनाते हैं. इसमें जुलूस, रैली, पदयात्रा आदि शामिल हैं. इसलिए फ्रांस के येलो वेस्ट आंदोलन से भारत को जो दूसरा सबक लेने की जरुरत है, वह यह है कि इन हालातों में भारत कैसे इस तरह के विरोध प्रदर्शन से निपटता है. फ्रांस की सरकार ने जो सरल काम किया वह था कि इस विषम परिस्थिति में लोगों को पहले सुनना.
इन हालातों में फ्रांस की सरकार ने देशव्यापी बहस शुरु दी, लोगों से सुझाव मांगने शुरु कर दिए, लोगों से उनकी राय जानने के लिए पोर्टल खोले दिए गए. जिससे वहां सूचनाओं की बाढ़ आ गई. भले ही इन सूचनाओं का क्या हुआ यह इतना महत्वपूर्ण नहीं है.
यहां यह महत्वपूर्ण है कि जो लोग विरोध कर रहे हैं, उनके साथ बड़े स्तर पर नीतिगत संवाद किया जाए और समाधान निकाला जाए. भारत की संघीय संरचना और स्थानीय निकायों में देखते हुए, भारत भी इस तरह के संवाद स्थापित कर आंदोलन को शांत कर सकता है. प्रदर्शनकारियों से संवाद जमीन की वास्तविकताओं को समझने में मदद करती है.