नई दिल्ली: वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय देश में वाणिज्यिक वस्तुओं के परिवहन की लागत और समय को कम करने के लिए एक नए कानून पर काम कर रहा है. जिसका उद्देश्य कुल लॉजिस्टिक्स लागत में एक तिहाई की कटौती कर उसे जीडीपी के 14-15 प्रतिशत से घटाकर 10 प्रतिशत करना है जो अमेरिका, यूरोप और जापान जैसी अन्य उन्नत अर्थव्यवस्थाओं के बराबर है.
प्रस्तावित कानून नेशनल लॉजिस्टिक्स लॉ एफिशिएंसी एंड एडवांस प्रेडिक्टिबिलिटी एक्ट, 1993 के मौजूदा मल्टीमॉडल ट्रांसपोर्ट ऑफ गुड्स एक्ट (एमएमटीटी एक्ट) को बदलकर देश में अक्षम और समय लेने वाली लॉजिस्टिक इकोसिस्टम को सुव्यवस्थित करेगा.
वाणिज्य मंत्रालय के लॉजिस्टिक्स विभाग के विशेष सचिव पवन अग्रवाल ने पिछले हफ्ते बताया कि नया कानून स्पष्ट रूप से लॉजिस्टिक्स क्षेत्र और इसके विभिन्न तत्वों को डिजिटलीकरण कर एक मजबूत फोकस के साथ स्पष्ट रूप से परिभाषित करेगा.
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अग्रवाल ने एक वेबिनार में कहा, "लॉजिस्टिक्स क्षेत्र क्या है, यह बहुत स्पष्ट नहीं है. हमें यह स्पष्ट रूप से परिभाषित करने की आवश्यकता है कि लॉजिस्टिक्स क्षेत्र क्या है और इसमें विभिन्न तत्व क्या हैं."
इस साल फरवरी में वाणिज्य मंत्रालय ने देश में व्यापार और उद्योग के सामने आने वाली लॉजिस्टिक समस्याओं के समाधान के लिए राष्ट्रीय लॉजिस्टिक्स नीति का मसौदा जारी किया है.
ड्राफ्ट पॉलिसी एक प्रभावी और कुशल लॉजिस्टिक्स इकोसिस्टम मजबूत आर्थिक विकास और देश में व्यापार के सबसे महत्वपूर्ण त्वरक के लिए एक महत्वपूर्ण योगदान हो सकता है. मसौदा नीति में कहा गया है कि एक कुशल आपूर्ति श्रृंखला नेटवर्क में किसान की आय को कई गुना बढ़ाने की क्षमता है. जो समग्र अर्थव्यवस्था पर एक बेहतर प्रभाव डालेगा और भौगोलिक क्षेत्रों में आर्थिक विषमताओं को कम करेगा.
मंत्रालय ने कहा कि एक कुशल और विश्वसनीय लॉजिस्टिक नेटवर्क एक पारदर्शी न केवल निर्यात प्रतिस्पर्धा को बढ़ाएगा बल्कि यह देश में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) को भी आकर्षित करेगा क्योंकि कोई भी संभावित निवेशक देश में निवेश करने से पहले अन्य चीजों के साथ लॉजिस्टिक लागत और बिजली की उपलब्धता सहित कई कारकों को देखते हैं.
राष्ट्रीय लॉजिस्टिक्स कानून लॉजिस्टिक्स लागत में एक तिहाई कटौती करेगा
प्रस्तावित राष्ट्रीय लॉजिस्टिक्स कानून का लक्ष्य लॉजिस्टिक्स की लागत में कटौती करना है और इसे सकल घरेलू उत्पाद के 13-14 प्रतिशत से घटाकर 9-10 प्रतिशत तक लाना है. बता दें कि यूरोप में लॉजिस्टिक्स लागत जीडीपी के 10 प्रतिशत और जापान में जीडीपी के 11 प्रतिशत तक रहती है.
भारत की लॉजिस्टिक समस्या इस तथ्य से उपजी है कि यह सड़क मूवमेंट पर बहुत अधिक निर्भर है, जो असंगठित और काफी महंगा है. देश में माल ढुलाई की 60 प्रतिशत सड़क परिवहन पर निर्भर करता है. वहीं, रेलवे पर कुल 30 प्रतिशत माल ढुलाई निर्भर है.
उन्नत अर्थव्यवस्थाओं की तर्ज पर मोदी सरकार का लक्ष्य सड़क परिवहन की हिस्सेदारी को 60 प्रतिशत से घटाकर मात्र 25-30 प्रतिशत करना है. वहीं, रेलवे की हिस्सेदारी को वर्तमान 31 प्रतिशत से बढ़ाकर 50-55 प्रतिशत करना और जलमार्ग की हिस्सेदारी को 9 प्रतिशत से बढ़ाना 20-25 प्रतिशत करना है.
समस्या का मूल कारण: एकीकृत दृष्टिकोण का अभाव
भारत में कई मंत्रालय और विभाग लॉजिस्टिक्स मूल्य श्रृंखला के प्रबंधन में विभिन्न भूमिकाएं निभाते हैं. इनमें सड़क परिवहन और राजमार्ग, शिपिंग, रेलवे, नागरिक उड्डयन, वाणिज्य, उद्योग, वित्त, गृह मामले और डाक विभाग शामिल हैं. वे सभी विभिन्न अनुमतियों, कर लगाने और लेवी और आपूर्ति श्रृंखला के विभिन्न पहलुओं के नियमन से संबंधित हैं.